धनबाद में मलेशिया प्रतिनिधि फुटबॉलर ने की आत्महत्या, बेरोजगारी और गेमिंग लत से थी परेशान

#धनबाद #फुटबॉलर_आत्महत्या : मलेशिया में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले फुटबॉलर अश्विनी ने लगाई फांसी — बेरोजगारी और डिजिटल गेमिंग से जूझ रहा था जीवन

प्रतिभाशाली खिलाड़ी की दुखद समाप्ति

धनबाद जिले के बलियापुर थाना क्षेत्र अंतर्गत रांगामाटी गांव में शुक्रवार दोपहर एक प्रतिभाशाली फुटबॉलर अश्विनी कुमार केवट (उम्र 26) ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। यह घटना न सिर्फ खेल जगत के लिए, बल्कि झारखंड की युवा पीढ़ी के लिए भी एक बड़ा झटका है।

खेल से देश का नाम रोशन, पर जिंदगी से जंग हार गया

अश्विनी कुमार ने वर्ष 2019 में मलेशिया में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल टूर्नामेंट में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। स्थानीय लोगों के अनुसार, वह एक बेहतर डिफेंडर था और उसके खेल को लेकर क्षेत्र में बहुत उम्मीदें थीं। मगर हाल के दिनों में वह बेरोजगारी से जूझ रहा था और जीवन यापन के लिए ऑनलाइन गेमिंग में संलिप्त हो गया था।

मां BCCL में करती हैं नौकरी, बेटे की मौत से सदमे में परिवार

अश्विनी की मां BCCL की कर्मचारी हैं। बेटे की इस अप्रत्याशित मौत से पूरा परिवार गहरे सदमे में है। ग्रामीणों का कहना है कि अश्विनी पैसा कमाने के लिए डिजिटल गेमिंग में शामिल हुआ था, जिससे उसकी मानसिक स्थिति और बिगड़ती चली गई।

पुलिस जांच में जुटी, मौत के कारणों की पुष्टि पोस्टमार्टम से होगी

घटना की जानकारी मिलते ही बलियापुर थाना प्रभारी आशीष भारती पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे और शव को अपने कब्जे में लेकर SNMMCH अस्पताल भेजा। उन्होंने कहा:

थाना प्रभारी आशीष भारती ने बताया: “मामला संज्ञान में है, शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है। रिपोर्ट आने के बाद ही मौत के सटीक कारणों की पुष्टि हो सकेगी।”

न्यूज़ देखो: जब सपनों का खिलाड़ी चुपचाप चला गया

अश्विनी कुमार की आत्महत्या ने यह दिखा दिया कि प्रतिभा और उपलब्धियों के बावजूद मानसिक स्वास्थ्य और रोज़गार की अनदेखी किसी के जीवन को किस हद तक प्रभावित कर सकती है। न्यूज़ देखो मानता है कि सरकार, खेल संगठन और समाज को ऐसे खिलाड़ियों के लिए समर्थन और पुनर्वास तंत्र मजबूत करने की आवश्यकता है, ताकि कोई और अश्विनी समय से पहले जीवन की दौड़ न हार जाए।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

युवाओं की आवाज बनें, मानसिक स्वास्थ्य को दें प्राथमिकता

आज का दौर प्रतिस्पर्धा और मानसिक दबाव से भरा है। हम सभी की जिम्मेदारी है कि अपने आसपास के युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखें, उनकी बेरोजगारी या अवसाद को हल्के में न लें। आइए एक संवेदनशील और जागरूक समाज बनाएं।
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