Garhwa

गढ़वा सदर अस्पताल में चिकित्सकों की गैरमौजूदगी से मरीजों की जिंदगी दांव पर, पुलिसकर्मी की मौत के बाद भी डॉक्टर रहे गायब

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#गढ़वा #अस्पताल_व्यवस्था – सरकारी अस्पताल में चिकित्सक नहीं, मरीज और परिवारों की हुई परेशानियां बढ़ीं

  • तीन घंटे तक इमरजेंसी में डॉक्टर की पूरी तरह गैरमौजूदगी
  • ब्रेन हेमरेज से पीड़ित सहायक पुलिसकर्मी की अस्पताल में मौत
  • मृत घोषित करने के लिए भी कोई चिकित्सक उपलब्ध नहीं था
  • अस्पताल के उपाधीक्षक और प्रबंधक बिना सूचना के नदारद
  • पुलिस ने सिविल सर्जन और एसडीओ से मांगी मदद, तब जाकर डॉक्टर पहुंचे
  • प्रशासन की चुप्पी और जवाबदेही के अभाव पर सवाल खड़े

तीन घंटे तक डॉक्टर नदारद, मरीज तड़पते रहे

गढ़वा जिले के प्रमुख सरकारी अस्पताल में रविवार सुबह तीन घंटे तक एक भी चिकित्सक ड्यूटी पर नहीं था। इस दौरान मझिआंव थाना क्षेत्र के मोरबे गांव निवासी 29 वर्षीय सहायक पुलिसकर्मी निरंजन कुमार गुप्ता, जो ब्रेन हेमरेज से पीड़ित थे, अस्पताल में इलाज के अभाव में तड़पते रहे।
रायपुर से बेहतर इलाज के लिए रांची रेफर किए गए निरंजन की हालत बिगड़ने पर वह अस्पताल पहुंचे, लेकिन डॉक्टर न होने के कारण उनकी मृत्यु को तुरंत घोषित नहीं किया जा सका।

जिम्मेदार अधिकारी भी अनुपस्थित, प्रशासन की बड़ी चूक

गढ़वा सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ. हरेन चंद्र महतो और अस्पताल प्रबंधक सुनील मणि त्रिपाठी दोनों बिना सूचना दिए गायब थे।
सिविल सर्जन डॉ. अशोक कुमार ने बताया कि उन्हें या उनके कार्यालय को दोनों अधिकारियों की अनुपस्थिति की कोई जानकारी नहीं थी।
उन्होंने यह भी कहा कि दोनों के खिलाफ शोकॉज प्रक्रिया शुरू कर दी गई है और मामले को राज्य सरकार को रिपोर्ट किया जाएगा ताकि उचित कार्रवाई हो सके।

पुलिस की पहल पर हुई मृत घोषित करने की कार्रवाई

डॉक्टरों की गैरमौजूदगी और अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही के कारण पुलिसकर्मियों को सिविल सर्जन और एसडीओ गढ़वा से संपर्क करना पड़ा।
पुलिसकर्मियों ने स्थिति से अवगत कराते हुए मदद मांगी। तब जाकर सुबह साढ़े दस बजे एक चिकित्सक अस्पताल पहुंचा और निरंजन कुमार को मृत घोषित किया गया, जिससे पोस्टमार्टम की प्रक्रिया शुरू हो सकी।

अस्पताल की व्यवस्था पर उठे गंभीर सवाल, प्रशासन पर भी चुप्पी का आरोप

यह मामला गढ़वा सदर अस्पताल की बिगड़ती स्थिति और अव्यवस्था की पोल खोलता है।
जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की मौन नीति से सवाल उठ रहे हैं कि आखिर कब तक अस्पताल में ऐसी लापरवाही जारी रहेगी।
यह घटना साफ़ करती है कि अस्पताल में जवाबदेही और जवाबदेही की संस्कृति का अभाव है, जो मरीजों की जान के लिए खतरा बन सकती है।

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