
#रांची #डोमिसाइल : 1932 खतियान आधारित नीति पर फिर उठा सवाल—शहीदों की शहादत को मिला सम्मान
- मेकॉन कॉलोनी में आयोजित शहादत सभा में मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने दी श्रद्धांजलि।
- 24 जुलाई 2002 को डोमिसाइल आंदोलन के दौरान तीन युवाओं ने दी थी शहादत।
- राजभवन में अटका है 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति का प्रस्ताव।
- शहीदों के परिजनों को सरकारी सुविधा दिलाने का आश्वासन मंत्री ने दिया।
- सभा में बाबा बंधु तिर्की की आंदोलन में भूमिका का हुआ उल्लेख।
रांची के मेकॉन कॉलोनी स्थित त्रिमूर्ति चौक और शहीद स्थल पर डोमिसाइल आंदोलन के शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए गुरुवार को राज्य की कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की पहुँचीं। इस अवसर पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा में उन्होंने शहादत की कहानियों को याद किया और कहा कि झारखंड की अस्मिता और अधिकारों के लिए दिया गया यह बलिदान कभी भुलाया नहीं जा सकता।
शहादत का इतिहास
मंत्री ने बताया कि 24 जुलाई 2002 को इसी स्थान पर संतोष कुंकल, विनय तिग्गा और कैलाश कुजूर ने अपनी जान दी थी। यह केवल एक आंदोलन नहीं था, बल्कि झारखंड की पहचान के लिए किया गया संघर्ष था। उन्होंने कहा कि यह स्थल उनके लिए खास है, क्योंकि इसी स्थल से बाबा बंधु तिर्की ने डोमिसाइल आंदोलन की शुरुआत की थी।
नीति का प्रस्ताव क्यों अटका?
शिल्पी नेहा तिर्की ने सभा में कहा कि राज्य सरकार ने 2023 में 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति का प्रस्ताव विधानसभा से पारित कर राजभवन को भेजा था, लेकिन आज तक इस पर कोई निर्णय नहीं हुआ। उन्होंने सवाल उठाया कि राजभवन और केंद्र सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि वे झारखंड की जनता की मांग के साथ हैं या नहीं।
शहीदों के सम्मान का वादा
मंत्री ने भरोसा दिलाया कि वे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से शहीदों को शहीद का दर्जा देने और उनके परिवारों को सरकारी सुविधाएं उपलब्ध कराने की मांग रखेंगी। उन्होंने कहा कि संवेदनशील सरकार इस विषय को गंभीरता से लेगी और न्याय सुनिश्चित करेगी।
श्रद्धांजलि सभा में उपस्थित लोग
सभा में संजय तिग्गा, बेलस तिर्की, शिवा कच्छप, जगदीश लोहरा, दीपू सिन्हा और जलील अंसारी सहित कई गणमान्य लोग मौजूद रहे। सभी ने शहीदों के सपनों को पूरा करने का संकल्प लिया।
शिल्पी नेहा तिर्की ने कहा: “डोमिसाइल आंदोलन के महानायकों का बलिदान अधूरा है। राज्य की सरकार ने प्रस्ताव पास कर राजभवन भेजा, लेकिन अब तक कोई निर्णय नहीं हुआ। आज शहादत दिवस पर मैं इन महान आत्माओं को नमन करती हूँ।”

न्यूज़ देखो: अधूरे सपनों को पूरा करने की पुकार
डोमिसाइल आंदोलन की यह गाथा सिर्फ इतिहास नहीं, झारखंड की अस्मिता का आईना है। शहीदों की शहादत हमें याद दिलाती है कि नीतियों का अधूरापन उनके बलिदान का अपमान है। सवाल यह है कि कब तक राजभवन में यह प्रस्ताव लंबित रहेगा? हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
जिम्मेदारी हमारी भी
झारखंडवासियों को अपने अधिकारों और शहीदों के सम्मान के लिए एकजुट होना होगा। आप इस खबर पर अपनी राय दें, इसे शेयर करें और जागरूकता बढ़ाने के लिए इसे अपने दोस्तों व परिजनों तक पहुँचाएँ।