
#सिमडेगा #जागरूकता_कार्यक्रम : कॉलेज में आयोजित कार्यशाला में अधिकारियों ने बुजुर्गों के अधिकार, देखभाल और कानून की सख्ती पर विस्तार से जानकारी दी
- सिमडेगा कॉलेज में भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम 2007 पर जागरूकता कार्यशाला आयोजित।
- कार्यक्रम का शुभारंभ पीडीजे राजीव कुमार सिन्हा, उपायुक्त कंचन सिंह, एसडीओ प्रभात रंजन ज्ञानी सहित कई पदाधिकारियों ने किया।
- अधिनियम का उल्लंघन करने पर कैद और जुर्माना सहित कठोर दंड का प्रावधान बताया गया।
- विद्यार्थियों से वृद्धाश्रम भ्रमण और बुजुर्गों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने की अपील।
- उपायुक्त ने बुजुर्गों के उपेक्षा मामलों में बढ़ोतरी पर चिंता जताई।
- कार्यक्रम में अधिवक्ताओं व अधिकारियों ने वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों की विस्तृत जानकारी दी।
सिमडेगा कॉलेज में जिला विधिक सेवा प्राधिकार द्वारा माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम 2007 पर एक दिवसीय जागरूकता कार्यशाला आयोजित की गई, जिसमें छात्रों को कानून, सामाजिक जिम्मेदारी और बुजुर्गों की सुरक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं से अवगत कराया गया। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुई, जिसमें पीडीजे सह अध्यक्ष राजीव कुमार सिन्हा, उपायुक्त कंचन सिंह, एसडीओ प्रभात रंजन ज्ञानी, बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रामप्रीत प्रसाद, सचिव प्रद्युम्न सिंह और कॉलेज के प्राचार्य प्रो. देवराज प्रसाद सहित अन्य गणमान्य उपस्थित रहे।
वरिष्ठ नागरिकों से बढ़ती उपेक्षा एक सामाजिक चुनौती
पीडीजे राजीव कुमार सिन्हा ने कहा कि जिले में कई वरिष्ठ नागरिक अकेलेपन और उपेक्षा का सामना कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि जिला प्रशासन वृद्धाश्रम के माध्यम से ऐसे बुजुर्गों की देखभाल कर रहा है, जहां उन्हें सुरक्षित वातावरण और आवश्यक सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। उन्होंने कॉलेज को सुझाव दिया कि विद्यार्थी समय-समय पर वृद्धाश्रम का भ्रमण करें ताकि उनमें संवेदनशीलता और करुणा की भावना विकसित हो सके। उन्होंने स्पष्ट कहा कि भरण-पोषण ट्रिब्यूनल के आदेश की अवहेलना करने पर कैद और जुर्माने की कठोर कार्रवाई का प्रावधान है। विद्यार्थियों से उन्होंने आग्रह किया कि यदि कहीं बुजुर्गों के साथ उत्पीड़न या उपेक्षा दिखे, तो तुरंत प्रशासन को सूचित करें।
कानून की आवश्यकता और सामाजिक दायित्व पर उपायुक्त ने रखे विचार
उपायुक्त कंचन सिंह ने कहा कि बदलते सामाजिक ढांचे में माता-पिता की उपेक्षा के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, जो बेहद चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि कई बुजुर्ग भावनात्मक, आर्थिक और शारीरिक कठिनाइयों से जूझ रहे हैं और परिवार के सहयोग के बिना जीवन बिताने को मजबूर हैं। उन्होंने विद्यार्थियों को बताया कि 2007 का अधिनियम ऐसे मामलों में स्पष्ट कानूनी संरक्षण प्रदान करता है और संतान पर भरण-पोषण की कानूनी जिम्मेदारी तय करता है।
उन्होंने सर्वजन पेंशन योजना, स्वास्थ्य सुविधाओं, वृद्धाश्रम संचालन और जिला प्रशासन की विभिन्न सहायता योजनाओं के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उपायुक्त ने छात्रों से अपील की कि यदि उन्हें कोई बुजुर्ग परेशान या असहाय दिखाई दे, तो तत्काल जिला प्रशासन को सूचना दें, क्योंकि प्रशासन हर समस्या के समाधान के लिए तत्पर है।
वरिष्ठ अधिकारियों का मार्गदर्शन और कार्यक्रम का समापन
कार्यक्रम में स्थायी लोक अदालत के अध्यक्ष रमेश कुमार श्रीवास्तव, चीफ एलएडीसीएस प्रभात कुमार श्रीवास्तव, अधिवक्ता रामप्रीत प्रसाद और प्रद्युम्न सिंह ने भी अपने विचार साझा किए। सचिव मरियम हेमरोम ने कार्यक्रम का संचालन किया और धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यशाला का समापन हुआ।
अधिनियम के प्रमुख प्रावधान
- माता-पिता एवं 60 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों को कानूनी भरण-पोषण का अधिकार।
- उपेक्षा, दुर्व्यवहार या परित्याग की स्थिति में 3 माह तक की कैद या 5,000 रुपये तक का जुर्माना।
- भरण-पोषण ट्रिब्यूनल 10,000 रुपये मासिक भत्ता तय कर सकता है।
- संपत्ति उपहार में देने के बाद देखभाल न मिलने पर बुजुर्ग उसे निरस्त करा सकते हैं।
- प्रत्येक जिले में वृद्धाश्रम संचालन का प्रावधान।
- अस्पतालों में वरिष्ठ नागरिकों के लिए प्राथमिकता तथा रियायती इलाज की व्यवस्था।

न्यूज़ देखो: वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा केवल कानून नहीं, समाज की जिम्मेदारी भी
वरिष्ठ नागरिक समाज की अमूल्य धरोहर हैं और उनका सम्मान, सुरक्षा तथा भरण-पोषण केवल कानूनी दायित्व नहीं बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी भी है। सिमडेगा कॉलेज में आयोजित यह कार्यशाला युवाओं को जागरूक बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। प्रशासन और समाज दोनों को मिलकर बुजुर्गों के सम्मानपूर्ण जीवन की रक्षा करनी होगी।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
संवेदनशीलता बढ़ाएं, बुजुर्गों के साथ खड़े रहें
बुजुर्गों को प्यार, सहारा और सुरक्षा देने में समाज का हर नागरिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। अपने आसपास किसी वरिष्ठ नागरिक को परेशान या असहाय देखकर चुप न रहें—उनकी मदद करें या प्रशासन को सूचना दें।
क्या आपको लगता है कि युवाओं को ऐसे कार्यक्रमों में अधिक शामिल किया जाना चाहिए? अपनी राय कमेंट में बताएं और इस खबर को साझा करें ताकि समाज में जागरूकता बढ़े।





