
#पलामू #मजदूरकीमौत : सवाल बड़ा है — रोजगार के अभाव में गांव के नौजवान कब तक यूं ही दूर शहरों में जान गंवाते रहेंगे?
- तीसीबार कला गांव के सुनील कुमार की नासिक में सड़क हादसे में मौत।
- तेज़ रफ्तार ट्रक की चपेट में आने से मौके पर ही दम तोड़ा।
- पत्नी और दो छोटे बच्चे बेसहारा, गांव में पसरा मातम।
- ग्रामीणों ने उठाई स्थानीय रोजगार और मुआवज़ा की मांग।
- सरकारी बेरुखी और पलायन की पीड़ा पर फिर उठा सवाल।
तीसीबार पंचायत के तीसीबार कला गांव में उस वक्त मातम पसर गया जब खबर आई कि गांव के 30 वर्षीय प्रवासी मजदूर सुनील कुमार की महाराष्ट्र के नासिक में सड़क हादसे में मौत हो गई। सुनील कुमार, पिता असरफी राम, कुछ समय पहले ही अपने परिवार का पेट पालने के लिए मजदूरी करने नासिक गए थे। वहां वह एक प्राइवेट कंपनी में काम कर रहे थे। बताया गया कि रोज की तरह वह बाजार से सब्जी लेने निकले थे, तभी एक तेज रफ्तार ट्रक ने उन्हें कुचल दिया।
हादसे ने छीन लिया परिवार का सहारा
गांव में खबर पहुंचते ही कोहराम मच गया। सुनील की पत्नी और दो मासूम बच्चे बेसहारा हो गए हैं। परिजन रो-रोकर बेहाल हैं और गांवभर में गमगीन माहौल बना हुआ है। ग्रामीणों ने बताया कि सुनील मेहनती और मिलनसार युवक था, जो परिवार के लिए दिन-रात पसीना बहाता था। किसी ने नहीं सोचा था कि दूर शहर गया बेटा अब कभी वापस नहीं लौटेगा।

ग्रामीणों में गुस्सा और पीड़ा
घटना के बाद गांव के लोगों में गहरा आक्रोश है। उन्होंने कहा कि यह केवल सुनील की नहीं, सैकड़ों गरीब मजदूरों की कहानी है, जो स्थानीय रोजगार के अभाव में दूसरे राज्यों में जाकर जान गंवा रहे हैं। ग्रामीणों ने सरकार से मांग की है कि मृतक के परिवार को मुआवज़ा दिया जाए और गांव में स्थायी रोजगार की व्यवस्था की जाए।
स्थानीय ग्रामीण संतोष चंद्रवंशी ने कहा: “हर साल कोई न कोई मजदूरी के लिए बाहर जाता है और किसी हादसे का शिकार हो जाता है। सरकार सिर्फ वादे करती है, जमीन पर कुछ नहीं होता।”
प्रशासन से न्याय की गुहार
ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से मदद और सहयोग की गुहार लगाई है। लोगों का कहना है कि सुनील की मौत एक सामान्य दुर्घटना नहीं, बल्कि एक प्रणालीगत विफलता का परिणाम है। अगर पंचायत और प्रखंड स्तर पर रोजगार, स्वरोजगार योजनाएं, उद्योग और प्रशिक्षण केंद्र होते, तो किसी को पलायन नहीं करना पड़ता।
शोक संवेदना के साथ राजनीतिक संदेश
घटना के बाद कई स्थानीय जनप्रतिनिधि और सामाजिक कार्यकर्ता सुनील के घर पहुंचे और परिवार को सांत्वना दी। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वे इस मुद्दे को प्रशासनिक और राजनीतिक स्तर पर उठाएंगे ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।
पूर्व मुखिया प्रतिनिधि सुरेश यादव ने कहा: “सरकार को अब आंकड़ों की बजाय जमीनी हकीकत से काम लेना होगा। गांव में फैली बेरोजगारी सबसे बड़ी त्रासदी बन चुकी है।”
न्यूज़ देखो: पलायन की पीड़ा और सरकारी संवेदनहीनता की तस्वीर
सुनील कुमार की मौत सिर्फ एक सड़क हादसा नहीं, बल्कि झारखंड के गांवों में पसरे बेरोजगारी के दर्द की कहानी है। प्रवासी मजदूरों की बेबसी, स्थानीय रोजगार का अभाव और प्रशासन की अनदेखी — ये सब मिलकर एक ऐसा तंत्र बनाते हैं जिसमें गरीब फंसता ही चला जाता है। सरकार को अब कागजी योजनाओं से निकलकर गांवों की असल ज़रूरतों पर ध्यान देना होगा।
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