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सावन की हरियाली में सजा संगीत महाविद्यालय — कजरी गीतों से गूंजा गढ़वा

#गढ़वा #SawanMahotsav : सावन महोत्सव में छात्राओं ने कजरी गीतों से रच दिया लोक-संगीत का समां

पारंपरिक लोकगीतों में डूबा सावन महोत्सव

गढ़वा के संगीत कला महाविद्यालय में आयोजित सावन महोत्सव में इस बार हरियाली की झलक, संगीत की मिठास और लोकपरंपरा की सुगंध ने मिलकर एक यादगार आयोजन रच दिया। छात्राओं ने पारंपरिक हरा परिधान पहनकर प्रकृति की पूजा-अर्चना की और फिर शुरू हुआ लोक गीतों का संगम, जिसने माहौल को पूरी तरह ‘सावनमय’ बना दिया।

एक से बढ़कर एक कजरी गीतों से सजी प्रस्तुति

कार्यक्रम की शुरुआत पूर्णिमा कुमारी और उनकी सहेलियों द्वारा “अरे रामा भिजें ला कोरी चुनरिया, बदरिया बरसे ये हरि” जैसे गीत से हुई। इसके बाद परिधि कुमारी और उनकी टीम ने “भींज जाइएहे हमरो चुनरिया हो, सवनवा में ना जइबो ननदी” गाकर वातावरण को मंत्रमुग्ध कर दिया।

सोनाली कुशवाहा और उनकी टीम ने “सावन महीना मोरा जिया जले हो सखी” गाकर दिलों को छू लिया, वहीं खुशी कुमारी और समूह ने “कैसे खेले जाऊं सावन में कजरिया, बदरिया घिर आयी” से सांस्कृतिक समां बांध दिया।

इसके बाद नेहा कुमारी और उनकी सहेलियों ने “चल सखी खेले हो कजरिया, सावन के बरसे फुहार” गाकर तालियां बटोरीं। काजल कुलवंती की टीम ने “रिमझिम गिरे सावन, सुलग-सुलग जाए मन” जैसे फिल्मी गीत से आधुनिकता और परंपरा का सुंदर समन्वय प्रस्तुत किया।

अंत में वैष्णवी और लालबहादुर ने “सावन का महीना, पवन करे शोर” से आयोजन को ऊंचाई पर पहुंचाया।

कार्यक्रम के संचालन में निदेशक की रही अहम भूमिका

इस सफल आयोजन का निर्देशन संगीत कला महाविद्यालय के निदेशक प्रमोद सोनी ने किया। उन्होंने छात्राओं को प्रोत्साहित किया और लोक संस्कृति के संरक्षण को महत्वपूर्ण बताया। कार्यक्रम में रीता सोनी, रूपा सोनी, नीलू देवी, प्रियंका कुमारी, आराधना कुमारी, जितेंद्र चंद्रवंशी सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं, अभिभावक और आम लोग शामिल हुए।

निदेशक प्रमोद सोनी ने कहा: “हमारे विद्यार्थियों ने सावन के रंग को लोक-संगीत से जोड़कर जिस सुंदरता से प्रस्तुत किया, वह गढ़वा की सांस्कृतिक पहचान को और मजबूत करता है।”

न्यूज़ देखो: लोक-संस्कृति को संवारता युवा उत्साह

न्यूज़ देखो ऐसे आयोजनों को विशेष सराहना देता है जो सांस्कृतिक विरासत को जीवंत रखते हैं। सावन महोत्सव जैसे कार्यक्रम नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का माध्यम बनते हैं। यह सिर्फ गीतों का आयोजन नहीं बल्कि लोक भावना और परंपरा की साझी स्मृति है।

हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

हमारी विरासत, हमारी जिम्मेदारी

गढ़वा जैसे जिलों में जब युवा और छात्राएं लोकगीतों की धुन पर परंपरा को थामते हैं, तो यह केवल सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं बल्कि सामाजिक चेतना की झलक होती है। ऐसे आयोजनों को और बढ़ावा दें — इस खबर को अपने दोस्तों व परिवार के साथ शेयर करें, और कॉमेंट कर बताएं कि आपके इलाके में ऐसे त्योहार कैसे मनाए जाते हैं।

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