#पलामू #जल_समस्या : घर-घर नल जल योजना का पानी लाभुकों तक नहीं, खेतों की सिंचाई में हो रहा इस्तेमाल
- पलामू पाण्डु प्रखण्ड के तीसीबार पंचायत दरुआ में नल-जल योजना पर उठे सवाल।
- लाभुक उमेश विश्वकर्मा का आरोप – घरों तक पानी नहीं पहुंच रहा।
- पानी की लाइन सीधे खेती की सिंचाई में हो रही इस्तेमाल।
- ग्रामीणों ने कहा – नल हमेशा बंद रहता है, पीने के लिए पानी मिलना मुश्किल।
- सवाल – कब तक ऐसी स्थिति बनी रहेगी, प्रशासन कब लेगा संज्ञान।
पलामू जिले के पाण्डु प्रखण्ड अंतर्गत तीसीबार पंचायत दरुआ में घर-घर नल जल योजना की हकीकत उजागर हुई है। योजना का उद्देश्य ग्रामीण परिवारों तक पीने का पानी पहुंचाना था, लेकिन स्थिति इसके उलट है। यहां जल मीनार से निकलने वाला पानी घरों तक कम और खेतों तक ज्यादा पहुंच रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि पानी की लाइनें सीधे सिंचाई में लगा दी गई हैं, जिससे घरों में नल सूखे रहते हैं।
ग्रामीणों की शिकायत
दरुआ गांव के निवासी लाभुक उमेश विश्वकर्मा ने नाराजगी जताते हुए कहा कि योजना के नाम पर उन्हें अब तक पानी की सुविधा नहीं मिली।
उमेश विश्वकर्मा ने कहा:
“पानी नहीं मिलती है, हमेशा बंद ही रहता है। जब पूछते हैं तो कहा जाता है कि पाइपलाइन मेरे जमीन में है।”
ग्रामीणों का कहना है कि घर-घर नल जल योजना केवल कागज पर ही चल रही है, जबकि व्यवहार में लोग आज भी पानी के लिए परेशान हैं।
खेतों तक पानी, घरों तक नहीं
ग्रामीणों ने बताया कि जल मीनार से निकलने वाले पानी का कनेक्शन सीधे खेतों की ओर कर दिया गया है। नतीजा यह है कि खेती की सिंचाई तो हो रही है, लेकिन घरों तक पीने का पानी पहुंच नहीं पा रहा।
स्थानीय लोगों ने प्रशासन से मांग की है कि इस मामले की जांच हो और योजना का लाभ सही मायने में हर घर तक पहुंचे।

न्यूज़ देखो: जनता की प्यास और योजनाओं का सच
दरुआ गांव का यह मामला इस बात को उजागर करता है कि सरकारी योजनाओं की जमीनी सच्चाई और घोषणाओं में भारी फर्क है। घर-घर नल जल योजना का उद्देश्य हर घर तक शुद्ध पेयजल पहुंचाना था, लेकिन ग्रामीण आज भी प्यासे हैं। अगर पानी खेतों तक ही जाता रहा तो योजना का मकसद कभी पूरा नहीं होगा।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
हक़ की लड़ाई, जनता की आवाज़
पानी जैसी बुनियादी सुविधा हर नागरिक का अधिकार है। योजनाओं का दुरुपयोग रोकने के लिए प्रशासन को तत्काल कदम उठाने चाहिए। ग्रामीणों की आवाज़ को और तेज करने की जरूरत है ताकि यह समस्या केवल शिकायत बनकर न रह जाए।
आप क्या सोचते हैं – क्या ऐसी योजनाओं की निगरानी के लिए गांव स्तर पर जनता की समिति बनाई जानी चाहिए?
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