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सरहुल पर बिजली बंदी को लेकर हाईकोर्ट नाराज़, स्वतः संज्ञान लेकर राज्य सरकार से मांगा जवाब

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#Ranchi #SarhulPowerCrisis: आदिवासी पर्व पर बिजली गुल होने से हाईकोर्ट सख्त :

  • सरहुल के दिन रांची शहर में 10 घंटे तक बिजली आपूर्ति बाधित
  • हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका में बदला मामला
  • अदालत ने कहा — बिजली एक आवश्यक सेवा, इसकी कटौती जनजीवन पर डालती है असर
  • राज्य को निर्देश — जुलूस में झंडों की ऊंचाई तय करें, नियम बताएं
  • कोर्ट ने कहा — पुनरावृत्ति न हो, अन्यथा सख्त कार्रवाई संभव

1 अप्रैल को झारखंड की राजधानी रांची में जब सरहुल पर्व की शोभायात्रा निकाली जा रही थी, उसी दौरान JBVNL ने दिन के एक बजे से रात के एक बजे तक कई क्षेत्रों की बिजली सप्लाई बंद कर दी। श्रद्धालु और आमजन, दोनों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ा।

हाईकोर्ट की तीखी टिप्पणी

झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और जस्टिस दीपक रोशन की खंडपीठ ने इसे जनजीवन से जुड़ा गंभीर मुद्दा मानते हुए स्वतः संज्ञान लिया। कोर्ट ने टिप्पणी की:

“बिजली आज की दुनिया में एक आवश्यक सेवा है। इसे केवल गंभीर आपात स्थिति में ही बाधित किया जाना चाहिए।”
मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव

कोर्ट की चेतावनी और निर्देश

  • राज्य सरकार बताए कि किस नियम के तहत इतने लंबे समय तक बिजली आपूर्ति रोकी गई।
  • भविष्य में ऐसी घटनाएं न दोहराई जाएं, इसके लिए सख्त निर्देश जारी किए जाएं।
  • जुलूस आयोजकों को झंडों और डंडों की अधिकतम ऊंचाई का पालन सुनिश्चित कराया जाए, ताकि बिजली तारों से संपर्क की नौबत न आए।

बिजली कटौती से प्रभावित जनजीवन

गर्मी के मौसम की शुरुआत में बिजली कटौती ने बुजुर्गों, बीमारों, गर्भवती महिलाओं, छोटे बच्चों और परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों को खासा प्रभावित किया। व्यापार और अस्पताल सेवाओं पर भी इसका सीधा असर पड़ा। अदालत ने कहा:

“दुर्घटना की आशंका से यात्रा नहीं रोकी जाती, बल्कि सुरक्षा के उपाय किए जाते हैं। यही दृष्टिकोण बिजली सेवा पर भी लागू हो।”

जनविश्वास पर सवाल और न्याय की उम्मीद

जब सरकारी सेवाएं पर्वों पर बाधित होती हैं, तो यह केवल असुविधा नहीं बल्कि सांस्कृतिक अपमान भी होता है। अदालत का यह हस्तक्षेप आम जनता के उस विश्वास को बल देता है, जो न्यायपालिका से जुड़े होते हुए भी कभी-कभी सुना नहीं जाता। इस कार्रवाई से प्रशासन को भी यह सन्देश गया है कि पर्वों की रौशनी कृत्रिम अंधेरे में नहीं डूबी रह सकती।

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सरहुल जैसे पर्व पर बिजली कटौती सिर्फ एक तकनीकी चूक नहीं, बल्कि जनसंवेदनाओं की अनदेखी है। आपकी राय हमारे लिए बेहद अहम है।
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