#गढ़वा #आदिवासीजीवन : हाथियों के डर से गांव छोड़कर जंगल में बसे पीवीटीजी परिवारों की सुध लेने पहुंचे अधिकारी
- एसडीएम संजय कुमार गेरुआसोती के बाहर जंगली इलाके में रह रहे परहिया परिवारों से मिले।
- परिवारों ने बताया कि हाथियों के लगातार हमले के कारण वे बहेरवा गांव छोड़ने को मजबूर हुए।
- आवास योजना की स्वीकृति मिल चुकी, लेकिन सड़क के अभाव में निर्माण कार्य रुका है।
- एसडीएम ने निर्देश दिया कि एक माह में घर निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा।
- बच्चों की पढ़ाई के लिए गेरुआसोती विद्यालय से टैग करने का आश्वासन।
गढ़वा जिले के मेराल प्रखंड अंतर्गत गेरुआसोती के बाहरी जंगलों में झोपड़ियां डालकर रह रहे परहिया जनजाति परिवारों तक गुरुवार को एसडीएम संजय कुमार पहुंचे। समाचार माध्यमों में उनकी दयनीय स्थिति उजागर होने के बाद प्रशासन हरकत में आया और मौके पर ही इन परिवारों की समस्याओं को सुना गया।
हाथियों के डर से छोड़ा पुश्तैनी गांव
प्राप्त जानकारी के अनुसार ये सभी परिवार मूलतः बहेरवा गांव के निवासी हैं। उनके पास रैयती जमीन भी है और वर्षों से वहीं बसे थे। लेकिन पिछले कुछ सालों से लगातार हाथियों के हमलों के कारण वे डरकर गेरुआसोती के जंगलों में आकर रहने लगे। यहां उनके जीवन की स्थिति बेहद कठिन है – न सुरक्षा है, न बच्चों की पढ़ाई की सुविधा।
आवास योजना पर रुका काम
एसडीएम ने मौके पर ही बीडीओ सह सीओ यशवंत नायक को बुलाकर स्थिति का जायजा लिया। अधिकारियों ने बताया कि सभी परिवारों का पीएम जन-मन योजना के तहत आवास स्वीकृत है और प्रथम किस्त की राशि भी भेजी जा चुकी है। परंतु बरसात में सड़क ना होने से निर्माण सामग्री गांव तक नहीं पहुंच पा रही है। इसी वजह से घर बनना रुक गया।
राजकुमारी परहिया, चिंता देवी परहिया और गीता देवी परहिया ने स्वीकार किया कि उन्हें आवास स्वीकृत हुआ है, लेकिन सड़क की समस्या के कारण घर खड़ा नहीं हो पा रहा है।
एसडीएम का आश्वासन
स्थिति को गंभीरता से लेते हुए एसडीएम संजय कुमार ने स्पष्ट निर्देश दिया कि परिवहन सहित आवश्यक मदद उपलब्ध कराई जाए ताकि अगले एक माह में बहेरवा गांव में घर निर्माण का काम शुरू हो सके। साथ ही हाथियों के हमलों से सुरक्षा के लिए वन विभाग को भी आवश्यक कदम उठाने को कहा गया।
बच्चों की शिक्षा पर जोर
उन्होंने कहा कि अस्थायी रूप से गेरुआसोती में रह रहे इन परिवारों के बच्चों को गेरुआसोती के विद्यालय से टैग किया जाएगा ताकि उनकी पढ़ाई बाधित न हो।
एसडीएम ने बताया कि 2011 की जनगणना में बहेरवा गांव की आबादी 47 थी, जो अब करीब 70 हो चुकी है। लेकिन ज्यादातर परिवार हाथियों के डर से गांव छोड़कर गेरुआसोती के जंगली क्षेत्र में रहने को मजबूर हो गए हैं।



न्यूज़ देखो: जंगल से गांव तक विकास की राह
यह घटना बताती है कि विकास योजनाएं केवल कागजों पर नहीं बल्कि जमीनी हकीकत में पहुंचनी चाहिए। हाथियों से सुरक्षा, सड़क और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं ही आदिवासी परिवारों को उनके पुश्तैनी गांवों से जोड़े रख सकती हैं। प्रशासन के त्वरित हस्तक्षेप से उम्मीद जगी है कि इन परिवारों का भविष्य सुरक्षित होगा।
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आदिवासी परिवारों के लिए उम्मीद की नई किरण
इन परिवारों की पीड़ा हमें याद दिलाती है कि समाज का हर वर्ग समान अधिकार और सुविधाओं का हकदार है। अब जिम्मेदारी हमारी भी है कि हम इस बदलाव में योगदान दें। अपनी राय साझा करें और इस खबर को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएं ताकि सकारात्मक पहल को बल मिल सके।