- रांची में भारतीय भाषा समिति की कार्यशाला का आयोजन।
- संताली शिक्षकों ने ओलचिकी लिपि के विरोध में ज्ञापन सौंपा।
- कार्यशाला का उद्देश्य उच्च शिक्षा में संताली भाषा की पुस्तकें विकसित करना।
- ओलचिकी लिपि को अव्यावहारिक और भाषा की शुद्धता को नुकसान पहुंचाने वाला बताया गया।
कार्यशाला का उद्देश्य और भागीदारी
भारतीय भाषा समिति द्वारा झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय, रांची में 20-21 जनवरी को आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला में संताली भाषा और लिपि पर गहन चर्चा हुई। कार्यशाला का उद्देश्य उच्च शिक्षा के सभी विषयों की पुस्तकें संताली भाषा में अनुवादित और प्रकाशित करने की प्रक्रिया पर विचार करना था।
कार्यशाला में सिदो-कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय (एसकेएमयू), दुमका के कई शिक्षकों ने हिस्सा लिया, जिनमें डॉ. सुशील टुडू, डॉ. शर्मिला सोरेन, डॉ. सुमित्रा हेंब्रम, और डॉ. अंजुला मुर्मू सहित अन्य प्रतिनिधि शामिल थे।
ओलचिकी लिपि का विरोध
संताली शिक्षकों ने ओलचिकी लिपि को अव्यावहारिक बताते हुए देवनागरी लिपि को अपनाने की मांग की। उनका कहना था कि ओलचिकी लिपि ओड़िया भाषा पर आधारित है, जिससे संताली भाषा की शुद्धता और मानक रूप प्रभावित हो सकते हैं।
इस संबंध में एसकेएमयू के शिक्षकों ने नोडल प्रतिनिधि डॉ. रजनीकांत पांडेय को ज्ञापन सौंपा और चेतावनी दी कि यदि ओलचिकी लिपि को बढ़ावा दिया गया तो आंदोलन किया जाएगा।
कार्यशाला में विशेषज्ञों के विचार
कार्यशाला में झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति और पद्मश्री दमयंती बेसरा, साथ ही अन्य विशेषज्ञों ने संताली भाषा में पुस्तकों के अनुवाद की चुनौतियों पर चर्चा की। मॉडल कॉलेज, दुमका की प्राचार्य डॉ. मेरी मार्गरेट टुडू ने रचनात्मक दृष्टि और संताली लिपि पर अपने विचार साझा किए।
पश्चिम बंगाल और ओडिशा के प्रतिभागियों ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए और सुझाव दिए।
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