- मसलिया प्रखंड क्षेत्र के दलाही पंचायत के निपनियां गांव में मांदर बनाने में व्यस्त दयाल रविदास और उनकी पत्नी नियोति रविदास।
- सोहराय पर्व के लिए मांदर की डिमांड बढ़ी है।
- मांदर और अन्य वाद्य यंत्र बनाने में तीन दिन का समय लगता है।
- मुलायम रविदास ने पीएम विश्वकर्मा योजना के तहत सरकारी मदद की कमी की ओर इशारा किया।
दुमका। मसलिया प्रखंड के दलाही पंचायत के निपनियां गांव के सीतलतली टोला में दयाल रविदास और उनकी पत्नी नियोति रविदास इन दिनों आगामी सोहराय पर्व के लिए मांदर बनाने में व्यस्त हैं। आदिवासी समुदाय के इस चार दिवसीय पर्व के लिए मांदर की मांग बढ़ी है। इन वाद्य यंत्रों का दाम पांच हजार रुपये तक हो सकता है, वहीं पहाड़िया मांदर 1500 रुपये प्रति पीस बिकता है।
दयाल रविदास ने बताया कि यह काम पुश्तैनी है, और वह मृत बकरी व बैल की खाल से विभिन्न वाद्य यंत्र जैसे नाल, ढोलक, कीर्तन में बजाने वाला खोल, हाक व नागाड़ा भी बनाते हैं। उन्होंने कहा कि अब तक उनकी हस्तकला का अभ्यास इतना बढ़ चुका है कि वह तीन दिनों में एक मांदर और अन्य वाद्य यंत्र तैयार कर सकते हैं।
“हमारे पास पैसा नहीं है, अगर हमें मदद मिलती तो हम इस काम को और आगे बढ़ा सकते हैं,” दयाल रविदास ने कहा। उन्होंने बताया कि इस काम में लगभग एक हजार रुपये का खर्च आता है, लेकिन पूंजी की कमी रहती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पीएम *विश्वकर्मा योजना* के तहत कारीगरों को मदद देने की बात की गई थी, लेकिन दयाल रविदास और उनके जैसे अन्य कारीगरों को अब तक कोई सरकारी सहायता नहीं मिल पाई है।
आशा है कि सरकार इस पहल को लेकर कारीगरों की मदद करेगी और उन्हें उनके मेहनत का सही इनाम मिलेगा।
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