#महुआडांड़ #ओरसा #आदिमजनजाति_संकट — जियो टैग हुआ लेकिन छत नसीब नहीं
- महुआडांड प्रखंड की आदिम जनजाति महिला फागें देवी अब तक सरकारी आवास से वंचित
- तेज बारिश में ढह गया उनका एकमात्र कच्चा मकान, खेत की मेढ़ या पेड़ तले काट रही रातें
- अभुआ आवास योजना में नाम दर्ज, जियो टैगिंग भी हो चुकी — फिर भी शुरू नहीं हुआ निर्माण
- न कोई रिश्तेदार, न सहायता: समाज और सिस्टम दोनों से उपेक्षित
- न्यूज़ देखो ने की ज़िला प्रशासन से तत्काली राहत पहुंचाने की अपील
आदिवासी वृद्धा की बेबसी: योजनाओं के बावजूद भी छत नहीं
महुआडांड प्रखंड के ओरसा पंचायत में रहने वाली 70 वर्षीय फागें देवी, जो आदिम जनजाति समुदाय से हैं, आज भी सरकारी सहायता से पूरी तरह वंचित हैं। हाल ही में तेज बारिश के कारण उनका कच्चा मकान पूरी तरह ढह गया, और अब वह खेत की मेढ़ या किसी पेड़ के नीचे शरण लेकर दिन-रात बिता रही हैं।
ना कोई संतान, ना सहारा, और ना ही प्रशासन की कोई सुनवाई। यह दृश्य न केवल करुणा जगाता है बल्कि व्यवस्था पर गंभीर सवाल भी खड़े करता है।
अबुआ आवास योजना में नाम, फिर भी जमीन पर कुछ नहीं
स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि फागें देवी का नाम अबुआ आवास योजना में जोड़ा गया था और जियो टैगिंग की प्रक्रिया भी पूरी हो चुकी है। इसके बावजूद किसी भी अधिकारी ने अब तक संपर्क नहीं किया, और निर्माण कार्य की शुरुआत तक नहीं हुई।
“नाम है, फोटो भी पोर्टल पर चढ़ा है, लेकिन घर अब भी मिट्टी का सपना बनकर रह गया है…” — ग्रामीणों की व्यथा
पंचायत और प्रखंड प्रशासन की चुप्पी
ओरसा पंचायत के प्रतिनिधियों से लेकर प्रखंड स्तर के अधिकारियों तक, सबने अब तक सिर्फ आश्वासन दिए हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि हर शिविर में कहा जाता है ‘सब कागज पर हो गया है’, लेकिन ज़मीनी बदलाव नहीं होता।
यह सिर्फ एक वृद्धा की पीड़ा नहीं, पूरे सिस्टम की असफलता है
फागें देवी की हालत यह दर्शाती है कि आदिम जनजातियों के लिए घोषित योजनाएं कागज पर ही रह जाती हैं, और उनका क्रियान्वयन कहीं खो जाता है। जब एक वृद्ध महिला पूरी तरह से बेसहारा होकर भी सहायता से वंचित रह जाए, तो यह सीधे-सीधे मानवता का प्रश्न बन जाता है।
न्यूज़ देखो: इंसानियत के सवाल के साथ
न्यूज़ देखो की टीम इस खबर को सिर्फ एक समाचार नहीं, बल्कि एक सामाजिक ज़िम्मेदारी समझकर आपके सामने ला रही है।
हम जिला प्रशासन, पंचायत और समाज के जिम्मेदार नागरिकों से अपील करते हैं कि फागें देवी को तत्काल राहत, छत और सम्मानजनक जीवन की व्यवस्था की जाए।
यह केवल योजना की सफलता का सवाल नहीं, इंसानियत की न्यूनतम जिम्मेदारी का प्रश्न है।
उम्मीद की किरण तभी, जब सिस्टम संवेदनशील बने
फागें देवी की पीड़ा आज आवाज़ बन चुकी है।
जरूरत है कि न केवल अधिकारी हरकत में आएं, बल्कि समाज भी आगे बढ़कर ऐसे लोगों को सहारा दे।
क्योंकि असली विकास वहीं है, जहाँ आखिरी पंक्ति का व्यक्ति भी सम्मान से जी सके।