गुमला जिले की सांस्कृतिक पहचान मांदर को भौगोलिक संकेतक (GI) टैग दिलाने की प्रक्रिया निर्णायक दौर में पहुंच गई है। उपायुक्त कर्ण सत्यार्थी ने जिला स्तरीय छह सदस्यीय टीम को दिल्ली के लिए रवाना किया। टीम 20 दिसंबर को GI टैग के लिए आयोजित फाइनल सुनवाई में भाग लेगी।
उपायुक्त का बयान
उपायुक्त ने मांदर को गुमला की सांस्कृतिक धरोहर और कारीगरी का प्रतीक बताते हुए इसे वैश्विक मंच पर पहचान दिलाने का प्रयास बताया।
उन्होंने कहा, “GI टैग मिलने से यह न केवल गुमला, बल्कि पूरे झारखंड के लिए गर्व का विषय होगा।”
मांदर की विशेषता
मांदर मुख्यतः रायडीह प्रखंड के जरजट्टा गांव में तैयार किया जाता है। इसकी कारीगरी और सांस्कृतिक महत्व इसे विशिष्ट बनाते हैं। GI टैग मिलने से इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी और कारीगरों को आर्थिक अवसर मिलेंगे।
टीम का उत्साह
टीम में शामिल कारीगरों ने पहली बार दिल्ली जाने को लेकर उत्साह प्रकट किया। उन्होंने कहा कि यह उनके लिए गर्व का क्षण है और उम्मीद जताई कि मांदर को GI टैग जरूर मिलेगा।
टीम के सदस्य
- मांदर कारीगर: बलदेव नायक, घनश्याम राम, राम नायक, रणजीत घासी
- GI एक्सपर्ट: सत्यदीप कुमार
- जिला समन्वयक: सूरज कुमार
प्रशासन का सहयोग
जिला प्रशासन और मुख्यमंत्री लघु कुटीर उद्यमी योजना की टीम ने इस पहल को सफल बनाने के लिए लगातार प्रयास किए।
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