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सीता सोरेन की घर वापसी की अटकलें तेज, झामुमो स्थापना दिवस पर बढ़ी राजनीतिक हलचल

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  • भाजपा में शामिल होने के बाद लगातार दो चुनावों में हार
  • झामुमो में वापसी की चर्चाओं ने पकड़ा जोर
  • 1 फरवरी को दुमका में सरस्वती पूजा कार्यक्रम में होंगी शामिल
  • झामुमो स्थापना दिवस (2 फरवरी) पर बढ़ी राजनीतिक हलचल
  • झामुमो के नेताओं का मिला-जुला रुख, वापसी को लेकर संशय

झामुमो की पूर्व विधायक सीता सोरेन की घर वापसी की चर्चाएं झारखंड की राजनीति में जोरों पर हैं। उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में दुमका सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गईं। इसके बाद विधानसभा चुनाव में जामताड़ा सीट से किस्मत आजमाई, लेकिन वहां भी पराजय झेलनी पड़ी। इन दो हारों के बाद अब कयास लगाए जा रहे हैं कि वे फिर से झामुमो में लौट सकती हैं।

झामुमो में वापसी पर क्या बोलीं सीता सोरेन?

जब मीडिया ने उनसे झामुमो में वापसी को लेकर सवाल किया, तो उन्होंने कोई सीधा जवाब नहीं दिया। उन्होंने कहा,

“समय सब कुछ बताता है”

“परिस्थिति सब काम करवाती है”

उनका यह बयान राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है। उन्होंने यह भी बताया कि वे 1 फरवरी को दुमका पहुंच रही हैं और सरस्वती पूजा के कार्यक्रमों में शामिल होंगी। हालांकि, इस दौरान उन्होंने किसी भी राजनीतिक मुद्दे पर चर्चा करने से बचने की कोशिश की।

झामुमो स्थापना दिवस पर सबकी नजरें

झामुमो अपना स्थापना दिवस समारोह 2 फरवरी को दुमका में बड़े स्तर पर मनाने जा रहा है। पार्टी ने इसे खास बनाने के लिए पूरी तैयारी कर ली है। पिछले साल ईडी (ED) की कार्रवाई के चलते मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाए थे, लेकिन इस बार उनकी मौजूदगी तय मानी जा रही है।

झामुमो के विधायक बसंत सोरेन का बयान

सीता सोरेन की पार्टी में वापसी को लेकर झामुमो के वरिष्ठ नेता और दुमका के विधायक बसंत सोरेन ने कहा कि उन्हें इस विषय में कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि फिलहाल वे पार्टी के स्थापना दिवस की तैयारियों में व्यस्त हैं और कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह है।

झामुमो में वापसी से क्या होगा असर?

अगर सीता सोरेन झामुमो में वापसी करती हैं, तो इससे पार्टी को कई तरह के राजनीतिक लाभ हो सकते हैं:

  • आदिवासी वोट बैंक पर मजबूत पकड़ – झारखंड में आदिवासी वोटों का बड़ा प्रभाव है और उनकी वापसी झामुमो को फायदा पहुंचा सकती है।
  • संथाल परगना में मजबूत पकड़ – यह क्षेत्र झामुमो का गढ़ माना जाता है, और सीता सोरेन की वापसी से पार्टी को मजबूती मिल सकती है।
  • परिवारिक संबंधों में सुधार – झामुमो में सोरेन परिवार का वर्चस्व है। अगर सीता सोरेन वापस आती हैं, तो इससे उनके पारिवारिक संबंधों में भी सुधार हो सकता है।

भाजपा को लग सकता है झटका?

अगर सीता सोरेन भाजपा छोड़कर झामुमो में लौटती हैं, तो यह भाजपा के लिए बड़ा झटका होगा। भाजपा ने उन्हें झामुमो को कमजोर करने के लिए पार्टी में शामिल किया था, लेकिन लगातार दो चुनाव हारने के बाद उनका कद भाजपा में भी कमजोर हो गया है।

क्या होगा अगला कदम?

अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि सीता सोरेन 1 फरवरी को दुमका पहुंचकर क्या घोषणा करती हैं और झामुमो स्थापना दिवस के दौरान पार्टी का उनके प्रति रुख क्या रहता है। फिलहाल, उन्होंने इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया है, लेकिन उनके हालिया बयान और गतिविधियां झामुमो में वापसी की संभावनाओं को बल दे रही हैं।

क्या सीता सोरेन अपनी पुरानी पार्टी में लौटेंगी, या फिर कोई नई राजनीतिक राह चुनेंगी? आने वाला समय बताएगा, लेकिन झारखंड की राजनीति में हलचल तेज हो गई है।

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Saroj Verma

दुमका/देवघर

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