
#मेदिनीनगर #गरीबीकीमार : बीमारी और भूख से जूझते परिवार ने लिया दिल दहला देने वाला फैसला
- लेस्लीगंज थाना क्षेत्र के लोटवा कामलकेडिया गांव की दर्दनाक घटना।
- दंपति ने नवजात शिशु को 50 हजार रुपये में बेचा।
- बीमारी और भूख ने मजबूर किया यह कदम उठाने को।
- परिवार भूमिहीन और आवासहीन, सरकारी योजनाओं से वंचित।
- सीडब्ल्यूसी टीम पहुँची, बच्चे को वापस दिलाने और देखभाल का भरोसा।
मेदिनीनगर। गरीबी और लाचारी इंसान को किस हद तक मजबूर कर सकती है, इसका जीता-जागता उदाहरण पलामू जिले के लेस्लीगंज थाना क्षेत्र से सामने आया है। यहां रामचंद्र राम और उनकी पत्नी पिंकी देवी ने अपने नवजात शिशु को मात्र 50 हजार रुपये में बेच दिया। परिवार का कहना है कि यह कदम उन्होंने बीमारी और भूख से तड़पती ज़िंदगी को बचाने के लिए उठाया।
टूटी उम्मीदों का परिवार
यह परिवार भूमिहीन और आवासहीन है। वे एक पुराने सरकारी शेड में रहते हैं, जो कभी पूर्व विधायक ने बनवाया था। आधार कार्ड न होने के कारण सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है। रामचंद्र मजदूरी कर परिवार का पेट पालते हैं, लेकिन काम न मिलने पर उन्हें गांव में दूसरों से खाना मांगना पड़ता है।
पिंकी की मजबूरी
पिंकी देवी ने बताया कि उनके पिता ने आधा कट्ठा जमीन दी थी, लेकिन घर बनाने के पैसे नहीं जुटा पाए। अक्सर परिवार को भूखा सोना पड़ता था। रक्षाबंधन के दिन शेड में ही पिंकी ने बच्चे को जन्म दिया। इसके बाद उसकी तबियत बिगड़ गई और पति भी लगातार बारिश के कारण मजदूरी नहीं कर पाए। इलाज और भोजन के पैसे जुटाने के लिए दंपति ने नवजात को बेचने का फैसला कर लिया।
प्रशासन और सीडब्ल्यूसी की पहल
मामला सामने आने के बाद चाइल्ड वेलफेयर कमिटी (सीडब्ल्यूसी) की टीम मौके पर पहुंची। उन्होंने भरोसा दिलाया कि न सिर्फ बिके हुए बच्चे को वापस लाया जाएगा, बल्कि परिवार के बाकी बच्चों की देखभाल, शिक्षा और पालन-पोषण की जिम्मेदारी भी उठाई जाएगी।
भूख और बेरोजगारी की करुण कहानी
यह घटना झारखंड के ग्रामीण समाज की सच्चाई बयां करती है। गरीबी, बेरोजगारी और सामाजिक उपेक्षा की मार से त्रस्त परिवार कभी-कभी ऐसे दर्दनाक फैसले लेने पर मजबूर हो जाते हैं। यह केवल एक परिवार की नहीं, बल्कि उन हजारों गरीब परिवारों की कहानी है जो बुनियादी जरूरतों से जूझ रहे हैं।
न्यूज़ देखो: गरीबी से लड़ती जिंदगियों को चाहिए सहारा
ऐसे मामले समाज और सरकार दोनों के लिए चेतावनी हैं। यदि बुनियादी सुविधाएं समय पर नहीं मिलीं, तो मजबूरियां और भी भयावह रूप ले सकती हैं। जरूरत है संवेदनशील नीतियों और जमीनी स्तर पर कारगर क्रियान्वयन की, ताकि किसी मां को अपनी संतान को बेचने की नौबत न आए।
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अब जागरूक समाज की दरकार
यह समय है कि हम सब समाज के सबसे कमजोर तबके तक मदद पहुँचाने की जिम्मेदारी लें। भूख और मजबूरी से जूझते परिवारों को राहत मिले, यही असली विकास है। आप क्या सोचते हैं, क्या सरकार और समाज मिलकर ऐसी घटनाओं को रोक सकते हैं? अपनी राय कॉमेंट करें और इस खबर को शेयर करें।