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रघुवर दास का आरोप: झारखंड में आदिवासी संस्कृति मिटाने की साजिश

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#दुमका #रघुवरदास_विवादित_बयान : पूर्व मुख्यमंत्री ने राज्य सरकार पर साधा निशाना — पेसा कानून लागू न करने पर सवाल, आदिवासी अस्तित्व पर जताई गहरी चिंता
  • रघुवर दास ने आदिवासी संस्कृति के विलुप्त होने की जताई आशंका
  • राज्य में PFI को संरक्षण मिलने का लगाया आरोप
  • पेसा कानून लागू न करने पर राज्य सरकार की मंशा पर उठाए सवाल
  • झारखंड को ईसाई और इस्लामी प्रदेश बनाने की हो रही साजिश का दावा
  • नागालैंड-मिजोरम जैसी स्थिति की चेतावनी, पद यात्रा की घोषणा

आदिवासी संस्कृति संकट में: रघुवर दास का गंभीर आरोप

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने दुमका में पत्रकारों से बात करते हुए राज्य की वर्तमान सरकार पर आदिवासी संस्कृति को खत्म करने की साजिश रचने का गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि अगर स्थिति नहीं बदली तो आने वाले पांच वर्षों में आदिवासी समाज झारखंड से विलुप्त हो जाएगा।

PFI पर बैन और राज्य सरकार पर तंज

रघुवर दास ने दावा किया कि जब वे मुख्यमंत्री थे, तो झारखंड पहला राज्य था जिसने कट्टरपंथी संगठन PFI पर प्रतिबंध लगाया था। लेकिन उन्होंने आरोप लगाया कि वर्तमान सरकार के संरक्षण में यह संगठन फल-फूल रहा है, जो राज्य की सुरक्षा और सामाजिक ताने-बाने के लिए खतरा है।

पेसा कानून लागू न करना समझ से परे: दास

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि लगभग दो हफ्ते पहले केंद्र सरकार ने झारखंड सरकार को पेसा कानून तत्काल लागू करने का निर्देश दिया था, ताकि अनुसूचित क्षेत्रों के विकास के लिए 1,400 करोड़ रुपये की राशि वितरित की जा सके। लेकिन उन्होंने सवाल उठाया कि किसके दबाव में राज्य सरकार इस कानून को लागू नहीं कर रही है?

आदिवासी समाज को विभाजित करने की साजिश का आरोप

रघुवर दास ने कहा कि एक ओर कुछ लोग झारखंड को ईसाई प्रदेश बनाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ तत्व इसे इस्लामी राज्य में बदलने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने आगाह किया कि यदि स्थिति यही रही तो झारखंड की हालत नागालैंड और मिजोरम जैसी हो सकती है।

रघुवर दास ने कहा: “झारखंड को बचाने के लिए एक और हूल और उलगुलान की जरूरत है। मैं स्वयं बरसात के बाद पदयात्रा कर जनजातीय समाज को जागरूक करने निकलूंगा।”

न्यूज़ देखो: आदिवासी अस्तित्व की लड़ाई में उठते सवाल

रघुवर दास के इस बयान ने झारखंड की राजनीति में नया विमर्श और चिंता की लहर पैदा कर दी है। राज्य की आदिवासी संस्कृति, पेसा कानून की अनदेखी और धार्मिक पहचान को लेकर उठाए गए मुद्दे राजनीतिक और सामाजिक चेतना को झकझोरते हैं।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

जनजागरूकता से ही बचेगा झारखंड

झारखंड की विविधतापूर्ण संस्कृति और सामाजिक संतुलन को राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर संरक्षित करना हम सभी की जिम्मेदारी है। नागरिकों को चाहिए कि वे हर निर्णय, हर नीति पर सजग निगाह रखें और सच्चाई को पहचानें।

आपका क्या मत है रघुवर दास के इस बयान पर? कमेंट करें, आर्टिकल को रेट करें और अपने मित्रों-रिश्तेदारों के साथ शेयर करें।

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