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महुआडांड़: जंगल में पेड़ से झूलता मिला युवक का शव, आठ दिन से था लापता

#लातेहार #जंगलमेंशवमामला : महुआडांड़ थाना क्षेत्र के परहाटोली जंगल में मिला 27 वर्षीय युवक का क्षत-विक्षत शव — झाड़फूंक के इलाज और मानसिक बीमारी के कारण परिवार रहा परेशान

सखुआ के पेड़ से लटका मिला शव, गांव में मचा हड़कंप

शनिवार सुबह लातेहार जिले के महुआडांड़ थाना क्षेत्र अंतर्गत परहाटोली जंगल, हल्दी टोंगरी में एक युवक का शव सखुआ के पेड़ से झूलता हुआ मिला। शव पूरी तरह से क्षत-विक्षत हो चुका था और उससे दुर्गंध निकल रही थी, जिससे अनुमान लगाया जा रहा है कि मौत कई दिन पूर्व हुई होगी।

मशरूम लेने गए ग्रामीणों ने देखा शव

सुबह ग्रामीण जब खुखड़ी (जंगली मशरूम) खोजने जंगल पहुंचे, तो उन्होंने पेड़ पर शव को लटकता देखा। घटना की जानकारी मिलते ही स्थानीय पुलिस को सूचना दी गई। महुआडांड़ थाना की टीम मौके पर पहुंची और शव को अपने कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए लातेहार सदर अस्पताल भेजा गया।

मृतक की पहचान, पत्नी ने बताई लापता होने की बात

शव की पहचान परहाटोली ग्राम निवासी देवानंद नगेसिया (27), पिता स्व. बीरेंद्र नगेसिया के रूप में की गई। पत्नी सुषमा देवी ने बताया कि देवानंद पिछले आठ दिनों से लापता था। उनका एक 5 साल का बेटा भी है, और पूरा परिवार पिछले सप्ताहभर से उसकी खोजबीन में लगा था।

मानसिक बीमारी और झाड़फूंक से जुड़ा अंधविश्वास

गांव वालों के अनुसार देवानंद अर्धविक्षिप्त अवस्था में रहता था और परिवार उसका इलाज झाड़फूंक और देवार (पुजारी) के माध्यम से कराता था। दो महीने पहले जब उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ी, तब उसे जंजीर से बांधकर रखा गया और कुछ दिनों बाद उसकी हालत में सुधार भी हुआ। लेकिन आठ दिन पहले एक बार फिर दौरा पड़ा, और वह घर से भाग गया था।

न्यूज़ देखो: मानसिक स्वास्थ्य पर अंधविश्वास का कहर

देवानंद नगेसिया की मौत एक बार फिर यह सवाल खड़ा करती है कि ग्रामीण क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता कितनी कम है। झाड़फूंक, देवार और अंधविश्वास के भरोसे जीवन की डोर थामे परिवार आज शोक में डूबा है।
न्यूज़ देखो ग्रामीण समाज में फैले इन खतरनाक भ्रमों को उजागर करता रहेगा और प्रशासन से अपेक्षा करता है कि मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को पंचायत स्तर तक मजबूत किया जाए
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

अंधविश्वास नहीं, वैज्ञानिक इलाज ही हो समाधान

मानसिक बीमारी किसी भी परिवार में आ सकती है, लेकिन उसका समाधान जंजीर और झाड़फूंक नहीं, बल्कि समय पर इलाज और संवेदनशीलता है। समाज को चाहिए कि अंधविश्वास से बाहर निकलकर चिकित्सा व्यवस्था पर भरोसा करे।
इस खबर पर अपनी राय दें, और इसे उन तक जरूर पहुँचाएं जो मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी किसी समस्या से जूझ रहे हैं।

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