
#सिमडेगा #विज्ञान_ज्योति : छात्रों को मिट्टी परीक्षण की वैज्ञानिक प्रक्रिया सिखाई गई और बागवानी उपकरण भी वितरित किए गए
- पीएम श्री विद्यालय कोलेबिरा में 2 सितम्बर 2025 को सॉइल टेस्टिंग कार्यशाला का आयोजन।
- डॉ. बंधु उरांव और वरिष्ठ वैज्ञानिक सनत कुमार सांवया रहे विशेषज्ञ के रूप में उपस्थित।
- छात्रों को मिट्टी का नमूना तैयार करने और मशीन से परीक्षण करने की विधि सिखाई गई।
- विज्ञान ज्योति प्रभारी मनोज कुमार ने छात्रों को विज्ञान आधारित खेती अपनाने को प्रेरित किया।
- विद्यालय को खुरपी, कुदाल जैसे बागवानी उपकरण प्रदान किए गए।
- आयोजन में कृषि विज्ञान केंद्र सिमडेगा, दिशा विश्वविद्यालय रांची और आत्मा सिमडेगा का सहयोग रहा।
सिमडेगा के कोलेबिरा स्थित पीएम श्री विद्यालय में विज्ञान ज्योति कार्यक्रम के अंतर्गत सॉइल टेस्टिंग कार्यशाला आयोजित की गई, जिसमें छात्रों को वैज्ञानिक खेती और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के आधुनिक तरीकों से अवगत कराया गया। विशेषज्ञों ने प्रत्यक्ष प्रदर्शन कर विद्यार्थियों को न केवल जानकारी दी, बल्कि उनके भीतर वैज्ञानिक दृष्टिकोण को मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाया। यह कार्यक्रम स्थानीय कृषि और शिक्षा जगत के लिए एक महत्वपूर्ण पहल साबित हुआ।
कार्यक्रम का उद्घाटन और संचालन
2 सितम्बर 2025 को आयोजित इस विशेष कार्यशाला का संचालन अमर कुमार ने किया। उद्घाटन अवसर पर विज्ञान ज्योति प्रभारी मनोज कुमार ने कहा कि अब समय है जब विद्यार्थी विज्ञान को केवल किताबों तक सीमित न रखें, बल्कि उसे व्यवहार में उतारें और खेती को वैज्ञानिक पद्धति से जोड़ें।
मनोज कुमार ने कहा: “छात्र अगर विज्ञान आधारित खेती को समझेंगे तो भविष्य में किसान समाज को नई दिशा दे सकते हैं।”
विद्यालय के प्राचार्य संजय कुमार सिन्हा ने छात्रों को संबोधित करते हुए मिट्टी की उर्वरता और खेती की तकनीकों के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पारंपरिक तरीकों से आगे बढ़ते हुए खेती को आधुनिक विज्ञान से जोड़ना बेहद जरूरी है।
विशेषज्ञों का योगदान और प्रत्यक्ष प्रदर्शन
इस अवसर पर कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) बानो के प्रमुख डॉ. बंधु उरांव और वरिष्ठ वैज्ञानिक सनत कुमार सांवया ने विद्यार्थियों को मिट्टी की जांच की वैज्ञानिक प्रक्रिया समझाई। उन्होंने छात्रों को बताया कि मिट्टी का सही परीक्षण करने से किसान फसल की उपज बढ़ाने के साथ-साथ लागत भी कम कर सकते हैं।
डॉ. बंधु उरांव ने कहा: “सॉइल टेस्टिंग से हमें यह जानकारी मिलती है कि मिट्टी में कौन से पोषक तत्व कम हैं और किस प्रकार की फसल वहां सबसे उपजाऊ होगी।”
छात्रों को मिट्टी का नमूना तैयार करने, उर्वरता जांचने और मशीन से परीक्षण करने का प्रत्यक्ष प्रदर्शन कराया गया। इस व्यावहारिक अनुभव ने बच्चों को न केवल ज्ञान दिया बल्कि उन्हें प्रयोगात्मक शिक्षा का महत्व भी समझाया।
सहयोग और संसाधनों की उपलब्धता
यह कार्यशाला कृषि विज्ञान केंद्र सिमडेगा, दिशा विश्वविद्यालय रांची और आत्मा सिमडेगा के संयुक्त सहयोग से संपन्न हुई। इस दौरान विद्यालय को खुरपी, कुदाल जैसे बागवानी उपकरण भी प्रदान किए गए ताकि विद्यार्थी खेती और बागवानी को व्यवहारिक रूप से समझ सकें। इन उपकरणों की उपलब्धता से छात्रों को व्यावहारिक गतिविधियों में भागीदारी का अवसर मिलेगा और वे सीधे तौर पर वैज्ञानिक खेती की प्रक्रिया से जुड़ सकेंगे।
छात्रों की प्रतिक्रिया और उत्साह
कार्यक्रम के दौरान बच्चों ने उत्साहपूर्वक प्रश्न पूछे और विशेषज्ञों की बातों को ध्यान से सुना। कई छात्रों ने कहा कि यह उनके लिए बिल्कुल नया अनुभव था क्योंकि उन्होंने पहली बार मिट्टी की जांच की पूरी प्रक्रिया को प्रत्यक्ष रूप से देखा। छात्रों का मानना है कि इस तरह की कार्यशालाएँ उन्हें न केवल खेती की नई तकनीकों से परिचित कराती हैं, बल्कि उनके अंदर शोध और नवाचार की सोच भी विकसित करती हैं।
स्थानीय स्तर पर प्रभाव और महत्व
यह कार्यशाला सिमडेगा जिले के ग्रामीण परिवेश में शिक्षा और कृषि के बीच पुल बनाने का प्रयास है। जहां एक ओर ग्रामीण इलाकों में खेती अभी भी पारंपरिक तरीकों पर निर्भर है, वहीं विज्ञान ज्योति जैसे कार्यक्रम इन तरीकों में सुधार लाने का माध्यम बनते हैं। इस कार्यक्रम का दीर्घकालिक प्रभाव यह होगा कि आने वाले वर्षों में छात्र अपने परिवार और समुदाय को वैज्ञानिक खेती अपनाने के लिए प्रेरित करेंगे।



न्यूज़ देखो: शिक्षा और कृषि का संगम
यह कार्यशाला केवल छात्रों के लिए प्रशिक्षण नहीं बल्कि समाज के लिए भी एक बड़ा संदेश है। शिक्षा और विज्ञान को अगर व्यवहार में उतारा जाए तो खेती में क्रांति लाना संभव है। ऐसे आयोजन छात्रों के भविष्य को संवारने के साथ-साथ ग्रामीण विकास में भी अहम भूमिका निभाते हैं।
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विज्ञान से विकास की ओर कदम
यह पहल बताती है कि शिक्षा और कृषि जब मिलकर काम करते हैं तो भविष्य न केवल उज्ज्वल बल्कि समृद्ध भी होता है। अब समय है कि हम सब मिलकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं और खेती को नई दिशा दें। अपनी राय कमेंट करें, इस खबर को दोस्तों तक साझा करें और जागरूकता फैलाने में योगदान दें।