बारेसाढ़ सरनाधाम में वट सावित्री व्रत पर सुहागिनों ने की वटवृक्ष पूजा, पति की लंबी उम्र की मांगी दुआ

#व्रत #गारू – सोलह श्रृंगार, सावित्री-सत्यवान की प्रतिमा, बरगद की पूजा और चरण स्पर्श – लातेहार में दिखा श्रद्धा का अनुपम संगम

वट सावित्री व्रत : लातेहार की महिलाओं ने निभाई परंपरा, दिखा अपार समर्पण

लातेहार जिले के गारु प्रखंड सहित सरनाधाम बारेसाढ़ में सोमवार को वट सावित्री व्रत पूरे श्रद्धा और धार्मिक आस्था के साथ मनाया गया। इस अवसर पर सैकड़ों सुहागिन महिलाओं ने पारंपरिक परिधानों में सोलह श्रृंगार कर वटवृक्ष की पूजा की और पति की दीर्घायु व सुखमय दांपत्य जीवन की कामना की।

सुबह से ही मंदिरों और बरगद के पेड़ों के पास श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। महिलाओं ने वटवृक्ष के नीचे सावित्री-सत्यवान की प्रतिमा स्थापित कर विधिपूर्वक धूप, दीप, रोली, सिंदूर, नैवेद्य और जल से पूजा-अर्चना की। इस दौरान बरगद की जड़ में जल अर्पित कर रक्षा सूत्र भी बांधा गया।

क्यों होता है वटवृक्ष की पूजा?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वटवृक्ष को अत्यंत पवित्र माना गया है। कहा जाता है कि इसकी जड़ में ब्रह्मा, तने में विष्णु और अग्रभाग में शिव का वास होता है। यही नहीं, देवी सावित्री ने इसी वृक्ष के नीचे यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। तभी से यह व्रत भारतीय स्त्रियों के लिए आस्था और समर्पण का प्रतीक बन गया है।

पतियों के चरणों में आस्था का अर्पण

पूजन के उपरांत महिलाओं ने अपने पतियों को पंखा झलकर शीतलता प्रदान की और चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया। यह पारंपरिक रिवाज प्रेम, श्रद्धा और पतिव्रता धर्म की अनूठी मिसाल है, जो आज भी ग्रामीण संस्कृति में जीवंत है।

गारु में रहा भक्तिमय माहौल

गारु प्रखंड के मंदिरों से लेकर गांव-गांव तक, जहां भी वटवृक्ष मौजूद हैं, वहां महिलाओं का जमावड़ा लगा रहा। दिनभर पूरे क्षेत्र में भक्ति, उल्लास और धार्मिक एकता का वातावरण बना रहा। महिलाओं की इस आस्था और परंपरा के प्रति समर्पण ने गांव को धार्मिक रंग में रंग दिया।

न्यूज़ देखो : परंपरा में छिपा है सामाजिक सौंदर्य

‘न्यूज़ देखो’ मानता है कि भारतीय परंपराएं केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि सामाजिक एकता, प्रेम और त्याग की नींव होती हैं। वट सावित्री व्रत में महिलाओं का समर्पण सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि परिवार और समाज के प्रति उनकी भूमिका को रेखांकित करता है। लातेहार की यह सांस्कृतिक झलक आने वाली पीढ़ियों को परंपरा से जुड़ने की प्रेरणा देगी।

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