
#रांची #स्वतंत्रता_आंदोलन : करो या मरो नारे की प्रेरणा और आदिवासी समुदाय के सामाजिक-सांस्कृतिक योगदान को याद करते हुए समारोह
- प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में अगस्त क्रांति दिवस एवं विश्व आदिवासी दिवस का भव्य आयोजन किया गया।
- स्वतंत्रता संग्राम में ‘करो या मरो’ के नारे की ऐतिहासिक भूमिका पर प्रदेश अध्यक्ष केशव महतो ने प्रकाश डाला।
- आदिवासी समुदाय को उनकी अस्मिता, अधिकार और संस्कृति के संरक्षण के लिए विश्व आदिवासी दिवस की शुभकामनाएं दी गईं।
- पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय ने स्वतंत्रता आंदोलन में आदिवासियों के बलिदान और झारखंड निर्माण में उनकी भूमिका को सराहा।
- बिरसा मुंडा, सिद्धू कान्हू, चांद भैरव, फूलों झानू जैसे आदिवासी वीरों को याद करते हुए उनके योगदान को सम्मानित किया गया।
- कार्यक्रम में कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता, समाजसेवी और आदिवासी प्रतिनिधि उपस्थित रहे।
अगस्त क्रांति दिवस और विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर रांची में आयोजित कार्यक्रम ने स्वतंत्रता संग्राम की ऐतिहासिक गाथा और आदिवासी समुदाय के सामाजिक-सांस्कृतिक योगदान को समर्पित किया। इस आयोजन में स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक और आदिवासी नायकों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके बलिदान और संघर्ष की महत्ता को उजागर किया गया।
‘करो या मरो’ ने दिया स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा और दिशा
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष केशव महतो ने बताया कि ‘करो या मरो’ का नारा महात्मा गांधी ने इसी दिन दिया था जिसने स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा और उत्साह दिया। उन्होंने कहा, “इस नारे ने जनता में जोश भरकर आंदोलन को व्यापकता दी। आज का दिन उन वीरों को याद करने का है जिन्होंने अपनी जान की आहुति देकर हमें आजादी दिलाई।”
आदिवासी समुदाय की पहचान और संघर्ष को मिली वैश्विक मान्यता
विश्व आदिवासी दिवस की शुभकामनाएं देते हुए केशव महतो ने आदिवासी समाज की जागरूकता और उनकी परंपराओं को सराहा। उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज जल, जंगल और जमीन की रक्षा करता रहा है। इसी कारण संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1994 में विश्व आदिवासी दिवस की स्थापना की, ताकि उनकी विशिष्ट पहचान और अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
आदिवासियों का स्वतंत्रता संग्राम और झारखंड आंदोलन में योगदान
पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय ने कहा कि भारत छोड़ो आंदोलन में हर वर्ग ने योगदान दिया था, जिसमें आदिवासी समुदाय की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण थी। उन्होंने आदिवासी नायकों जैसे बिरसा मुंडा, सिद्धू कान्हू, चांद भैरव और फूलों झानू को याद करते हुए कहा कि स्वतंत्रता संग्राम से लेकर झारखंड के निर्माण तक आदिवासियों ने लगातार संघर्ष किया। आज भी आदिवासी समाज अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
कार्यक्रम में सामाजिक और राजनीतिक दिग्गजों की मौजूदगी
कार्यक्रम में अनादी ब्रह्म राकेश सिन्हा, विनय सिन्हा दीपू, सोनाल शांति, अभिलाष साहू, गजेंद्र सिंह, जगदीश साहू, राजन वर्मा, राज वर्मा, अइनुल हक अंसारी, चंद्र रश्मि पिंगुआ, क गिरी, सलीम खान, संजय कुमार, खालिद सैफुल्लाह, रजी अहमद और शाहिद समेत कई वरिष्ठ नेता और समाजसेवी उपस्थित रहे, जिन्होंने इस समारोह को सफल बनाया।
न्यूज़ देखो: रांची में स्वतंत्रता संग्राम और आदिवासी गौरव का समन्वय
इस कार्यक्रम ने स्वतंत्रता संग्राम के ऐतिहासिक संघर्ष और आदिवासी समाज के गौरवपूर्ण योगदान को एक साथ उजागर किया। यह समारोह हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता की लड़ाई में हर समुदाय ने बलिदान दिया और आज का आदिवासी समाज सामाजिक जागरूकता एवं नेतृत्व में अग्रणी है। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक एकता से समाज को मजबूत बनाएं
स्वतंत्रता संग्राम की यादें और आदिवासी समुदाय के योगदान हमें यह सिखाते हैं कि एकजुटता, संघर्ष और सम्मान से ही समाज मजबूत बनता है। आइए, हम सब मिलकर अपने इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को समझें और सामाजिक भागीदारी बढ़ाएं। अपनी राय कमेंट में जरूर साझा करें और इस खबर को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक शेयर करें ताकि जागरूकता फैले।