
#सिमडेगा #सांस्कृतिक_गरिमा : बीएचयू की स्नातक छात्रा और सिमडेगा की प्रतिभाशाली बेटी संस्कृति शास्त्री ने काशी तमिल संगम कार्यक्रम में लोक नृत्य से देश की एकता-विविधता की अद्भुत छटा बिखेरी।
- संस्कृति शास्त्री, सिमडेगा की बेटी, ने काशी के नमो घाट पर लोक नृत्य की बेहतरीन प्रस्तुति दी।
- कार्यक्रम का आयोजन मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर, भारत सरकार की ओर से काशी तमिल संगम के तहत किया गया।
- प्रस्तुति में तमिलनाडु और दक्षिण भारत के हजारों पारंपारिक कलाकार शामिल हुए।
- संस्कृति ने अपनी टीम के साथ देश की सांस्कृतिक धरोहर और विरासत को मंच पर साकार किया।
- उपायुक्त कंचन सिंह, एसपी एम. अर्शी और जिला पत्रकार संघ ने उन्हें बधाई दी।
- संस्कृति वर्तमान में बीएचयू बनारस में स्नातक कर रही हैं; स्कूली शिक्षा DAV सिमडेगा से प्राप्त की।
सिमडेगा की प्रतिभाशाली बेटियों ने हमेशा जिले को गौरवान्वित किया है, और इस गौरव यात्रा में गुरुवार का दिन फिर एक इतिहास जोड़ गया। काशी के नमो घाट पर आयोजित राष्ट्रीय स्तर के सांस्कृतिक आयोजन में संस्कृति शास्त्री ने लोक नृत्य के माध्यम से देश की विरासत, विविधता और एकता को अद्भुत रूप से प्रस्तुत किया। हजारों पारंपारिक कलाकारों के बीच उनकी प्रस्तुति ने विशेष आकर्षण पैदा किया और दर्शकों का मन जीत लिया। कार्यक्रम का उद्देश्य भारत की सांस्कृतिक धरोहरों को एक साझा मंच पर जोड़ना था, जिसे संस्कृति और उनकी टीम ने बखूबी अभिव्यक्त किया।
काशी तमिल संगम में संस्कृति शास्त्री की मनमोहक प्रस्तुति
भारत सरकार के मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर द्वारा आयोजित काशी तमिल संगम कार्यक्रम में संस्कृति शास्त्री ने अपनी टीम के साथ लोक नृत्य की ऐसी प्रस्तुति दी, जिसने दर्शकों को भारत की सांस्कृतिक गहराइयों से परिचित कराया।
नमो घाट पर शाम ढलते ही जब सांस्कृतिक प्रस्तुतियों की श्रृंखला शुरू हुई, तो संस्कृति का मंच पर आगमन विशेष उत्साह के साथ स्वागत योग्य बना।
उनकी नृत्य प्रस्तुति ने उत्तर और दक्षिण भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं को जोड़ते हुए समरसता का अनूठा संदेश दिया। कार्यक्रम में तमिलनाडु और दक्षिण भारत के पारंपरिक कलाकारों की भारी मौजूदगी रही, जो देश की विविधता का शानदार संगम बना।
कार्यक्रम का उद्देश्य: सांस्कृतिक धरोहरों का संगम
काशी तमिल संगम का मुख्य उद्देश्य भारत की गहरी सांस्कृतिक जड़ों को एक सूत्र में जोड़ते हुए साझा मंच प्रदान करना था। नमो घाट को इस आयोजन के लिए चुना जाना भी प्रतीकात्मक था — जहां गंगा की धारा के मध्य उत्तर भारत की परंपराएँ दक्षिण भारत की विरासत से मिलती प्रतीत हुईं।
कार्यक्रम की प्रस्तुति के दौरान संस्कृति शास्त्री ने अपने नाम के अनुरूप संस्कृति और विरासत को मंच पर साकार कर दिया। उनका प्रदर्शन न केवल कला की उत्कृष्टता था, बल्कि यह संदेश भी था कि भारतीय संस्कृति विश्व में अपनी अनूठी पहचान रखती है।
जिलेभर से मिली बधाई और प्रशंसा
प्रदर्शन के बाद सिमडेगा में खुशी की लहर दौड़ गई। उपायुक्त कंचन सिंह, एसपी एम. अर्शी, और सिमडेगा जिला पत्रकार संघ के पदाधिकारियों ने संस्कृति को बधाई दी और उनके उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएँ दीं।
उपायुक्त कंचन सिंह ने कहा: “संस्कृति ने सिमडेगा का मान बढ़ाया है। ऐसी प्रतिभाएँ हमारे जिले की ताकत हैं।”
संस्कृति के पिता आशीष शास्त्री ने जानकारी दी कि उनकी बेटी ने DAV सिमडेगा से स्कूली शिक्षा प्राप्त की है और वर्तमान में बीएचयू, बनारस में स्नातक की पढ़ाई कर रही हैं। उन्होंने कहा कि परिवार के लिए यह गर्व का क्षण है कि उनकी बेटी राष्ट्रीय मंच पर जिले का प्रतिनिधित्व कर रही है।
सिमडेगा की बेटियाँ: प्रतिभा और परंपरा की नई पहचान
सिमडेगा लंबे समय से खेल, कला और शिक्षा के क्षेत्र में नई प्रतिभाओं को जन्म देता रहा है। संस्कृति शास्त्री का नाम अब उन बेटियों की सूची में शामिल हो चुका है जिन्होंने जिले का नाम राष्ट्रीय-स्तर पर रोशन किया है।
उनकी प्रस्तुति ने यह साबित किया कि छोटे जिलों से निकली प्रतिभाएँ भी बड़े मंचों पर चमक सकती हैं, बस उन्हें उचित अवसर और समर्थन की जरूरत होती है।
न्यूज़ देखो: सिमडेगा की बेटियों ने फिर दिखाई शक्ति
संस्कृति शास्त्री की प्रस्तुति न सिर्फ एक कला प्रदर्शन थी, बल्कि इसने यह भी दर्शाया कि सिमडेगा की युवा पीढ़ी देश की सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत बनाए रखने में अहम योगदान दे रही है। ऐसे कार्यक्रम युवाओं में आत्मविश्वास जगाते हैं और उनकी पहचान को राष्ट्रीय मंच पर स्थापित करते हैं।
यह कहानी बताती है कि अवसर और परिश्रम का संगम कितना बड़ा बदलाव ला सकता है।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
संस्कृति से ही बनेगी पहचान, बेटियों को मिलता रहे मंच
संस्कृति शास्त्री की सफलता सिर्फ एक प्रस्तुति का परिणाम नहीं, बल्कि वर्षों की मेहनत, अनुशासन और पारिवारिक सहयोग का फल है। ऐसी उपलब्धियाँ समाज को प्रेरित करती हैं कि बेटियों को प्रोत्साहित किया जाए, उन्हें अपने सपनों की उड़ान भरने दी जाए।
हमारी जिम्मेदारी है कि कला और परंपरा के इन वाहकों का सम्मान करें, उन्हें आगे बढ़ने के अवसर दें और उनके प्रयासों की सराहना करें।





