‘पलमुआ’ बोली की अधिसूचना की उठी जोरदार मांग: स्थानीय युवाओं ने दी चेतावनी, कहा- “बोली ही हमारी पहचान”

#पलामू #स्थानीयभाषाविवाद — शिक्षक पात्रता परीक्षा में भाषा चयन पर विवाद, युवाओं ने पलमुआ बोली को भी मान्यता देने की मांग की

झारखंड TET में स्थानीय भाषा चयन पर बवाल, पलामू में युवाओं का उग्र रुख

पलामू, 13 जून – झारखंड में शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) के लिए प्रस्तावित स्थानीय भाषाओं के चयन को लेकर राज्यभर में विवाद गहराता जा रहा है। खासकर पलामू और गढ़वा जिले में नागपुरी और कुड़ुख को अधिसूचित भाषा के रूप में प्रस्तावित किए जाने के बाद स्थानीय युवाओं में नाराजगी देखी जा रही है।

इसी क्रम में पलामू के युवाओं की एक टोली ने आज जिला शिक्षा अधीक्षक से मुलाकात कर भोजपुरी, मगही और हिंदी जैसी क्षेत्रीय भाषाओं को भी अधिसूचित भाषाओं में शामिल करने की मांग उठाई। इसके साथ ही ‘पलमुआ’ बोली को भी आधिकारिक मान्यता देने की मांग जोर पकड़ने लगी है।

क्यों खास है ‘पलमुआ’ बोली?

‘पलमुआ’ बोली पलामू और आसपास के क्षेत्रों में प्रचलित स्थानीय संप्रेषण का आधार रही है। युवाओं का मानना है कि यह बोली सिर्फ भाषा नहीं, बल्कि पलामू की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान है।

युवा प्रतिनिधि आशीष भारद्वाज ने कहा:

“पलामू की बोली ही इसकी असली पहचान है। सरकार की ओर से प्रस्तावित भाषाएं इस क्षेत्र की जमीनी हकीकत से मेल नहीं खातीं। हमारी यह लड़ाई सिर्फ परीक्षा की नहीं, पहचान की है।”

युवाओं की मांगें और अगली रणनीति

युवाओं की टीम ने शिक्षा विभाग को ज्ञापन सौंपते हुए निम्नलिखित मांगे रखी:

युवा नवीन तिवारी ने कहा:

“यह फैसला पलामू के हित में नहीं है। सरकार को प्रस्ताव पर पुनर्विचार करना चाहिए।”

वहीं मधुकर शुक्ला ने कहा:

“पलामू के युवा एकजुट हैं। यदि हमारी बात नहीं सुनी गई, तो बड़ा आंदोलन तय है।”

युवाओं ने जानकारी दी कि सोमवार को पुनः बैठक कर आगे की रणनीति तैयार की जाएगी

न्यूज़ देखो: पलामू की बोली को मिले पहचान

न्यूज़ देखो मानता है कि पलामू जैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध इलाके की स्थानीय भाषाओं की उपेक्षा सिर्फ परीक्षा नहीं, बल्कि पहचान पर प्रश्नचिन्ह है। सरकार को चाहिए कि भाषाई विविधता का सम्मान करते हुए निर्णय ले।
बोली बचाने की ये लड़ाई, पलामू के आत्मसम्मान की लड़ाई है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

पहचान की बात पर युवाओं का सशक्त स्वर

शिक्षा केवल किताबी ज्ञान नहीं, स्थानीय संस्कृति और भाषा का सम्मान भी है। अगर सरकार क्षेत्रीय युवाओं की आवाज़ अनसुनी करती है, तो यह लोकतांत्रिक मूल्यों और क्षेत्रीय अस्मिता के खिलाफ होगा
युवाओं की यह पहल न सिर्फ पलामू के लिए, बल्कि झारखंड की भाषाई आत्मनिर्भरता के लिए प्रेरणास्रोत बन सकती है।

Exit mobile version