Koderma

मजदूर दिवस पर झुमरीतिलैया की मंडी में सिर्फ इंतजार, न मजदूरी न सम्मान

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#कोडरमा #मजदूर_दिवस – श्रमिक चौक पर सैकड़ों मजदूर उम्मीदों के साथ जुटे, लेकिन खाली हाथ लौटे कई लोग

  • झुमरीतिलैया की मंडी में मजदूर दिवस पर भी सुबह से जुटे रहे श्रमिक
  • कोई सरकारी पहल, न किसी नेता की उपस्थिति, केवल खामोशी और उम्मीदें
  • बिहार और झारखंड के दर्जनों इलाकों से रोज़ी की तलाश में आते हैं मजदूर
  • न कोई छुट्टी, न सामाजिक सुरक्षा, केवल दिहाड़ी की अनिश्चितता
  • मजदूर बोले – “छुट्टी मनाई तो चूल्हा नहीं जलेगा”
  • मंडी में न तो रजिस्ट्रेशन है न किसी सुविधा की व्यवस्था

मजदूर दिवस पर भी ‘काम मिलेगा या नहीं’ की चिंता

कोडरमा/झुमरीतिलैया:
जब देशभर में मजदूर दिवस के अवसर पर सम्मान, भाषण और अवकाश की चर्चा हो रही थी, उस वक्त कोडरमा के झुमरीतिलैया श्रमिक चौक पर मजदूरी की तलाश में खड़े सैकड़ों श्रमिकों की चुप्पी ज़्यादा कुछ कह रही थी। यह दृश्य मजदूरों के असली हालात को उजागर करता है – न कोई कार्यक्रम, न सहायता, बस रोज़ की लड़ाई

यहां सुबह-सुबह सैकड़ों मजदूर अपने औजार और उम्मीदें लेकर मंडी में जुटते हैं। उनके लिए न कोई उत्सव है, न कोई मंच। बस यही चिंता रहती है कि आज काम मिलेगा या नहीं, और अगर नहीं मिला, तो खाने का इंतज़ाम कैसे होगा।

झारखंड-बिहार के कोनों से आते हैं मजदूर, लेकिन उम्मीदों पर पानी फिर जाता है

यह मंडी कोडरमा और आसपास के जिलों के अलावा बिहार के रजौली, टनकुप्पा, पहाड़पुर और गिरिडीह के सरिया-पारसनाथ इलाकों से आने वाले मजदूरों का केंद्र है। यहाँ स्थानीय मजदूरों के साथ बाहरी श्रमिकों की भीड़ रोज़ देखी जाती है। एक मजदूर ने बताया:

“हमारे लिए तो हर दिन मजदूर दिवस है, लेकिन अगर आज छुट्टी मना लें, तो घर में चूल्हा कैसे जलेगा?”

यहां न कोई स्थायी रोजगार है, न ही किसी प्रकार की सरकारी पहचान प्रणाली। जो पहले आते हैं, उनकी मजदूरी की संभावना थोड़ी ज्यादा होती है, लेकिन कोई गंभीर योजना या व्यवस्था अब तक नहीं बनाई गई है।

सामाजिक सुरक्षा और सरकारी उपस्थिति का पूरी तरह अभाव

सबसे गंभीर चिंता इस बात की है कि इस तरह की बड़ी श्रमिक मंडियों में भी कोई भी सरकारी पहल नजर नहीं आती। यहां न रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था है, न न्यूनतम मजदूरी की गारंटी, और न कोई स्वास्थ्य-सुरक्षा योजना। मजदूरों को खुले आसमान के नीचे श्रमिक जीवन का सबसे कठिन चेहरा जीना पड़ता है।

इतना ही नहीं, कई बार पूरे दिन खड़े रहने के बाद भी मजदूरी नहीं मिलती, और खाली हाथ लौटना पड़ता है। मजदूर दिवस पर आयोजित झांकी और मंचीय भाषणों से कोसों दूर यह मंडी हकीकत की ज़मीन पर खड़ी है।

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