
#बानो #सड़क_समस्या : कोलेबिरा-बानो-मनोहरपुर मार्ग की जर्जर हालत से लोगों का जीना हुआ दुश्वार — अधिकारी और विभाग मौन
- SH-320G कोलेबिरा-बानो-मनोहरपुर सड़क तीन वर्ष से अधूरी।
- संवेदक ने पुरानी सड़क को खोदकर छोड़ दिया, जिससे यातायात बाधित।
- लोकसभा व विधानसभा चुनावों के दौरान कई मंत्री इसी मार्ग से गुजरे।
- लगभग 80 किलोमीटर लंबी सड़क अब जगह-जगह गड्ढों और गिट्टी से भर गई है।
- पथ निर्माण विभाग और प्रशासन की चुप्पी पर जनता सवाल उठा रही है।
बानो प्रखंड मुख्यालय होकर गुजरने वाली कोलेबिरा-बानो-मनोहरपुर सड़क (SH-320G) की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि आम लोगों के लिए इस पर सफर करना अब किसी चुनौती से कम नहीं। तीन वर्ष पूर्व जिस उत्साह से इस सड़क के पुनर्निर्माण की घोषणा हुई थी, वह आज सिर्फ अधूरे कामों और धूल उड़ाती सड़कों में सिमटकर रह गई है।
स्थानीय लोगों के अनुसार, संवेदक द्वारा सड़क को खोदकर अधूरा छोड़ दिया गया, जिसके कारण सड़क जगह-जगह से उखड़ गई है और बड़े-बड़े गड्ढे बन गए हैं। इससे न केवल वाहनों की आवाजाही प्रभावित है, बल्कि आए दिन छोटे-मोटे हादसे भी हो रहे हैं। इस मार्ग पर अब चलना मानो खतरे से खेलना बन गया है।
नेताओं के दौरे पर भी नहीं जागे अधिकारी
यह सड़क लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान कई केंद्रीय और राज्य मंत्रियों की आवाजाही का मार्ग रही है। केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान, आसाम के मुख्यमंत्री, और झारखंड के कई प्रमुख नेताओं का इस मार्ग से आना-जाना हुआ, परंतु किसी ने इसकी दुर्दशा पर सवाल नहीं उठाया। जनता पूछ रही है — “जब नेताओं की गाड़ियाँ इन्हीं गड्ढों से गुजरती हैं, तो उन्हें ये सड़क टूटी क्यों नहीं दिखती?”
80 किलोमीटर का अधूरा सपना
करीब 80 किलोमीटर लंबी SH-320G सड़क, जो सिमडेगा, खूंटी और पश्चिम सिंहभूम जैसे जिलों को जोड़ती है, आज अधर में लटकी है। यह मार्ग तीन विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरता है, फिर भी किसी प्रतिनिधि ने इसे प्राथमिकता नहीं दी। स्थानीय निवासियों ने बताया कि सड़क के निर्माण कार्य की शुरुआत के बाद से ही संवेदक की लापरवाही स्पष्ट दिख रही है। न तो निर्माण की गति बढ़ी, न गुणवत्ता पर ध्यान दिया गया।
एक स्थानीय निवासी ने कहा: “हमने उम्मीद की थी कि सड़क बनने से गांवों में विकास आएगा, पर अब यह सड़क हमारे लिए परेशानी बन गई है। बारिश में तो हालात और भी भयावह हो जाते हैं।”
पथ निर्माण विभाग की चुप्पी पर सवाल
जनता का सवाल अब सरकार और विभाग दोनों से है — तीन साल बीत गए, सड़क अब तक क्यों नहीं बनी? संवेदक पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? और अधिकारी आखिर कब तक इस मामले में चुप रहेंगे? इस सड़क के कारण कई ग्रामीण इलाकों की अर्थव्यवस्था, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हो रही हैं।
न्यूज़ देखो: विकास के वादों में दब गया सड़क का सच
तीन साल से अधूरी पड़ी यह सड़क झारखंड के विकास तंत्र की विफलता का प्रतीक बन गई है। जब जनप्रतिनिधि और अधिकारी दोनों मौन हैं, तो जनता के धैर्य की परीक्षा चल रही है। सरकार को अब इस सड़क को प्राथमिकता में लेकर जल्द कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि क्षेत्र में फिर से विश्वास लौट सके।
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अब जनता ही बनाएगी जवाबदेही की राह
अब समय है कि जनता सड़क जैसी बुनियादी जरूरतों पर सवाल उठाए और अपने प्रतिनिधियों से जवाब मांगे। विकास सिर्फ नारों से नहीं, धरातल पर दिखने वाले कामों से होता है। अपनी राय कमेंट करें, इस खबर को शेयर करें और जिम्मेदारी की आवाज़ को हर गांव तक पहुंचाएं।