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स्कूल बना गोदाम: मनातू के प्राथमिक विद्यालय में रखे गए तेंदूपत्ता के बोरे, बच्चों की पढ़ाई पर क्या पड़ेगा असर?

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#पलामू #शिक्षापरिसरविवाद : मनातू थाना क्षेत्र के उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय जगराहा में छुट्टियों के दौरान रखे गए तेंदूपत्ता के बोरे — बच्चों की सुरक्षा और शिक्षा पर गंभीर सवाल
  • विद्यालय परिसर में तेंदूपत्ता के बोरे पाए जाने से अभिभावकों में चिंता
  • बच्चों के मनोविज्ञान और अनुशासन पर प्रतिकूल प्रभाव की आशंका
  • स्कूल के प्राचार्य ने बताया, छुट्टी में रखवाया गया था सामान
  • सामग्री हटवाने के लिए स्कूल खुलने के बाद कार्रवाई की गई
  • स्थानीय प्रशासन से जांच और निगरानी की मांग उठी

विद्या के मंदिर में नियमों की अनदेखी?

पलामू जिले के मनातू थाना क्षेत्र के उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय जगराहा से एक चिंताजनक मामला सामने आया है, जहां गर्मी की छुट्टियों के दौरान विद्यालय परिसर में तेंदूपत्ता के भरे बोरे रख दिए गए थे। जब स्कूल दोबारा खुला, तो यह दृश्य न केवल बच्चों बल्कि अभिभावकों के मन में भी गंभीर असंतोष और चिंता का कारण बन गया।

एक ओर जहां विद्यालयों को ‘विद्या का मंदिर’ कहा जाता है, वहीं इस तरह की गैर-शैक्षणिक गतिविधियों ने शिक्षा के पवित्र वातावरण को दूषित करने का कार्य किया है।

बच्चों पर क्या पड़ा असर?

विद्यालय परिसर में इस तरह के ज्वलनशील और व्यावसायिक उपयोग की सामग्री रखने से बच्चों पर कई प्रकार के नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं:

  • गलत उदाहरण: इससे बच्चों में यह धारणा बन सकती है कि नियमों की अनदेखी सामान्य बात है।
  • सुरक्षा का संकट: तेंदूपत्ता ज्वलनशील होता है, जिससे स्कूल के भीतर बच्चों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
  • अनुशासन पर असर: विद्यालय परिसर का ऐसा उपयोग बच्चों के मन में विद्यालय के प्रति सम्मान और अनुशासन की भावना को कमजोर कर सकता है।
  • पठन-पाठन में बाधा: स्कूल का वातावरण अव्यवस्थित हो जाने से बच्चों का ध्यान पढ़ाई से भटक सकता है।

प्रिंसिपल ने दी सफाई

विद्यालय के प्राचार्य उमेश कुमार ने दूरभाष पर जानकारी दी कि:

प्राचार्य उमेश कुमार ने कहा: “गर्मी की छुट्टी के दौरान कुछ स्थानीय लोगों ने ये बोरे रख दिए थे। स्कूल खुलने के बाद मैंने उन्हें हटाने को कहा, और कुछ दिनों में इन्हें हटा भी दिया गया।”

इस स्पष्टीकरण से यह स्पष्ट होता है कि प्राचार्य को मामले की जानकारी थी और उन्होंने बाद में पहल करते हुए इसे हटवाया, लेकिन प्रश्न यह उठता है कि छुट्टियों के दौरान स्कूल परिसर की निगरानी क्यों नहीं की गई? यदि पहले से एहतियात बरती जाती तो यह स्थिति उत्पन्न ही नहीं होती।

प्रशासन को चाहिए त्वरित और ठोस कार्रवाई

इस तरह की घटनाएं यह दर्शाती हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में शासकीय विद्यालयों को पर्याप्त निगरानी और सुरक्षा नहीं मिल पा रही है। इस परिस्थिति में निम्न कदम आवश्यक माने जा रहे हैं:

  • स्थानीय प्रशासन और शिक्षा विभाग को जांच कर यह स्पष्ट करना चाहिए कि सामान किसने और किन परिस्थितियों में स्कूल परिसर में रखा।
  • स्कूल प्रबंधन और ग्राम समुदाय के साथ मिलकर जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए ताकि स्कूल परिसर केवल शिक्षा के लिए सुरक्षित बना रहे।
  • छुट्टियों के दौरान स्कूल परिसरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्पष्ट गाइडलाइन और प्रोटोकॉल तय किए जाएं।
  • यदि यह कोई अवैध गतिविधि थी, तो संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जानी चाहिए।

न्यूज़ देखो: शिक्षा के माहौल की रक्षा हो प्राथमिकता

यह मामला न केवल विद्यालय परिसर के दुरुपयोग को उजागर करता है, बल्कि स्कूल प्रबंधन और प्रशासनिक सतर्कता की भी परीक्षा है। किसी भी स्थिति में विद्यालय के पवित्र वातावरण से समझौता नहीं होना चाहिए।
सरकार की शिक्षा नीति तभी प्रभावी होगी जब नींव स्तर पर सुरक्षा, अनुशासन और जवाबदेही सुनिश्चित हो।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।

शिक्षा की गरिमा बनाए रखना हम सबकी ज़िम्मेदारी

विद्यालयों को सुरक्षित और प्रेरणादायक वातावरण देना हम सबकी साझा जिम्मेदारी है। अगर हम चाहते हैं कि अगली पीढ़ी अनुशासित और समझदार बने, तो स्कूलों को हर तरह की गैर-शैक्षणिक गतिविधियों से मुक्त रखना होगा।
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