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माओवादियों की उपराजधानी रहा जयगिर अब इतिहास, पीटीआर से हटाया गया पहला गांव

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#पलामू #जयगिरस्थानांतरण – नक्सल प्रभावित जंगलों से निकलकर अब सुरक्षित जीवन की ओर, जयगिर के ग्रामीणों की जिंदगी में आया बड़ा बदलाव

  • जयगिर बना पलामू टाइगर रिजर्व से शिफ्ट होने वाला पहला गांव
  • ग्रामीणों को दी गई मुआवजा राशि और जमीन, बच्चों का स्कूल में नामांकन
  • नक्सलियों का गढ़ रहा जयगिर, बूढ़ा पहाड़ के बाद था सुरक्षित ठिकाना
  • डीआईजी और उपनिदेशक ने खुद गांव में बिताई रातें, ग्रामीणों का बढ़ाया मनोबल
  • अब पोलपोल में तेंदुए की आवाजाही, वन्यजीवों के लिए बेहतर माहौल
  • शिफ्टिंग के बाद शुरू हुई पूजा-पाठ की परंपरा, ग्रामीणों में उत्साह

पहाड़ियों से मैदान की ओर: जयगिर के ऐतिहासिक बदलाव की शुरुआत

पलामू टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में बसे जयगिर गांव को अब पलामू जिले के सतबरवा प्रखंड के पोलपोल गांव में पुनर्वासित कर दिया गया है। यह पहला मौका है जब पीटीआर के कोर एरिया से किसी गांव की पूरी आबादी को सफलतापूर्वक स्थानांतरित किया गया है। नक्सलियों की गतिविधियों और जंगल क्षेत्र में बढ़ती असुरक्षा के बीच यह कदम प्रशासन की रणनीतिक सफलता माना जा रहा है।

जयगिर की पहचान अब तक माओवादियों की उपराजधानी के तौर पर होती थी, लेकिन अब यह क्षेत्र वन्यजीवों के लिए संरक्षित रूप में पुनर्स्थापित किया जा सकेगा।

पोलपोल में नई ज़िंदगी: मुआवजा, शिक्षा और सुरक्षा

पलामू टाइगर रिजर्व के अधिकारियों ने जयगिर के ग्रामीणों के समक्ष दो विकल्प रखे थे — या तो पाँच एकड़ जमीन या ₹15 लाख मुआवजा और घर। ग्रामीणों ने आपसी सहमति से प्रस्ताव को स्वीकार कर शिफ्टिंग प्रक्रिया पूरी की। साथ ही, 30 से अधिक बच्चों का स्कूल में नामांकन भी करवाया गया। पहले यहां शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी, लेकिन अब पोलपोल में सभी बुनियादी सुविधाएं मौजूद हैं।

“ग्रामीणों को कई सुविधाएं दी गई हैं। स्कूली बच्चों का नामांकन भी करवाया गया है।”
कुमार आशीष, उपनिदेशक, पीटीआर

नक्सलियों का गढ़ रहा जयगिर: अतीत की सच्चाई

जयगिर का पहाड़ी क्षेत्र माओवादियों के लिए बूढ़ा पहाड़ के बाद सबसे सुरक्षित शरणस्थली रहा है। यह इलाका लातेहार के नेतरहाट, गारू और महुआडांड से जुड़ा हुआ है, जिससे माओवादी गुमला, लोहरदगा, सारंडा और बिहार के कई क्षेत्रों में मूवमेंट करते थे।

छोटू खरवार जैसे माओवादी कमांडरों ने यहां अपने गुट को संगठित किया था। कहा जाता है कि जयगिर के कई बच्चों को भी माओवादी जबरन अपने साथ ले जाते थे, हालांकि बाद में कई बच्चे वहां से भाग आए थे।

“पुलिस एवं सुरक्षा बल किसी भी इलाके को माओवादियों का ठिकाना नहीं बनने देंगे। इलाके में कैंप बनाने की भी योजना है।”
वाईएस रमेश, डीआईजी, पलामू रेंज

ग्रामीणों का मनोबल बना प्रशासन की ताकत

जयगिर जैसे अत्यधिक नक्सल प्रभावित गांव में पहुंच कर पलामू टाइगर रिजर्व के उपनिदेशक कुमार आशीष ने न केवल अपनी उपस्थिति दर्ज की बल्कि अपने पूरे परिवार के साथ गांव में रातें गुजार कर ग्रामीणों को भरोसा दिलाया। इसका नतीजा यह रहा कि ग्रामीण प्रशासन पर विश्वास कर शिफ्टिंग के लिए तैयार हो गए।

शिफ्ट होने के बाद ग्रामीणों ने चार दिन तक पारंपरिक पूजा-पाठ कर नए जीवन की शुरुआत की।

अब वन्यजीवों के लिए खुला वातावरण

पोलपोल में अब वन्यजीवों की गतिविधि बढ़ने लगी है। तेंदुए की आवाजाही रिकॉर्ड की गई है, जिससे यह साबित होता है कि मानव आबादी के कम होने से वन्यजीवों के लिए बेहतर माहौल बन रहा है। इससे पीटीआर के कोर एरिया में जैव विविधता को संरक्षित करने में मदद मिलेगी।

न्यूज़ देखो : नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की हर हलचल पर पैनी नज़र

‘न्यूज़ देखो’ का उद्देश्य है उन इलाकों की कहानियां सामने लाना जो अब तक छिपे रहे हैं। जयगिर जैसे गांवों की शिफ्टिंग न सिर्फ प्रशासनिक सफलता है, बल्कि यह समाज के लिए भी नई उम्मीद है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

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