#पलामू #पांडु #YogaSutra : इच्छाओं पर विजय से ही संभव है योग—अनुपम तिवारी का विचार
- भोग का त्याग किए बिना योग सिद्ध नहीं।
- सिर्फ आसन और प्राणायाम ही योग नहीं है।
- समता ही योग, विषमता ही भोग है।
- निष्काम भाव से कर्तव्य पालन ही असली योग।
- योग अपनाने से विश्व में शांति का विस्तार।
झारखंड के पलामू जिले के पांडु प्रखंड से निकली एक गहन सोच ने फिर एक बार यह याद दिलाया है कि योग सिर्फ शरीर को तंदरुस्त करने का अभ्यास नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक संपूर्ण कला है। लेखक अनुपम तिवारी, फिजिकल एजुकेशन टीचर, ने अपने लेख में स्पष्ट किया है कि भोग का त्याग किए बिना योग की सिद्धि असंभव है।
योग का असली अर्थ – समता और त्याग
लेखक के अनुसार, इच्छाओं का त्याग और जीवन में समता लाना ही योग का सार है। वे कहते हैं कि सिर्फ आसनों और प्राणायाम का नाम योग नहीं है, बल्कि सभी में एक समान परमात्मा को देखना ही योग की चरम अवस्था है।
अनुपम तिवारी का कहना है: “जिसके जीवन में समता आ जाती है, वही सच्चा योगी है। गीता का संदेश भी यही है कि सिद्धि-असिद्धि में जो समभाव रखता है, वही योगी कहलाता है।”
निष्काम कर्म – योग की आधारशिला
योग केवल साधना नहीं बल्कि स्वार्थ और अभिमान के त्याग के साथ कर्तव्य पालन है। लेखक का मानना है कि जब व्यक्ति योग में स्थिर हो जाता है तो उसके जीवन में ज्ञान और प्रेम स्वतः ही प्रवेश कर जाते हैं।
राग-द्वेष से मुक्त जीवन की आवश्यकता
आज की दुनिया में जहां भोग और इच्छाओं के कारण अशांति बढ़ रही है, वहां योग की शरण लेना परम आवश्यकता है। अगर विश्व में समता का विस्तार हो जाए तो शांति का मार्ग स्वतः प्रशस्त हो जाएगा।
अनुपम तिवारी लिखते हैं: “विश्व की समस्त अशांतियों का मूल कारण भोग है। योग को अपनाने से ही इस हाहाकार का अंत संभव है।”
न्यूज़ देखो: योग दर्शन से सामाजिक परिवर्तन की राह
योग केवल व्यक्तिगत साधना नहीं, बल्कि सामाजिक संतुलन और वैश्विक शांति का आधार है। इस संदेश को आत्मसात करने का समय आ गया है। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
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