
#रांचीपड़हाजतरा #आदिवासी_समाज – पुरखों की पड़हा व्यवस्था अब भी जीवित, शिक्षा से मिलेगी नई ताकत
- बारीडीह और बाजारटांड़ में पारंपरिक राजकीय पड़हा जतरा महोत्सव का आयोजन
- शिल्पी नेहा तिर्की ने कहा: पड़हा व्यवस्था आदिवासी समाज की आत्मा है
- आधुनिकता के दौर में सामूहिकता और सामाजिक एकता पर संकट
- शिक्षा से ही पुरखों की परंपरा को नया आधार मिलेगा
- समाज की प्रगति के लिए एकजुटता और नेतृत्व की पहचान जरूरी
पड़हा जतरा: जीवित परंपरा का उत्सव
रांची के बेड़ों प्रखंड स्थित बारीडीह गांव में 36वां पारंपरिक राजकीय पड़हा जतरा और बेड़ों बाजारटांड़ में 59वां जतरा महोत्सव मनाया गया। इसमें मुख्य अतिथि के रूप में झारखंड की कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की शामिल हुईं। उन्होंने कहा कि:
“पड़हा का अर्थ है गांव का स्वरूप, जिसमें आदिवासी समाज की सामूहिक पहचान और न्याय व्यवस्था छिपी है।”
पुरखों की राह पर सामूहिक चेतना
मंत्री ने जताया कि पड़हा व्यवस्था केवल आदिवासियों की नहीं, बल्कि सदनों का भी संरक्षण करती है। यह एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जहां पुरुषों और महिलाओं को समान दृष्टि से देखा जाता है।
“इस समाज में भले ही औपचारिक शिक्षा की कमी हो, लेकिन व्यवहारिक ज्ञान की कोई कमी नहीं है।”
आधुनिकता बनाम परंपरा: संघर्ष जारी है
शिल्पी नेहा तिर्की ने चेताया कि आधुनिकता के नाम पर पड़हा व्यवस्था को अपने-अपने ढंग से चलाने की प्रवृत्ति समाज की सामूहिक एकता को खतरे में डाल रही है। उन्होंने कहा कि यह जतरा इस बात का प्रमाण है कि पुरखों की व्यवस्था आज भी जीवित है।
“अगर हम एकजुट नहीं रहेंगे, तो केवल इतिहास बनकर रह जाएंगे।”
शिक्षा से ही आएगा बदलाव
मंत्री ने इस अवसर पर शिक्षा पर विशेष बल देते हुए कहा कि समाज का विकास तभी संभव है जब वह पढ़ेगा और लिखेगा। शिक्षा ही पड़हा व्यवस्था को मजबूती प्रदान कर सकती है।
“हमें अपने समाज के असली नेता की पहचान करनी होगी और व्यक्तिगत हित छोड़कर सामाजिक मुद्दों पर एकजुट होना होगा।”



न्यूज़ देखो: परंपरा और प्रगति का संगम
पड़हा जतरा न केवल सांस्कृतिक उत्सव है, बल्कि सामाजिक चेतना और एकता की मिसाल भी है। न्यूज़ देखो इस बात के लिए प्रतिबद्ध है कि ऐसी परंपराओं को नई पीढ़ी तक पहुँचाया जाए और उनका वास्तविक महत्व उजागर किया जाए।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
इतिहास नहीं, वर्तमान बनें: सामूहिकता और शिक्षा ही भविष्य की कुंजी
मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की का संदेश इस बात का संकेत है कि समाज की पुरानी व्यवस्थाएं आज भी प्रासंगिक हैं। उन्हें बचाने और मजबूत करने के लिए एकजुटता, शिक्षा और नेतृत्व की सही पहचान जरूरी है।