
#लातेहार #महुआडांड़ : “साहब को बता दिए हैं” में उलझा सिस्टम, जनता की दिनचर्या ठप
- 12 घंटे से बिजली आपूर्ति पूरी तरह ठप, ग्रामीणों में आक्रोश
- मोबाइल नेटवर्क, जल आपूर्ति, दुकानें और पढ़ाई – सब कुछ ठप
- जरूरत 18 मिस्त्रियों की, कार्यरत हैं केवल 9
- जनता बोली: सालभर कभी ट्रांसफॉर्मर, कभी लाइन, अब किसे दोष दें?
- बिजली विभाग ने फिर स्टाफ की कमी और फॉल्ट का बहाना बनाया
बिजली नहीं, व्यवस्था बंद!
महुआडांड़ प्रखंड एक बार फिर अंधेरे में डूब गया है। बीते 12 घंटे से पूरी बिजली आपूर्ति ठप है, जिससे सैकड़ों गांवों में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। न तो मोबाइल चार्ज हो पा रहे हैं, न बच्चों की पढ़ाई चल रही है। गांवों में पेयजल संकट भी गहराता जा रहा है क्योंकि मोटर पंप बंद हैं। दुकानदारों का कहना है कि बिक्री शून्य हो गई है और रोज़गार पर गहरा असर पड़ा है।
सिस्टम खुद लाचार, मिस्त्री बेहाल
प्रखंड में जहां कम से कम 18 बिजली मिस्त्रियों की आवश्यकता है, वहां केवल 9 मिस्त्री कार्यरत हैं। एक लाइन ठीक करने निकलो, तब तक बाकी इलाकों में अंधेरा फैल चुका होता है। स्थानीय बिजलीकर्मियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वे सीमित संसाधनों और मामूली वेतन में पूरे क्षेत्र को चलाने की कोशिश कर रहे हैं। अब यह सिर्फ नौकरी नहीं, जुनून बन गया है।
“हम दिनभर मोटरसाइकिल से घूमते रहते हैं, एक जगह फॉल्ट बनता है, दूसरी जगह लाइन गिरती है। स्टाफ और संसाधन नहीं हैं, फिर भी लोग हमसे ही उम्मीद करते हैं।” — एक स्थानीय लाइनमैन
जनता की पीड़ा – हर साल वही हाल!
ग्रामीणों का कहना है कि यह समस्या केवल एक दिन की नहीं है। बारिश हो या गर्मी – कभी ट्रांसफॉर्मर खराब होता है, कभी तार टूटता है। लेकिन स्थायी समाधान नहीं होता। शिकायत करने पर हर बार यही जवाब – ‘साहब को बता दिए हैं।’
“अब तो आदत सी हो गई है, अंधेरे में रहना हमारी नियति बन चुकी है। लेकिन जब बच्चों की पढ़ाई, दवा या पेयजल तक ठप हो जाए तो गुस्सा भी आता है।” — निवासी रमेश उरांव
विभाग का जवाब – फिर वही पुराना राग
इस बार भी विभाग ने ‘स्टाफ की कमी’ और ‘लाइन में फॉल्ट’ को जिम्मेदार ठहराया है। जब पूछा गया कि समस्या बार-बार क्यों होती है, तो जवाब मिला – “ऊपर से मैनपावर की स्वीकृति नहीं मिल रही है।” ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या महुआडांड़ की जनता हर साल इसी अंधेरे की गिरफ्त में रहेगी?
न्यूज़ देखो: स्थायी समाधान की ज़रूरत
न्यूज़ देखो यह मानता है कि बिजली जैसी मूलभूत सेवा का बार-बार ठप होना केवल तकनीकी नहीं, बल्कि प्रशासनिक असफलता है। जब पूरा देश डिजिटल युग की बात कर रहा है, ऐसे में महुआडांड़ जैसे इलाके आज भी अंधेरे में हैं – यह किसी विडंबना से कम नहीं।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
सवाल यही है – कब मिलेगा स्थायी उजाला?
महुआडांड़ की जनता का अब एक ही सवाल है – क्या प्रशासन फिर सिर्फ ‘सुनवाई’ करता रहेगा, या कभी ‘कार्रवाई’ भी होगी? क्योंकि अब ‘फॉल्ट’ केवल लाइन में नहीं, सिस्टम में है।