#नईदिल्ली #रेलसेवा : जनता के हक़ की आवाज़ संसद से मंत्रालय तक पहुंचाई गई
- चतरा सांसद कालीचरण सिंह ने रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से की मुलाकात।
- लातेहार, चंदवा (टोरी) और रिचुगुटा स्टेशनों की समस्याओं को गंभीरता से उठाया।
- राजधानी एक्सप्रेस सहित 6 ट्रेनों के ठहराव की मांग रखी गई।
- स्टेशन क्षेत्र के छात्र, किसान, मजदूर, महिलाएं लंबे समय से कर रहे हैं यह मांग।
- सांसद ने कहा – यह सुविधा नहीं, सम्मान और हक़ की बात है।
जनता की वर्षों पुरानी मांगों को लेकर आज चतरा सांसद कालीचरण सिंह ने दिल्ली में केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से मुलाकात की। उन्होंने लातेहार, चंदवा (टोरी) और रिचुगुटा रेलवे स्टेशन की समस्याओं को उनके समक्ष बेहद गंभीरता से रखते हुए प्रमुख ट्रेनों के ठहराव की मांग की।
क्षेत्र की जीवनरेखा बन चुके हैं ये स्टेशन
सांसद ने बताया कि ये स्टेशन आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्र के लिए जीवनरेखा हैं। हज़ारों की संख्या में छात्र, किसान, महिला, मजदूर प्रतिदिन इन मार्गों से यात्रा करते हैं, लेकिन कई प्रमुख ट्रेनों का ठहराव नहीं होने से उन्हें कई किलोमीटर दूर अन्य स्टेशनों तक जाना पड़ता है। इससे समय, श्रम और आर्थिक नुकसान होता है।
किन ट्रेनों पर उठी ठहराव की मांग
सांसद कालीचरण सिंह ने रेल मंत्री से विशेष आग्रह करते हुए निम्नलिखित ट्रेनों के ठहराव की सुझाव-पत्र सौंपा:
लातेहार व चंदवा (टोरी) के लिए:
- 12453/54 और 20407/08 – राजधानी एक्सप्रेस (रांची-दिल्ली)
रिचुगुटा स्टेशन के लिए:
- 18635/36 – रांची-सासाराम इंटरसिटी एक्सप्रेस
- 18613/14 और 18631/32 – रांची-चोपन एक्सप्रेस
- 13347/48 – पलामू एक्सप्रेस
- 11447/48 – शक्तिपुंज एक्सप्रेस
सांसद कालीचरण सिंह ने कहा: “यह सिर्फ ट्रेन ठहराव की मांग नहीं है, बल्कि हमारे गांव-घर के सम्मान, मूलभूत सुविधा और विकास के हक़ की आवाज़ है।”
मंत्री ने दिया आश्वासन
बैठक के दौरान रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सांसद की बातों को गंभीरता से सुना और हर प्रस्ताव की संभावनाओं पर विभागीय स्तर पर विचार का भरोसा दिलाया। उन्होंने कहा कि जनता की सुविधा सर्वोपरि है और उनकी ओर से सभी सुझावों की समीक्षा की जाएगी।

न्यूज़ देखो: लोकतंत्र की जुड़ाव का जीवंत उदाहरण
जब सांसद खुद जनता की ज़रूरतों को मंत्रालय के दरवाज़े तक पहुंचाएं, तो यह लोकतंत्र की सबसे जीवंत तस्वीर होती है। कालीचरण सिंह की यह पहल यह दिखाती है कि जनप्रतिनिधित्व तब सार्थक होता है जब वह जनभावनाओं से जुड़ा हो।
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