
#महुआडांड़ #किसान_संकट : समय पर धान खरीद केंद्र नहीं खुलने से किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है — बिचौलिये कम दाम पर धान खरीद रहे हैं।
- महुआडांड़ प्रखंड में दिसंबर के मध्य तक एक भी सरकारी धान क्रय केंद्र नहीं खुला।
- MSP 23.69 रुपये, झारखंड का बोनस जोड़कर 24.69 रुपये प्रति किलो, लेकिन किसानों को मिल रहे हैं सिर्फ 14–15 रुपये।
- पड़ोसी राज्यों में 31 रुपये तक धान खरीद और 72 घंटे में भुगतान, जिससे किसानों को पूरा लाभ।
- झारखंड में देरी, बोनस की कमी और भुगतान की अनिश्चितता के कारण किसानों को 900–1000 रुपये प्रति क्विंटल का नुकसान।
- पूरे महुआडांड़ क्षेत्र में किसानों में सरकार की नीतियों को लेकर गहरा आक्रोश।
महुआडांड़ (झारखंड)।
महुआडांड़ प्रखंड में धान की कटाई पूरी हो चुकी है, लेकिन किसानों की आर्थिक चिंता अब पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है। केंद्र सरकार ने धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 23.69 रुपये प्रति किलो तय किया है, जबकि झारखंड सरकार ने मात्र 1 रुपये बोनस देकर इसे 24.69 रुपये प्रति किलो किया है। इसके बावजूद दिसंबर का पहला पखवाड़ा गुजर गया और एक भी सरकारी धान खरीद केंद्र न खुलने से किसान गहरे संकट में फंस गए हैं। मजबूरी में किसान 14–15 रुपये प्रति किलो की दर से बिचौलियों को धान बेच रहे हैं, क्योंकि उनके सामने खाद–बीज, अगली फसल की तैयारी, बच्चों की पढ़ाई और घर चलाने जैसी अहम जरूरतें हैं। भुगतान की कोई गारंटी न होने और खरीद शुरू न होने से किसानों में भारी नाराजगी है।
महुआडांड़ में धान खरीद केंद्र बंद, किसान परेशान
महुआडांड़ प्रखंड के किसान इन दिनों अधिकतर गांवों में धान बेचने के लिए बिचौलियों पर निर्भर हैं। सरकारी खरीद के इंतजार में उनकी फसल गोदामों और घरों में पड़ी हुई है, लेकिन बढ़ते खर्चों और कर्ज़ के दबाव के कारण वे मजबूरी में कम दाम पर बेचने को विवश हैं। किसानों का कहना है कि यदि खरीद केंद्र समय पर खुल जाते तो वे अपनी उपज का सही मूल्य प्राप्त कर पाते।
MSP तय, लेकिन लाभ से दूर किसान
केंद्र ने जहाँ धान का MSP 23.69 रुपये प्रति किलो निर्धारित किया है, वहीं झारखंड सरकार का बोनस मात्र 1 रुपया है, जो किसानों को राहत देने के लिए नाकाफी साबित हो रहा है। महुआडांड़ प्रखंड में सरकारी खरीद बंद रहने का सीधा फायदा उन बिचौलियों को मिल रहा है जो किसानों से 14–15 रुपये प्रति किलो में धान खरीदकर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं।
किसानों के अनुसार यह स्थिति उन्हें प्रति क्विंटल 900–1000 रुपये का नुकसान करा रही है।
पड़ोसी राज्यों में समय पर खरीद, बेहतर भुगतान
महुआडांड़ के किसान बताते हैं कि पड़ोसी राज्यों में किसानों को बहुत बेहतर समर्थन मिल रहा है।
- छत्तीसगढ़: 31 रुपये प्रति किलो, खरीद 15 नवंबर से जारी, 72 घंटे में भुगतान
- ओडिशा: 31.69 रुपये प्रति किलो
- केरल: 28.69 रुपये प्रति किलो
- असम: 26.19 रुपये प्रति किलो
- पश्चिम बंगाल: 23.89 रुपये प्रति किलो
- उत्तर प्रदेश: 23.69 रुपये प्रति किलो
इन राज्यों में अक्टूबर–नवंबर से खरीद शुरू हो जाती है, जिससे बिचौलियों की भूमिका लगभग खत्म हो गई है और किसानों को पूरा लाभ मिलता है। वहीं झारखंड में देरी और प्रक्रिया की अस्पष्टता किसानों को नुकसान पहुँचा रही है।
किसान सरकार से जवाब मांग रहे हैं
महुआडांड़ प्रखंड के कई किसान बताते हैं कि उन्होंने बार–बार अधिकारियों से खरीद केंद्र खोलने की मांग की, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। इसके चलते क्षेत्र में सरकार की नीतियों को लेकर भारी असंतोष है।
किसानों का कहना है कि यदि खरीद शुरू होती और भुगतान सुनिश्चित होता, तो उन्हें इतना बड़ा नुकसान नहीं झेलना पड़ता।
एक स्थानीय किसान ने कहा: “हमारा धान गोदाम में सड़ रहा है, लेकिन सरकारी केंद्र नहीं खुल रहा। मजबूरी में आधे दाम पर बेच रहे हैं। सरकार अगर समय पर खरीद शुरू करे तो हम सही भाव पा सकते हैं।”
आर्थिक संकट बढ़ा, रबी फसल पर प्रभाव
धान बेचकर किसान जो पैसे जुटाते हैं, उसी से वे अगली फसल की तैयारी करते हैं। लेकिन फसल का उचित मूल्य न मिलने से किसान खाद–बीज खरीदने, खेत की जुताई कराने और रबी सीजन की बुवाई करने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं।
कई किसान बताते हैं कि इस बार जितना नुकसान हो रहा है, उसकी भरपाई करना आने वाले सालों में भी मुश्किल होगा।
बिचौलियों की मनमानी बढ़ी
सरकारी खरीद न होने से महुआडांड़ क्षेत्र में बिचौलिये गांव–गांव जाकर किसानों से मनमाने दाम पर धान उठा रहे हैं। बिना विकल्प के किसानों को उनकी शर्तें माननी पड़ रही हैं।
यदि सरकारी खरीद केंद्र खुले होते, तो न केवल किसानों को सही दाम मिलता बल्कि बिचौलियों की बेवजह की दखलअंदाजी भी समाप्त हो जाती।
न्यूज़ देखो: किसानों की मेहनत का उचित मूल्य कब?
महुआडांड़ के किसान जिस संकट से गुजर रहे हैं, वह प्रशासनिक देरी और नीतिगत कमी को स्पष्ट तौर पर उजागर करता है। पड़ोसी राज्यों का मॉडल यह साबित करता है कि सही प्रबंधन और समय पर खरीद से किसानों को आर्थिक सुरक्षा दी जा सकती है।
झारखंड में किसानों को सिर्फ 1 रुपये बोनस और अनियमित खरीद व्यवस्था देकर राहत नहीं दी जा सकती।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
समाधान की उम्मीद, जागरूकता की जिम्मेदारी
किसान हमारी अन्न–शक्ति हैं, और उनकी हर समस्या सीधे समाज की स्थिरता से जुड़ी होती है। जब उनकी फसल का उचित मूल्य नहीं मिलता, तब केवल उनका ही नहीं बल्कि पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। हमें अपनी आवाज़ के जरिए उन्हें समर्थन देना होगा और पारदर्शी नीतियों की मांग को आगे बढ़ाना होगा।





