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सरना कोड बना आदिवासी अस्मिता की ढाल, केंद्र की चुप्पी से आदिवासियों में उबाल

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#मेदिनीनगर #सरनाकोडधरना – झारखंड में सरना धर्म कोड को लेकर उग्र आंदोलन, पलामू में जिला मुख्यालय पर जोरदार प्रदर्शन

  • सरना धर्म कोड को लेकर राज्यभर में धरना-प्रदर्शन, पलामू में भी जनसैलाब उमड़ा
  • हेमंत सरकार ने सरना कोड को दी थी मंजूरी, केंद्र की मौन स्वीकृति से आदिवासियों में नाराजगी
  • अविनाश देव ने कहा – भाजपा का चेहरा आदिवासी विरोधी, जल-जंगल-जमीन पर नजर
  • जातीय जनगणना और परिसीमन को लेकर जताई साजिश की आशंका
  • शिवाजी मैदान से रैली, समाहरणालय के सामने दिया गया धरना
  • केंद्र के कोड लागू नहीं करने तक झारखंड में जातीय जनगणना नहीं होने देंगे

पलामू में सरना धर्म कोड के समर्थन में उमड़ी भीड़

पलामू जिला मुख्यालय में आज सरना धर्म कोड की मांग को लेकर झामुमो समर्थित विशाल प्रदर्शन हुआ। जिला अध्यक्ष एवं सचिव के नेतृत्व में यह आंदोलन शिवाजी मैदान से शुरू होकर छः मुहान चौक, शहीद चौक होते हुए समाहरणालय के समक्ष धरने में परिवर्तित हुआ। इस दौरान ‘जोहार’ के नारों के साथ लोगों ने अपने आदिवासी धर्म और संस्कृति की रक्षा की हुंकार भरी।

अविनाश देव का तीखा प्रहार — केंद्र सरकार पर आदिवासी विरोधी नीति का आरोप

धरना में मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए अविनाश देव ने कहा:

“भारत के आदिवासी इस देश के मूलवासी हैं, प्राकृतिक पूजक हैं। पर भाजपा सरकार निजीकरण और जातीय जनगणना के बहाने आदिवासियों को खत्म कर जल-जंगल-जमीन को पूंजीपतियों को सौंपना चाहती है।”

उन्होंने कहा कि जातीय जनगणना के जरिए कुछ जातियों को विलुप्त घोषित कर आरक्षण और अधिकारों से वंचित करने की साजिश रची जा रही है। साथ ही परिसीमन के बहाने आरक्षित सीटों में कटौती कर आदिवासी प्रतिनिधित्व को खत्म करने की कोशिश की जा रही है।

केंद्र सरकार की चुप्पी से नाराज हैं झारखंड के आदिवासी

झारखंड कैबिनेट द्वारा सरना धर्म कोड को स्वीकृति मिलने के बावजूद केंद्र सरकार की मंजूरी अब तक नहीं मिलना राज्य के आदिवासी समुदाय को गहरी चोट पहुंचा रहा है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह सिर्फ एक धार्मिक पहचान नहीं, बल्कि आदिवासी अस्तित्व और अस्मिता की रक्षा का हथियार है।

झामुमो की घोषणा — बिना सरना कोड मंजूरी के जातीय जनगणना नहीं

झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक केंद्र सरकार सरना धर्म कोड को मान्यता नहीं देती, तब तक झारखंड में जातीय जनगणना नहीं होने दी जाएगी। पार्टी का मानना है कि सरना कोड ही वह माध्यम है जिससे आदिवासियों को संवैधानिक पहचान और सांस्कृतिक संरक्षण मिल सकता है।

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