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जनजातीय संस्कृति के रंग में रंगा संत जेवियर्स महाविद्यालय, विश्व आदिवासी दिवस पर उमड़ा उत्साह

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#महुआडांड़ #विश्वआदिवासीदिवस : विद्यार्थियों ने नृत्य, कला और संदेशों से सजाया सांस्कृतिक मंच — आदिवासी धरोहर के संरक्षण का लिया संकल्प
  • 09 अगस्त 2025 को महाविद्यालय सभागार में विश्व आदिवासी दिवस का आयोजन हुआ।
  • कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन से हुई जिसमें प्राचार्य व उप प्राचार्य मौजूद रहे।
  • विद्यार्थियों ने नागपुरी, संथाली, झूमर, पाइका, डोमकच समेत कई पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत किए।
  • प्रकृति प्रेम, सांस्कृतिक संरक्षण और सतत विकास का संदेश दिया गया।
  • विजेताओं को प्रमाणपत्र और पुरस्कार प्रदान किए गए।
  • वक्ताओं ने आदिवासी समुदाय के योगदान और धरोहर संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया।

महुआडांड़ स्थित संत जेवियर्स महाविद्यालय सभागार में आयोजित यह विशेष कार्यक्रम न केवल कला और संस्कृति का उत्सव था, बल्कि एक प्रेरक संदेश भी लेकर आया — कि आदिवासी परंपराएं और जीवनदृष्टि न केवल हमारी धरोहर हैं, बल्कि सतत विकास की राह भी दिखाती हैं।

आयोजन की भव्य शुरुआत

कार्यक्रम का शुभारंभ प्राचार्य डॉ. फादर एम. के. जोश, उप प्राचार्य डॉ. फादर समीर टोप्पो, फादर राजीप तिर्की और असिस्टेंट प्रोफेसर रोज एलिस बारला ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर किया। इसके बाद विद्यार्थियों ने पूरे उत्साह के साथ रंगारंग प्रस्तुतियों की शुरुआत की।

मंच पर जीवंत हुई जनजातीय परंपराएं

विद्यार्थियों ने अपनी प्रस्तुतियों में नागपुरी नृत्य, सादरी नृत्य, खोरठा नृत्य, संथाली नृत्य के साथ-साथ झूमर, छऊ, पाइका, डोमकच जैसे पारंपरिक नृत्यों को भी शामिल किया। ये नृत्य जनजातीय जीवन के उत्सव, विवाह, फसल कटाई और सामाजिक मेलजोल की विशेषताओं को दर्शाते हैं।

आदिवासी जीवन का कलात्मक चित्रण

मंच पर विद्यार्थियों ने हो, संथाल, मुंडा, भूमिज, माहली, खड़िया, गोंड, उरांव, बिरजिया, पहाड़िया समेत कई जनजातीय समुदायों की झलकियां पेश कीं। पारंपरिक वाद्ययंत्र, रंगीन पोशाकें, भाषाएं और प्रकृति के प्रति उनका गहरा संबंध दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर गया।

भाषणों में संदेश और प्रेरणा

असिस्टेंट प्रोफेसर रीमा रेणु ने कहा: “आदिवासी समुदाय ने न केवल अपनी संस्कृति को सहेजा है, बल्कि राष्ट्र और राज्य के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनकी जीवनशैली प्रकृति के साथ संतुलित सहअस्तित्व की प्रेरणा देती है।”

प्राचार्य डॉ. फादर एम. के. जोश ने कहा: “आदिवासी संस्कृति हमें एक ऐसी व्यवस्था अपनाने को प्रेरित करती है जो प्रकृति के नियमों का पालन करती है। उनका पारंपरिक ज्ञान और सतत विकास की दृष्टि हमारे लिए मार्गदर्शक है।”

पुरस्कार और सम्मान

सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियों को प्रमाणपत्र और पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया। मंच संचालन और आयोजन में असिस्टेंट प्रोफेसर रोज एलिस बारला और रीमा रेणु कुंडलना ने प्रमुख भूमिका निभाई।

शिक्षकों और छात्रों की सक्रिय भागीदारी

इस मौके पर प्राचार्य, उप प्राचार्य सहित प्रोफेसर्स अभय सुकुट डुंगडुंग, रॉस एलिस बारला, फादर लियो, सिस्टर चंद्रोदय, शेफाली प्रकाश, रोजी सुष्मिता तिर्की, मनु शर्मा, अरेफुल हक़ समेत कई शिक्षक और छात्र उपस्थित रहे।

न्यूज़ देखो: संस्कृति संरक्षण का जीवंत मंच

यह आयोजन केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि एक संदेश था कि हमारी जनजातीय धरोहर जीवित और प्रासंगिक है। विद्यार्थियों ने इसे मंच पर उतारकर साबित किया कि संस्कृति केवल इतिहास का हिस्सा नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य की प्रेरणा भी है। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

संस्कृति ही हमारी पहचान

आदिवासी संस्कृति के रंग और धुनें हमें अपनी जड़ों की याद दिलाती हैं। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इन्हें आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित पहुंचाएं। आप भी इस खबर को साझा करें और अपने विचार कमेंट में बताएं, ताकि यह संदेश और दूर तक पहुंचे।

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