- लुखिराम मुर्मू (जिशु दा) ने गांव-गांव घूमकर आदिवासी सभ्यता और संस्कृति के प्रचार का निर्णय लिया।
- अपने ही पैसों से नया मोबाइल और सिम खरीदकर काम को आगे बढ़ाने की योजना।
- राजकीय जनजातीय हिजला मेला परिसर में दिसोम मरांग बुरु थान का संरक्षण कर चुके हैं।
आदिवासी संस्कृति के प्रचार के लिए जिशु दा की पहल:
सामाजिक कार्यकर्ता लुखिराम मुर्मू, जिन्हें जिशु दा के नाम से जाना जाता है, आदिवासी सभ्यता, संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित और प्रचारित करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। उन्होंने हाल ही में अपने ही पैसों से Rohit Narnoli की दुकान से एक नया मोबाइल और सिम खरीदा, ताकि वे अपने संदेश को अधिक प्रभावी ढंग से लोगों तक पहुंचा सकें।
संस्कृति संरक्षण के लिए गांव-गांव घूमने का निर्णय:
जिशु दा का मानना है कि आदिवासी सभ्यता और परंपराएं आज खतरे में हैं। उन्होंने कहा, “मैं चाहता हूं कि नई पीढ़ी को हमारे पूर्वजों की परंपराओं और संस्कृति के बारे में जानकारी मिले।” हालांकि, अपनी व्यस्तता के कारण वे इसे समय नहीं दे पा रहे थे, लेकिन अब वे गांव-गांव जाकर इस काम को बढ़ाने की योजना बना रहे हैं।
दिसोम मरांग बुरु थान के संरक्षण में योगदान:
राजकीय जनजातीय हिजला मेला परिसर, दुमका में स्थित दिसोम मरांग बुरु थान के संरक्षण में जिशु दा का अहम योगदान रहा है। पक्कीकरण से पहले, वे मजदूरी छोड़कर मुफ्त में थान की मरम्मत करते थे और इसे संरक्षित रखते थे। उनके इस योगदान को आज भी लोग याद करते हैं।
समाजसेवा के प्रति समर्पण:
जिशु दा के कार्यों ने न केवल आदिवासी समाज को जागरूक किया, बल्कि उन्होंने संस्कृति संरक्षण के प्रति अपनी जिम्मेदारी का भी निर्वहन किया। उनका यह प्रयास आदिवासी समाज के लिए प्रेरणादायक है।
लुखिराम मुर्मू जैसे समाजसेवियों के प्रयासों से आदिवासी सभ्यता और संस्कृति संरक्षित रहेगी। ‘न्यूज़ देखो’ के साथ जुड़े रहें और ऐसे प्रेरणादायक लोगों की कहानियां पढ़ते रहें।