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सरना धर्म कोड और पेसा कानून जनजातीय आत्मसम्मान का प्रतीक: रघुवर दास

#रांची #सरनाधर्मकोड #पेसाकानून : पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पेसा कानून और सरना धर्म कोड को जनजातीय परंपराओं की सुरक्षा का माध्यम बताया — संस्कृति, उपासना और ग्राम सभा अधिकारों पर दिया बल

जनजातीय परंपराओं की सुरक्षा को बताया पेसा कानून का मूल

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और ओडिशा के वर्तमान राज्यपाल रघुवर दास ने सरना धर्म कोड और पेसा कानून को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने इसे जनजातीय समाज की पहचान, संस्कृति और परंपराओं की सुरक्षा का अहम कदम बताया।

उन्होंने कहा कि झारखंड पंचायती राज अधिनियम 2001 की धारा 10(5) के तहत अनुसूचित क्षेत्रों की ग्राम सभाओं को विशेष अधिकार प्राप्त हैं, जिनके तहत वे अपनी सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक स्थलों जैसे सरना, मसना, जाहेर थान का संरक्षण कर सकती हैं।

सरना धर्म और उपासना पद्धति को बताया कानूनी अधिकार

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत का संविधान मानता है कि परंपरा और उपासना पद्धति केवल सांस्कृतिक नहीं, बल्कि विधिक अधिकार भी है। ऐसे में ग्राम सभा द्वारा बनाए गए दस्तावेजों को सरकार मान्यता देकर सरना समाज को मजबूत आधार दे सकती है।

रघुवर दास ने कहा: “यह कानून केवल दस्तावेजी संरक्षण नहीं बल्कि जीवन पद्धति की पहचान और आत्मसम्मान से जुड़ा विषय है।”

जनजातीय उदाहरणों से जताई पहचान की विविधता

रघुवर दास ने झारखंड के विभिन्न जनजातीय समाजों की अनूठी परंपराओं का हवाला देते हुए कहा कि इन्हें पेसा कानून के दायरे में संरक्षित किया जा सकता है:

इन सभी परंपराओं की संविधान में सुरक्षा और मान्यता की आवश्यकता को उन्होंने दोहराया।

राजनीतिक नहीं, सामाजिक मुद्दा है सरना कोड

रघुवर दास ने स्पष्ट किया कि सरना धर्म कोड को राजनीतिक मुद्दा बनाना अनुचित है। इसे जनजातीय समाज के सांस्कृतिक अधिकारों के रूप में देखना चाहिए। उन्होंने आग्रह किया कि राज्य सरकार ग्राम सभाओं के निर्णयों को विधिक रूप से मान्यता दे और उनके अनुरूप कार्य करे।

रघुवर दास ने कहा: “सरना समाज की मान्यताओं को संवैधानिक संरचना के तहत स्थान दिया जाना चाहिए।”

न्यूज़ देखो: जनजातीय संस्कृति को संरक्षण की दिशा में सकारात्मक पहल

रघुवर दास का यह बयान झारखंड की जनजातीय पहचान और सांस्कृतिक अस्तित्व को लेकर हो रही बहस के बीच एक दिशा देने वाला वक्तव्य है। न्यूज़ देखो मानता है कि सांस्कृतिक विविधता को संरक्षित रखना लोकतंत्र की मजबूती का आधार है। सरकारों को चाहिए कि वे ऐसे मुद्दों को राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर देखें।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

जनजातीय समाज की आवाज को मिले सम्मान

झारखंड की आदिवासी परंपराएं केवल उत्सव नहीं, एक जीवन शैली हैं। इन परंपराओं को पहचान देने का समय अब है। आइए, इस संवाद में भाग लें। इस खबर पर अपनी राय दें, अपने विचार साझा करें और इसे उन लोगों तक जरूर पहुंचाएं जो जनजातीय अधिकारों के लिए समर्पित हैं।

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