
#लावालौंग #स्वास्थ्य_व्यवस्था : जर्जर सड़क और सीमित स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण समय पर इलाज न मिलने से नवजात की दुखद मृत्यु, ग्रामीणों में रोष।
- लावालौंग प्रखंड के होसीर क्षेत्र में सड़क की दयनीय स्थिति के कारण ममता वाहन गांव तक नहीं पहुँच सका।
- आदिम जनजाति परहिया समुदाय की प्रसूता को ग्रामीणों और स्वास्थ्य कर्मियों ने बहंगी पर लगभग एक किलोमीटर उठाकर पहुंचाया।
- अस्पताल पहुँचते-पहुँचते प्रसूता की जान तो बची पर नवजात शिशु की मौत हो गई।
- ग्रामीणों ने कहा—अगर सड़क ठीक होती तो समय पर इलाज मिल पाता और जान बच सकती थी।
- घटना ने लावालौंग के दुर्गम इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं व आधारभूत संरचना की कड़वी सच्चाई उजागर कर दी।
- ग्रामीणों ने प्रशासन से तत्काल सड़क मरम्मत और बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने की मांग की।
लावालौंग प्रखंड के होसीर इलाके से एक दर्दनाक घटना सामने आई है, जिसने ग्रामीण क्षेत्रों की जमीनी वास्तविकता और आधारभूत सुविधाओं की कमी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आदिम जनजाति परहिया समुदाय की एक प्रसूता को प्रसव पीड़ा बढ़ने पर गांव से अस्पताल तक बहंगी के सहारे लाना पड़ा, क्योंकि गांव तक जाने वाली सड़क जर्जर होकर पूरी तरह दुर्गम हो चुकी है। समय पर चिकित्सा न मिल पाने के कारण नवजात शिशु ने जन्म के तुरंत बाद दम तोड़ दिया। यह घटना स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव और सड़क व्यवस्था की विफलता का दर्दनाक उदाहरण बनकर सामने आई है।
बहंगी पर एक किलोमीटर का संघर्ष
ग्रामीणों के अनुसार प्रसव पीड़ा बढ़ने पर ममता वाहन को तुरंत सूचना दी गई, लेकिन वाहन गांव तक पहुँच ही नहीं सका। सड़क की हालत इतनी खराब थी कि गाड़ी को रास्ते में ही रुकना पड़ा। ऐसे में स्वास्थ्य सहिया और ममता वाहन चालक की मदद से लकड़ी व कपड़े से बनी बहंगी तैयार की गई।
ग्रामीणों ने मिलकर प्रसूता महिला को लगभग एक किलोमीटर तक बहंगी में उठाकर उस स्थान तक पहुँचाया जहां वाहन इंतजार कर रहा था। यह सफर बेहद कठिन था—लगातार हिलती-डुलती राह, कीचड़ से भरे गड्ढे, पत्थरों से भरा रास्ता और हर कदम पर जोखिम।
अस्पताल में मिली देर से राहत, नवजात नहीं बच पाया
ममता वाहन से अस्पताल पहुँचने पर डॉक्टरों ने तुरंत महिला का इलाज शुरू किया। प्रयासों से उसकी जान बच गई, लेकिन घर से अस्पताल तक की देरी नवजात के लिए घातक साबित हुई। जन्म के बाद कुछ ही देर में शिशु ने दम तोड़ दिया।
ग्रामीणों ने भावुक होकर बताया कि यदि सड़क सही होती, तो प्रसूता को समय पर अस्पताल पहुँचाया जा सकता था और शायद नवजात की जान बच जाती।
एक ग्रामीण ने कहा: “वाहन गांव तक आ पाता तो यह हादसा नहीं होता। हमारे बच्चे की मौत सड़क की वजह से हुई है।”
सड़क की भयावह स्थिति: वर्षों से लंबित समस्या
होसीर और आसपास के इलाकों की सड़कें लंबे समय से मरम्मत की प्रतीक्षा कर रही हैं। बरसात के मौसम में ये रास्ते और भी खतरनाक हो जाते हैं। कहीं घुटनेभर कीचड़, कहीं पहाड़ी-पत्थरों का ढेर—इनसे होकर किसी भी वाहन का पहुँचना लगभग असंभव है।
ग्रामीणों का कहना है कि इस समस्या की शिकायत कई बार की गई, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
स्वास्थ्य सेवाओं की असलियत पर बड़ा सवाल
यह घटना केवल सड़क की खराबी का मुद्दा नहीं, बल्कि लावालौंग प्रखंड के दुर्गम इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की वास्तविक उपलब्धता और पहुंच पर भी बड़ा सवाल उठाती है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कई किलोमीटर दूर हैं, एम्बुलेंस पहुँचने का रास्ता नहीं होता, और आपात स्थिति में लोगों को अपने साधनों से ही संघर्ष कर अस्पताल पहुँचना पड़ता है।
ग्रामीणों की प्रशासन से गुहार
घटना के बाद ग्रामीणों में आक्रोश है। उनका कहना है कि ऐसी घटनाएँ लगातार होती रहती हैं, लेकिन किसी की सुनवाई नहीं होती।
ग्रामीणों ने मांग की है:
- सड़क का निर्माण या तत्काल मरम्मत हो
- अत्यधिक दुर्गम गांवों के लिए विशेष स्वास्थ्य वाहन की व्यवस्था हो
- जनजातीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए अतिरिक्त संसाधन उपलब्ध कराए जाएँ
उनका कहना है कि प्रशासन सक्रिय हो तो ऐसे दु:खद हादसों को रोका जा सकता है।
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यह घटना बताती है कि आधारभूत सुविधाओं की कमी सिर्फ असुविधा नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु का प्रश्न बन जाती है। लावालौंग जैसे क्षेत्रों में सड़क सुधार और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता को प्राथमिकता दिए बिना जनजीवन सुरक्षित नहीं हो सकता। प्रशासन, जनप्रतिनिधियों और विभागों को ऐसी घटनाओं को चेतावनी की तरह लेना चाहिए।
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जमीनी समस्याएँ अनदेखी न हों—जनभागीदारी से ही समाधान
दुर्गम गांवों में रहने वाले परिवार आज भी अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष करते हैं। सड़क, स्वास्थ्य और आपातकालीन सेवा हर नागरिक का अधिकार है। जब तक समाज और प्रशासन दोनों मिलकर काम नहीं करेंगे, बदलाव संभव नहीं।





