#गढ़वासमाचार #सनराइज_हॉस्टल_कांड – नन्हें बच्चों के साथ अमानवीयता का मामला, नेता की संवेदनशीलता बनी राहत की किरण
- सनराइज हॉस्टल में मासूम बच्चों की बेरहमी से पिटाई का मामला उजागर
- 17 मई की रात बच्चे दर्द से बेहाल होकर हॉस्टल से भागे
- रंका मोड़ पर सहमे हुए बच्चों को झामुमो नेता मयंक द्विवेदी ने देखा
- बच्चों को दिलाया सुरक्षा और प्रशासन को दी सूचना
- हॉस्टल संचालक को चेतावनी, कार्रवाई की मांग
जब शिक्षा केंद्र बना प्रताड़ना गृह
गढ़वा जिला मुख्यालय के सुखबाना मोहल्ले में स्थित सनराइज हॉस्टल में 17 मई की रात जो हुआ, वह मानवता को झकझोर देने वाला था। शिक्षा के नाम पर छह से दस वर्ष के मासूम बच्चों को जिस तरह से पिटाई की आग में झोंका गया, वह अमानवीयता की सारी हदें पार कर गया।
हॉस्टल के शिक्षक और संचालक ने इन बच्चों को इतनी बेरहमी से पीटा कि वे जान बचाने के लिए दीवार फांदकर अंधेरे में भाग निकले।
आधी रात को भागे बच्चे पहुंचे रंका मोड़
रात करीब एक बजे, ये मासूम बच्चे गढ़वा के रंका मोड़ पर पहुंचे, जहां बिजली की रोशनी के नीचे वे सहमे और डरे हुए बैठे रहे।
न तो उन्हें कुछ खाने को था, न ही समझ में आ रहा था कि कहां जाएं। बस उम्मीद थी कि कोई फरिश्ता आकर उन्हें बचा ले।
और आ ही गया उनका मसीहा — मयंक द्विवेदी
संयोगवश उसी समय झारखंड मुक्ति मोर्चा के युवा नेता मयंक द्विवेदी वहां से गुजर रहे थे।
जब उनकी नजर इन डरे-सहमे बच्चों पर पड़ी, तो वे ठिठक गए।
“बच्चों की हालत देखकर मेरा दिल कांप गया। मैंने तुरंत पुलिस और अभिभावकों को बुलाया और बच्चों को सुरक्षित उनके घर पहुंचवाया,”
— मयंक द्विवेदी, झामुमो युवा नेता
उन्होंने न केवल बच्चों को ढाढ़स बंधाया, बल्कि मौके पर ही पुलिस से संपर्क कर बच्चों के अभिभावकों को सूचना दी। इस तत्परता से बच्चे सुरक्षित घर लौट सके।
हॉस्टल संचालक को चेतावनी, प्रशासन से कार्रवाई की मांग
मयंक द्विवेदी ने सनराइज हॉस्टल के संचालक को मौके पर ही फटकार लगाई और कड़े शब्दों में चेतावनी दी कि यदि भविष्य में ऐसी घटना दोहराई गई, तो कानून का शिकंजा कसना तय है।
उन्होंने प्रशासन से मांग की कि
“इस तरह के अमानवीय और संवेदनहीन संस्थानों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में कोई भी संस्था बच्चों के साथ ऐसी क्रूरता न कर सके।”
न्यूज़ देखो : जहां बच्चों की पीड़ा भी सुनी जाती है
न्यूज़ देखो उस सच्चाई को सामने लाता है, जिसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है।
इस घटना ने साबित कर दिया कि हर अंधेरे में एक रोशनी की उम्मीद होती है — और मयंक द्विवेदी उस उम्मीद के प्रतीक बने।
अब समय है — मासूमों को डर से मुक्ति दिलाने का
बच्चों के जीवन में शिक्षा की लौ जलाने के लिए हमें ऐसे संस्थानों और लोगों की पहचान करनी होगी जो उस लौ को बुझाने में लगे हैं।
आइए, मिलकर आवाज़ उठाएं ताकि हर बच्चा सुरक्षित और सम्मानपूर्वक जीवन जी सके — न्यूज़ देखो के साथ।