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बेतला में मनरेगा योजनाएं बनीं भ्रष्टाचार का शिकार, बिरसा बागवानी योजनाएं सिर्फ कागजों में

#लातेहार #मनरेगा_भ्रष्टाचार — योजनाओं की जमीनी हकीकत उजागर, पूर्व डीसी की पहल भी साबित हुई बेअसर
  • बेतला क्षेत्र में मनरेगा की कई योजनाएं पूरी तरह अस्तित्वहीन
  • परहिया समुदाय के खेतों में बिरसा आम बागवानी योजनाएं पूरी तरह फेल
  • कई योजनाएं केवल सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज, ज़मीन पर नहीं दिखी
  • मनरेगा जेई ने भ्रष्टाचार के आरोपों को नकारा, गुणवत्ता आधारित चयन का दावा
  • पूर्व डीसी प्रमोद कुमार की पहल भी नहीं दिखा पाई असर

परहिया समुदाय के खेतों में बिरसा बागवानी योजना की सच्चाई

लातेहार जिले के बेतला पंचायत अंतर्गत परहिया बहुल अखरा गांव के राजेंद्र परहिया, बिनोद परहिया, मनोज परहिया और चैतू परहिया के खेतों में बिरसा आम बागवानी योजना शुरू की गई थी। यह योजना पूर्व उपायुक्त प्रमोद कुमार की विशेष पहल पर चलाई गई थी, ताकि आदिम जनजातीय समुदाय को आत्मनिर्भर बनाया जा सके।
लेकिन हकीकत में यह योजना पूरी तरह से अस्तित्वहीन हो चुकी है। मौके पर ना तो बागवानी का कोई अवशेष दिखता है और ना ही खेतों में कोई संरचना। इससे यह स्पष्ट होता है कि योजना के नाम पर सिर्फ कागजी खानापूर्ति हुई, और लाभुकों को कुछ भी नहीं मिला।

कागजों में चल रही हैं योजनाएं, जमीन पर दिखता है सूनापन

बेतला क्षेत्र की कई मनरेगा योजनाएं केवल सरकारी कागजों तक सीमित रह गई हैं। योजनाओं के नाम पर फर्जी कार्य, मौके पर अनुपस्थित संरचनाएं, और बिना कार्य के भुगतान जैसी गंभीर अनियमितताएं सामने आई हैं।
पर्यावरण संरक्षण, रोजगार सृजन और आदिवासी कल्याण जैसे लक्ष्यों के लिए चलाई जा रही ये योजनाएं अब कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार का पर्याय बन गई हैं।

मनरेगा जेई ने खारिज किए आरोप, गुणवत्ता पर दिया जोर

हालांकि, इस पूरे मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए बरवाडीह प्रखंड के मनरेगा जेई संजय कुमार ने इन आरोपों को खारिज किया है। उनका कहना है:

संजय कुमार, मनरेगा जेई ने बताया: “हमारे द्वारा सभी योजनाएं गुणवत्ता और निरीक्षण के आधार पर ही चयनित की जाती हैं। बेतला क्षेत्र में भी कार्यों का भौतिक सत्यापन किया गया है।”

लेकिन स्थानीय स्थिति और योजनाओं की जमीनी सच्चाई, उनकी बातों से बिल्कुल मेल नहीं खाती। ऐसे में प्रशासन की पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल उठना स्वाभाविक है।

न्यूज़ देखो: भ्रष्ट योजनाओं की चुप्पी में दबी आदिवासी आवाज़

न्यूज़ देखो यह सवाल उठाता है कि जब परहिया समुदाय जैसे वंचित तबके के नाम पर योजनाएं चलाई जाती हैं, तो उनके क्रियान्वयन की जवाबदेही किसकी होनी चाहिए?
बिरसा आम बागवानी जैसी योजनाएं, जिनका उद्देश्य था आदिवासियों को आत्मनिर्भर बनाना, वे अगर सिर्फ भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी की भेंट चढ़ जाएं, तो यह प्रशासनिक व्यवस्था की विफलता का स्पष्ट प्रमाण है।
जरूरत है कि लातेहार जिला प्रशासन और मनरेगा प्रकोष्ठ इन योजनाओं की निष्पक्ष जांच कराए और दोषियों पर सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करे
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

योजनाओं की निगरानी में जनभागीदारी है ज़रूरी

सिर्फ सरकार की नहीं, जनता की भी जिम्मेदारी है कि वे अपने गांव-पंचायत में हो रही योजनाओं पर नज़र रखें, सवाल उठाएं और जवाबदेही की मांग करें

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