
#झारखंड #हफीजुलहसन — “संविधान सर्वोपरि है, बयान को गलत तरीके से परोसा गया”: मंत्री का स्पष्टीकरण
- मंत्री हफीजुल हसन ने विवादित बयान पर दी सफाई, कहा- संविधान के प्रति मेरी निष्ठा अटूट
- बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के प्रति जताई गहरी श्रद्धा
- अल्पसंख्यकों पर नफरत फैलाने वाले बयानों पर उठाई केंद्रीय मंत्रियों की आलोचना
- विवादित बयान 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के अवसर पर दिए इंटरव्यू से जुड़ा
- बोले- “शरीयत और संविधान में संतुलन संभव है, लेकिन नफरत के लिए नहीं”
बयान पर मचा सियासी तूफान, मंत्री ने दी सफाई
झारखंड सरकार के मंत्री हफीजुल हसन अपने “शरीयत पहले, फिर संविधान” वाले बयान को लेकर घिर गए हैं। बयान पर विवाद के बाद उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा कि उनके शब्दों को गलत संदर्भ में पेश किया गया है।
“मेरे कथन को तोड़-मरोड़कर एक खास एजेंडे के तहत दिखाया गया है। मेरी कथनी और करनी कभी संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध नहीं रही,”
— हफीजुल हसन, मंत्री झारखंड सरकार
उन्होंने जोर देकर कहा कि संविधान ही सर्वोपरि है और वे हमेशा जाति, धर्म, वर्ग और क्षेत्र से ऊपर उठकर कार्य करते आए हैं। उन्होंने संविधान को अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा का स्तंभ बताया।
“संविधान है सभी की धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी”
मंत्री हसन ने कहा कि संविधान ही वह आधार है, जो देश के हर नागरिक को धर्म और भाषा की स्वतंत्रता देता है। उन्होंने कहा कि:
“देश का संविधान एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्गों को अधिकारों की गारंटी देता है। मैं उस वातावरण को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध हूं जिसमें हर नागरिक अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान के साथ जी सके।”
— हफीजुल हसन
उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता को लोकतंत्र की रीढ़ बताया और कहा कि किसी को भी अपनी आस्था व्यक्त करने से रोका नहीं जा सकता।
“केंद्रीय नेताओं ने भी दिए हैं आपत्तिजनक बयान”
हफीजुल हसन ने अपने स्पष्टीकरण में यह भी जोड़ा कि कई केंद्रीय मंत्रियों और नेताओं ने भी अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फैलाने वाले बयान दिए हैं, जिनकी उन्होंने निंदा की। उन्होंने कहा कि नफरत किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए।
“हर व्यक्ति को अपने धर्म से प्रेम करने का अधिकार है, लेकिन वह प्रेम दूसरे धर्म के प्रति घृणा नहीं बनना चाहिए।”
— हफीजुल हसन
विवाद की जड़ : 14 अप्रैल का इंटरव्यू
गौरतलब है कि हफीजुल हसन ने 14 अप्रैल को बाबा साहेब अंबेडकर की जयंती के दिन एक हिंदी न्यूज वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में कहा था:
“हम मुस्लिम समुदाय के लोग दिल में शरीयत और हाथ में संविधान लेकर चलते हैं। हमारे लिए पहले शरीयत है और फिर संविधान।”
उन्होंने तीन तलाक और वक्फ बिल जैसे मुद्दों को शरीयत के अनुरूप बताया था और कहा था कि सरकार को धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप से बचना चाहिए। उनके इस बयान के बाद पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने उन्हें बर्खास्त करने की मांग कर दी थी।
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