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नेतरहाट के सुरकाई जलप्रपात की अनदेखी, पर्यटन विकास के वादों में घिरी प्रकृति की अनमोल धरोहर

#लातेहार #पर्यटन_विकास : सुरकाई जलप्रपात की मनमोहक सुंदरता सरकारी उपेक्षा की चादर में लिपटी, ग्रामीण बोले— “सिर्फ़ आश्वासन मिलता है, काम नहीं।”

लातेहार ज़िले के महुआडांड़ प्रखंड की सुरम्य घाटियों में बसा सुरकाई जलप्रपात, प्रकृति का अनमोल उपहार है। लगभग तीन सौ फीट की ऊंचाई से गिरता जलप्रवाह, चारों ओर घने जंगल और नर्म पहाड़ी हवा इसे किसी चित्रित कविता जैसा बना देती है। लेकिन इस सौंदर्य के भीतर एक गहरी खामोशी छिपी है — सरकारी उपेक्षा की खामोशी। वर्षों से विकास की योजनाएं केवल कागज़ पर रह गईं। न सड़क बनी, न साइनबोर्ड लगे, और न ही पर्यटन सुविधाओं में कोई सुधार हुआ।

उपेक्षा की गहराई में डूबा सौंदर्य

बारिश के बाद जब धुंध पहाड़ों से उतरती है, तो सुरकाई जलप्रपात किसी स्वर्गिक दृश्य जैसा प्रतीत होता है। स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां के जंगलों की हरियाली और झरने की गर्जना देखने वालों को मंत्रमुग्ध कर देती है। लेकिन झरने तक पहुँचने वाली पगडंडी अब खतरनाक बन चुकी है। जगह-जगह फिसलन, गड्ढे और झाड़ियों ने रास्ते को दुर्गम बना दिया है।

ग्रामीणों का कहना है कि कई बार प्रशासन से सड़क और बुनियादी सुविधाओं की मांग की गई, लेकिन अब तक सिर्फ़ आश्वासन ही मिला है।

एक ग्रामीण ने कहा: “प्रकृति ने हमें इतना सुंदर उपहार दिया है, पर सरकार ने इसे उपेक्षा के अंधेरे में छोड़ दिया है।”

वन क्षेत्र का हवाला बन गया बहाना

स्थानीय प्रशासन का तर्क है कि यह इलाका वन क्षेत्र के अंतर्गत आता है, इसलिए सड़क या स्थायी निर्माण कार्य पर रोक है। पर सवाल यह उठता है कि जब अन्य वन क्षेत्रों में पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए योजनाएं लागू की जा सकती हैं, तो सुरकाई क्यों नहीं?

वन क्षेत्र की सुरक्षा और पर्यटन विकास, दोनों एक साथ चल सकते हैं, बशर्ते नीति और नीयत साफ़ हो। इस क्षेत्र के युवाओं का मानना है कि यदि सड़क और इंटरनेट की सुविधा हो जाए, तो यहां पर्यटन से रोजगार के नए अवसर खुल सकते हैं।

पर्यटन संभावनाओं पर पड़ा ताला

सुरकाई जलप्रपात में हर साल सैकड़ों पर्यटक आते हैं, लेकिन सुविधाओं के अभाव में दोबारा लौटकर नहीं आते। यहां न कोई सुरक्षा व्यवस्था है, न बैठने की जगह, न ही सूचना केंद्र। मोबाइल नेटवर्क न होने से यदि कोई दुर्घटना हो जाए, तो मदद पहुँचना नामुमकिन हो जाता है।

ग्रामीणों ने बताया कि वे अपनी सदाशयता से पर्यटकों की मदद करते हैं — रास्ता दिखाते हैं, रुकने की जगह बताते हैं, पर यह स्थायी समाधान नहीं है।

एक स्थानीय शिक्षक ने कहा: “यह जलप्रपात केवल झरना नहीं, बल्कि हमारे क्षेत्र की पहचान है। अगर सरकार ध्यान दे, तो यह झारखंड के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शामिल हो सकता है।”

ग्रामीणों की पुकार: वादों से आगे बढ़े सरकार

ग्रामीण समाज अब केवल वादों से थक चुका है। सड़क निर्माण, संकेत बोर्ड, प्राथमिक चिकित्सा केंद्र और सुरक्षा व्यवस्था जैसी बुनियादी मांगें वर्षों से अधूरी हैं। महिलाएं कहती हैं कि जब पर्यटक आते हैं, तो क्षेत्र में जीवन लौट आता है, पर जैसे ही बरसात बीतती है, सब कुछ फिर वीरान हो जाता है।

स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों का भी कहना है कि सुरकाई जलप्रपात को पर्यटन मानचित्र में शामिल करने से न केवल क्षेत्र की पहचान बढ़ेगी बल्कि युवाओं को रोजगार भी मिलेगा।

न्यूज़ देखो: सुरकाई की खामोशी में छिपा विकास का सच

सुरकाई जलप्रपात सिर्फ़ प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक नहीं, बल्कि यह हमारे विकास तंत्र की असमानता का आईना भी है। जब शहरों में करोड़ों खर्च कर पार्क और कृत्रिम जलप्रपात बनाए जा रहे हैं, तब यह प्राकृतिक रत्न मरम्मत और सड़क के अभाव में अपनी चमक खो रहा है।
यह सवाल उठाता है — क्या विकास सिर्फ़ कंक्रीट तक सीमित है, या प्रकृति की भी उसमें हिस्सेदारी है?
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

अब वक्त है जागने का, अपने इलाके की पहचान बचाने का

सुरकाई जलप्रपात जैसी जगहें केवल पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि हमारी विरासत हैं। अगर हम खुद अपनी धरोहरों के प्रति संवेदनशील नहीं होंगे, तो कोई और क्यों होगा?
अब समय है कि स्थानीय नागरिक, प्रशासन और जनप्रतिनिधि मिलकर इस क्षेत्र को पुनर्जीवित करें।
आपकी छोटी सी पहल — सफाई अभियान में भागीदारी, जनप्रतिनिधियों से सवाल, और खबर को साझा करना — बड़ा बदलाव ला सकती है।
कमेंट करें, अपनी राय दें और इस खबर को शेयर करें ताकि सुरकाई जलप्रपात की आवाज़ पूरे झारखंड में गूंज उठे।

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