#गिरिडीह #कला_साहित्य : शहीदाने कर्बला की याद में भावपूर्ण कवि गोष्ठी, शायरों ने पेश किए अशआर – सलमान रिज़वी हुए मुख्य अतिथि
- फ़रोग-ए-अदब के तत्वावधान में बरवाडीह में हुआ आयोजन
- मुख़्तार हुसैनी की अध्यक्षता, संचालन किया सरफ़राज़ चाँद ने
- मुख्य अतिथि सलमान रिज़वी ने संस्था की सांस्कृतिक सेवाओं की सराहना की
- कवि जावेद हुसैन, सलीम परवाज़, ज़हूरी, मुख़्तार हुसैनी सहित कई शायरों की प्रस्तुति
- रात्रि 9:30 बजे तक चला कार्यक्रम, श्रद्धा व भावना से सराबोर रही महफ़िल
कर्बला की शहादत को अशआरों में पिरोया गया
गिरिडीह के बरवाडीह स्थित फ़रोग-ए-अदब कार्यालय में “एक शाम शोहदाये क़र्बला के नाम” शीर्षक से एक भावपूर्ण कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस विशेष आयोजन की अध्यक्षता संस्था के संस्थापक मुख़्तार हुसैनी ने की, जबकि कार्यक्रम का संचालन सरफ़राज़ चाँद ने किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रसिद्ध समाजसेवी सलमान रिज़वी रहे, जिन्होंने आयोजन को संबोधित करते हुए इसे सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक बताया।
शहीदाने कर्बला को दी गई काव्यांजलि
गोष्ठी में देशभर से आए शायरों ने कर्बला के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। मंच पर अपनी प्रस्तुति देने वालों में प्रमुख रूप से जावेद हुसैन जावेद, सलीम परवाज़, सरफ़राज़ चाँद, निजामुद्दीन ज़हूरी, एकरामुल्हक वली, राशिद जमील, मुख़्तार हुसैनी और हसनैन आज़म शामिल रहे।
सरफराज़ चाँद के इन पंक्तियों ने विशेष प्रभाव डाला:
“हुसैन हाथ दुआ के लिए उठा देते, तो क़र्बला में भी ज़मज़म निकल गया होता।”
शायरों ने इमाम हुसैन की अज़मत, इस्लाम की रक्षा में हुई कुर्बानी, और कर्बला की पीड़ा को अपने-अपने अंदाज में पेश किया, जिससे पूरा माहौल ग़म और अकीदत से भर गया।
संस्थापक ने दिया धन्यवाद, उपस्थित रहे अनेक गणमान्य
मुख्य अतिथि सलमान रिज़वी ने फ़रोग-ए-अदब की साहित्यिक भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि गिरिडीह जैसे क्षेत्र में संस्था द्वारा शायरी, मुशायरा और सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखने का प्रयास प्रशंसनीय है। उन्होंने संस्था को अपनी ओर से पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया।
कार्यक्रम को सफल बनाने में बिलाल हुसैनी, आरिफ़ रज़ा, हम्माद आज़म और हसनैन आज़म का विशेष योगदान रहा। रात 9:30 बजे तक चले इस आयोजन का समापन संस्थापक मुख़्तार हुसैनी द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ किया गया।



न्यूज़ देखो: साहित्यिक चेतना की सशक्त प्रस्तुति
फ़रोग-ए-अदब गिरिडीह द्वारा आयोजित यह आयोजन श्रद्धा, साहित्य और समाज की एकजुटता का सुंदर उदाहरण रहा। इस मुशायरे के ज़रिए न केवल शहीदों को याद किया गया, बल्कि गिरिडीह की सांस्कृतिक पहचान को भी नया आयाम मिला।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
शायरी से सजी शाम ने दिलों को छू लिया
शब्दों में बसी श्रद्धा, और अशआरों में बसी आत्मा — ऐसे आयोजनों से हमारी सांस्कृतिक विरासत जीवित रहती है। आइए, हम भी ऐसी पहल का समर्थन करें और अगली पीढ़ी को साहित्यिक और आध्यात्मिक विरासत से जोड़ें।