Ranchi

नीरु शांति भगत की प्रधानमंत्री से अपील: सरना धर्म कोड को जल्द लागू किया जाए

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  • आदिवासी समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को संरक्षित करने के लिए सरना धर्म कोड की आवश्यकता।
  • झारखंड विधानसभा ने नवंबर 2020 में सरना धर्म कोड के लिए प्रस्ताव पारित किया था।
  • नीरु शांति भगत की अपील, आदिवासी समाज के अस्तित्व और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने के लिए है।
  • सरना धर्म कोड के समर्थन में कई राज्यों में आंदोलन हो चुके हैं।

रांची: आजसू पार्टी के दिवंगत नेता कमल किशोर भगत की पत्नी और पार्टी की पूर्व प्रत्याशी नीरु शांति भगत ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अपील की है कि सरना धर्म कोड को जल्द से जल्द लागू किया जाये। उनका कहना है कि यह आदिवासी समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को संरक्षित करने के लिए अत्यंत आवश्यक है।

सरना धर्म कोड: आदिवासी समाज की मांग

नीरु शांति भगत ने अपनी अपील में कहा कि सरना धर्म कोड आदिवासी समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को मान्यता दिलाने का एक अहम प्रयास है। वर्तमान में अधिकांश आदिवासियों को हिंदू, ईसाई या अन्य धर्मों के अंतर्गत दर्ज किया जाता है, जिससे उनकी अपनी पहचान कहीं खो जाती है।

झारखंड विधानसभा का प्रस्ताव

झारखंड सरकार ने नवंबर 2020 में सरना धर्म कोड पर एक प्रस्ताव पारित किया था और इसे केंद्र सरकार के पास भेजा था। इस प्रस्ताव में मांग की गई थी कि 2021 की जनगणना में सरना धर्म कोड को अलग श्रेणी के रूप में शामिल किया जाये। हालांकि केंद्र सरकार की ओर से अब तक इस पर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है।

नीरु शांति भगत का बयान

नीरु शांति भगत ने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा, “यह सिर्फ धार्मिक पहचान का सवाल नहीं है, बल्कि यह हमारे अस्तित्व और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने का भी सवाल है। सरकार को इस पर जल्द से जल्द निर्णय लेना चाहिए ताकि आदिवासी समाज को उनका हक मिल सके।”

सरना धर्म कोड के समर्थन में बढ़ती मांग

सरना धर्म कोड को लेकर झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल सहित अन्य राज्यों में आदिवासी संगठनों ने कई आंदोलन किए हैं। इन आंदोलनों में बड़ी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया और केंद्र सरकार से सरना धर्म कोड को मान्यता देने की अपील की है।

सरना धर्म कोड की आवश्यकता क्यों?

  • धार्मिक पहचान: सरना धर्म कोड से आदिवासी समुदाय को उनकी अलग धार्मिक पहचान मिलेगी।
  • संस्कृति का संरक्षण: आदिवासी परंपराओं और रीति-रिवाजों को संरक्षित किया जा सकेगा।
  • सरकारी योजनाओं में समावेश: अलग पहचान से आदिवासी समाज के लिए विशेष योजनाओं का निर्माण करने में आसानी होगी।

नीरु शांति भगत की इस अपील ने आदिवासी समाज की भावनाओं को नई दिशा दी है। अब यह देखना अहम होगा कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर क्या कदम उठाती है।

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