Site icon News देखो

20 साल में भी अधूरी रांची की सफाई योजना, स्मार्ट सिटी से दूर, बदबू और गंदगी से घिरा शहर

#रांची #स्मार्टसिटी #अधूरी_योजना : सीवरेज-ड्रेनेज से लेकर स्वच्छता तक हर स्तर पर फेल है राजधानी रांची—स्मार्ट सिटी तो दूर, रहने लायक भी नहीं रहा शहर

सीवरेज-ड्रेनेज: 20 साल बाद भी अधूरी योजना

राजधानी रांची में सीवरेज और ड्रेनेज सिस्टम को दुरुस्त करने की योजना 2005 में शुरू की गई थी, जिसे चार जोन में विभाजित कर कार्य प्रारंभ हुआ। जोन 1 का काम 2015 में शुरू हुआ और वार्ड 1 से 5 व 30 से 33 के बजरा, पंडरा, पिस्कामोड़, इंद्रपुरी, मोरहाबादी आदि क्षेत्रों में सीवर लाइन बिछाई गई।

लेकिन दिसंबर 2017 तक पूरा होने वाला काम अभी तक अधूरा है। शुरुआत में जिसकी लागत 85 करोड़ थी, वह बढ़कर अब 359 करोड़ हो गई है, लेकिन परिणाम शून्य है।

कोर्ट की चेतावनी भी रही बेअसर

जनहित याचिका के बाद कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई थी, लेकिन विभागीय लापरवाही जस की तस बनी रही। पहले सड़कें बनती हैं, फिर उन्हीं को खोदकर पाइपलाइन डाली जाती है—ऐसे में करोड़ों की बर्बादी होती रही, लेकिन सीवरेज प्रोजेक्ट आज भी पूरा नहीं हुआ।

नालों का खाका बना, पर काम नहीं हुआ

नगर निगम ने 4 साल पहले 7 जोन में बांटकर बड़े और छोटे नालों के निर्माण की योजना बनाई थी। हर जोन में 10 बड़े नाले बनाने थे, लेकिन एक भी बड़ा नाला आज तक नहीं बना। राजधानी में अभी 121 बड़े नाले और 392 छोटी नालियां हैं जो गंदे पानी को निकालने के लिए अपर्याप्त साबित हो रही हैं।

सफाई में चूक, एजेंसी भी फेल

शहर की सफाई व्यवस्था निजी एजेंसी को सौंपी गई है, जिसे प्रति टन कचरा उठाने पर 2394 रुपए दिए जाते हैं। इतने भारी भुगतान के बावजूद एजेंसी की गाड़ियां वार्डों में पहुंच ही नहीं रहीं।

स्थानीय निवासी बताते हैं: “घर का कचरा जमा होता है, लेकिन जब बदबू असहनीय हो जाती है, तभी बाहर फेंकने की मजबूरी होती है।”

कई इलाकों में कचरे का अंबार, बदबू और मच्छरों से जनजीवन प्रभावित हो रहा है।

नगर निगम की सफाई—सिर्फ कागज़ी

आरएमसी के अपर प्रशासक संजय कुमार ने कहा: “शहर की स्वच्छता के लिए एजेंसी को काम सौंपा गया है। अधिकारी मॉनिटरिंग कर रहे हैं। अगर कहीं गड़बड़ी है, तो उसे सुधारने की कोशिश होगी।”

लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि बदबू से जीना मुहाल हो गया है।

न्यूज़ देखो: स्मार्ट सिटी की जगह ‘सड़ा सिटी’ बनता रांची

20 साल से चल रही अधूरी परियोजनाएं, कागजी योजनाओं का ढेर, और प्रशासन की नाकामी—यही है राजधानी रांची की पहचान। ‘न्यूज़ देखो’ यह सवाल उठाता है कि जब कोर्ट की चेतावनी भी असर नहीं करती, तो आम जनता किससे उम्मीद करे? क्या रांची वाकई स्मार्ट सिटी बनने की दिशा में है या बदहाल व्यवस्था में धंसता एक और शहर?

हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

मिलकर करें सवाल, तभी मिले जवाब

अगर हम अपनी राजधानी की बदहाली पर खामोश रहेंगे, तो विकास सिर्फ भाषणों में सिमट जाएगा। अब समय है कि हम सवाल उठाएं—योजनाओं की समयसीमा पूछें, जवाबदेही तय करें और एक स्वच्छ, सुंदर रांची की मांग करें।

इस खबर को ज़रूर शेयर करें, कमेंट में अपने अनुभव बताएं और अपने शहर की आवाज़ बनें।

Exit mobile version