J-TET में हिंदी, भोजपुरी और मगही को शामिल करने की मांग पर विधायक अनंत प्रताप देव ने मुख्यमंत्री से की मुलाकात

#गढ़वा #भाषाईन्यायकी_लड़ाई : गढ़वा-पलामू क्षेत्र की प्रमुख भाषाओं को J-TET में शामिल न करने पर युवाओं में बढ़ रहा असंतोष — विधायक ने मुख्यमंत्री को सौंपा ज्ञापन, कहा “स्थानीय भाषा की उपेक्षा अब नहीं सहेंगे”

भाषाई असंतुलन पर उभरे जनप्रतिनिधि

भवनाथपुर विधायक अनंत प्रताप देव ने झारखंड सरकार द्वारा शिक्षक पात्रता परीक्षा (J-TET) में घोषित क्षेत्रीय भाषाओं की सूची को लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई। उन्होंने पत्र सौंपते हुए मांग की कि गढ़वा, पलामू और लातेहार जैसे सीमावर्ती जिलों की प्रमुख भाषाओं — हिंदी, भोजपुरी और मगही को भी सूची में शामिल किया जाए

भौगोलिक-सांस्कृतिक यथार्थ का हवाला

मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में विधायक ने कहा कि ये जिले बिहार, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमाओं से सटे हुए हैं, जहां हिंदी, भोजपुरी और मगही का सांस्कृतिक प्रभाव अत्यधिक गहरा है। ऐसे में स्थानीय संवाद, शिक्षा और सामाजिक व्यवस्था में इन भाषाओं की भूमिका अहम है।

अनंत प्रताप देव ने लिखा:
“यदि सरकार स्थानीय भाषाओं की अनदेखी करती है तो यह न केवल युवाओं के रोजगार अवसरों पर असर डालता है, बल्कि सांस्कृतिक अस्मिता पर भी चोट है।”

युवाओं में बढ़ता आक्रोश

विधायक ने कहा कि भाषाई उपेक्षा से छात्रों में निराशा और असंतोष बढ़ रहा है। कई छात्रों ने पहले भी क्षेत्रीय भाषा नीति को लेकर आंदोलन किए हैं, और अब जब मामला सीधा रोजगार से जुड़ा है तो जनाक्रोश और तीव्र हो रहा है

नियुक्तियों में हो समान प्रतिनिधित्व

विधायक ने यह भी कहा कि नियुक्ति परीक्षाओं में क्षेत्रीय भाषा को लेकर संतुलित दृष्टिकोण होना चाहिए। कुड़ुख और नागपुरी का चयन एकतरफा निर्णय है, जिससे हिंदी-भोजपुरी-मगही भाषी युवाओं को हाशिये पर डाला जा रहा है

मुख्यमंत्री से अपेक्षा

मुख्यमंत्री से की गई मांग में विधायक ने आग्रह किया कि राज्य सरकार नियुक्ति परीक्षाओं की क्षेत्रीय भाषाओं की सूची को तत्काल संशोधित करे। इससे न सिर्फ क्षेत्र के युवाओं को प्रतिस्पर्धी लाभ मिलेगा, बल्कि राज्य सरकार के प्रति उनका विश्वास भी मजबूत होगा

न्यूज़ देखो : जब भाषा बन जाए अधिकार का सवाल

झारखंड जैसे बहुभाषी राज्य में स्थानीय भाषाओं का प्रतिनिधित्व रोजगार और शिक्षा की नीतियों में होना अनिवार्य है। अनदेखी केवल असंतोष को जन्म देती है। न्यूज़ देखो मानता है कि हर भाषा, हर बोली की अपनी गरिमा है, और उसे सम्मान देना ही लोकतंत्र का मूल मंत्र है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

बदलाव तभी जब आवाज मजबूत हो

यह मुद्दा सिर्फ भाषाओं का नहीं, भविष्य की संभावनाओं का है। एक पूरे प्रमंडल की आवाज को अगर नियुक्ति प्रक्रिया में नजरअंदाज किया जाए, तो न्याय और अवसर की बात खोखली रह जाएगी
अब समय है कि आवाज बुलंद हो — ताकि हर भाषा को मिले बराबरी का सम्मान

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