Palamau

पलामू और बूढ़ापहाड़ में बदला माहौल: नक्सली खौफ से पलायन करने वाले लोग लौटने लगे

  • नक्सलियों के डर से पलायन करने वाले लोग लौटने लगे अपने गांव
  • बूढ़ापहाड़ और बिहार सीमा तक लौटे सैकड़ों परिवार
  • डगरा गांव में 160 लोगों में से 120 लोग लौटे
  • पुलिस कैंप और पिकेट से बदले हालात
  • माओवादी हिंसा की कहानी अब अतीत बनती जा रही है

लौट रही है रौनक
पलायन कर चुके लोग अब अपने घरों की ओर लौट रहे हैं। पलामू के नौडीहा बाजार थाना क्षेत्र के डगरा गांव में 160 से ज्यादा लोग नक्सलियों के खौफ से गांव छोड़ चुके थे, लेकिन 2020 से अब तक 120 से अधिक लोग गांव लौट आए हैं। बूढ़ापहाड़ के बहेराटोली, नावाटोली और तिसिया में भी कई परिवार वापस लौट चुके हैं।

तीन दशक बाद घर वापसी
बूढ़ापहाड़ निवासी श्याम यादव के पिता और भाई की 30 साल पहले माओवादियों ने हत्या कर दी थी। सुरक्षा बलों के बूढ़ापहाड़ पर कब्जे के बाद उनका परिवार भी तीन दशक बाद अपने गांव लौट सका है।

क्या था वो खौफ?
90 के दशक से शुरू हुआ नक्सली हिंसा का दौर 2000 के बाद चरम पर पहुंचा। 2004 में बड़े संगठनों के विलय और 2006-07 में टीएसपीसी, पीएलएफआई जैसे नए संगठनों के गठन से स्थिति और भयावह हो गई। आपसी संघर्ष में ग्रामीणों को मारा जाता था और पुलिस के लिए मुखबिर होने के संदेह में हत्याएं की जाती थीं।

“हाल के दिनों में हालात तेजी से बदले हैं, 120 से ज्यादा लोग अपने गांव लौट आए हैं। पहले नक्सलियों के डर से लोग भाग गए थे और परिवार के सदस्यों की हत्या कर दी गई थी।”
– सिकंदर सिंह, पूर्व मुखिया डगरा पंचायत, पलामू

बच्चों का अपहरण और जबरन शामिल करने का दौर
2004-05 के बाद नक्सली संगठनों ने हिंसा तेज कर दी। वे रात गुजारने के लिए गांवों में रुकते थे और हर घर से भोजन की मांग करते थे। बच्चों को दस्ते में जबरन शामिल किया जाता था।

“2021 में मैट्रिक की परीक्षा देने के बाद गांव गया था। सूचना मिली कि नक्सली बच्चों को अपने दस्ते में शामिल कर रहे हैं। हम तीनों भाई घर छोड़ जंगल में भागे और पूरी रात वहीं रहे। अब हालात बदल गए हैं और हम गांव में सुरक्षित हैं।”
– बूढ़ापहाड़ के तुरेर गांव का युवक

“नक्सली गांव में आते थे। बाहर जाने वाले को मुखबिर बताकर पीटा जाता था। कई बार बच्चों का अपहरण भी कर लिया जाता था। हर घर से उनके लिए खाना बनाना पड़ता था।”
– इमामुद्दीन, ग्रामीण, बूढ़ापहाड़

पिकेट और पुलिस कैंप ने बदले हालात
2015-16 के बाद नक्सल विरोधी अभियान ने रफ्तार पकड़ी। माओवादी इलाकों में पिकेट स्थापित किए गए, जिससे उनकी आपूर्ति लाइन बंद हो गई। पलामू में 17, गढ़वा में 27 और लातेहार में 40 से ज्यादा पिकेट स्थापित किए गए। 2022 में छकरबंधा और 2023 में बूढ़ापहाड़ पूरी तरह पुलिस नियंत्रण में आ गया, जिससे गांवों में रौनक लौटने लगी।

“सुरक्षा बलों की कार्रवाई और पुलिस कैंप की वजह से अब माहौल सुरक्षित है। पहले का डर खत्म हो गया है। सरेंडर नीति और पुलिस की सख्ती ने नक्सल प्रभाव कम किया है और लोग मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं।”
– वाईएस रमेश, डीआईजी, पलामू

न्यूज़ देखो : बदलते हालात की नई कहानी
पलामू और बूढ़ापहाड़ के इलाकों में दशकों का नक्सली आतंक अब बीते दिनों की बात बनता जा रहा है। सुरक्षा बलों की सख्त कार्रवाई, पुलिस पिकेट की स्थापना और स्थानीय लोगों के हौंसले ने बदलाव की कहानी लिखी है। लेकिन क्या यह बदलाव स्थायी रहेगा? क्या आने वाले दिनों में ये गांव हमेशा के लिए शांत रह पाएंगे? न्यूज़ देखो इन सवालों पर लगातार नजर बनाए रखेगा और पल-पल की खबर आप तक पहुंचाता रहेगा।

यह खबर आपके लिए कितनी महत्वपूर्ण थी?

रेटिंग देने के लिए किसी एक स्टार पर क्लिक करें!

इस खबर की औसत रेटिंग: 0 / 5. कुल वोट: 0

अभी तक कोई वोट नहीं! इस खबर को रेट करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

चूंकि आपने इस खबर को उपयोगी पाया...

हमें सोशल मीडिया पर फॉलो करें!

Radhika Netralay Garhwa
Engineer & Doctor Academy
आगे पढ़िए...
नीचे दिए बटन पर क्लिक करके हमें सोशल मीडिया पर फॉलो करें

Related News

Back to top button
error: