
#बिश्रामपुर #किसानसंरक्षण : कांग्रेस प्रत्याशी सुधीर चंद्रवंशी ने यूरिया और डीएपी खाद की कालाबाज़ारी पर केंद्र और राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा किया
- सुधीर चंद्रवंशी ने खाद की कालाबाज़ारी पर केंद्र और राज्य सरकार की नाकामी उजागर की।
- यूरिया का सरकारी मूल्य 266 रुपये प्रति बोरी, पर किसानों को 500–1000 रुपये में खरीदना पड़ रहा है।
- डीएपी का निर्धारित मूल्य 1350 रुपये, पर दुकानदार 1600–1800 रुपये में बेचना।
- एजेंसियों और अधिकारियों की मिलीभगत से भ्रष्टाचार और कालाबाज़ारी फैल रही है।
- किसानों की फसलें सूख रही हैं, त्वरित कार्रवाई न होने पर खाद्य सुरक्षा पर संकट।
बिश्रामपुर (झारखंड)। बिश्रामपुर विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस प्रत्याशी सुधीर कुमार चंद्रवंशी ने शनिवार को खाद की कालाबाज़ारी को लेकर केंद्र सरकार और प्रशासन को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि किसानों के हित में बनाई गई योजनाएँ ज़मीनी स्तर पर पूरी तरह असफल साबित हो रही हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि जब सरकारी नियम स्पष्ट है कि किसी भी वस्तु को निर्धारित मूल्य से अधिक बेचना अपराध है, तो यूरिया और डीएपी की कालाबाज़ारी पूरे देश में खुलेआम क्यों हो रही है।
खड़ी फसलें और किसान परेशान
चंद्रवंशी ने बताया कि खेतों में खड़ी फसलें सूख रही हैं और सरकार किसानों के दुख में खड़ी नहीं है। उन्होंने चेतावनी दी,
“अगर अभी सरकार ने समुचित समाधान नहीं किया, तो कल जब अकाल पड़ेगा, तब क्या घर-घर जाकर पांच किलो चावल बांटकर जिम्मेदारी पूरी करेंगे?”
प्रिंट रेट और वास्तविक दाम में अंतर
कांग्रेस प्रत्याशी ने बताया कि यूरिया का सरकारी मूल्य 266 रुपये है, जबकि किसानों को इसे 500–1000 रुपये में खरीदना पड़ रहा है। डीएपी, जिसका मूल्य 1350 रुपये है, वह 1800 रुपये तक बिक रहा है। उनकी टीम ने दर्जनों प्रखंडों का दौरा किया और पाया कि एजेंसियाँ खुद दुकानदारों को महंगे दाम पर खाद दे रही हैं।
एजेंसियाँ यूरिया 266 रुपये की बोरी को 300–330 रुपये और डीएपी 1350 रुपये की बोरी को 1600 रुपये में उपलब्ध कराती हैं। साथ ही दुकानदारों पर नैनो यूरिया और जिंक जैसे घटिया खाद लेने का दबाव बनाया जाता है। शिकायत करने वालों को लाइसेंस रद्द करने और सप्लाई रोकने की धमकी दी जाती है।
भ्रष्टाचार और प्रशासन की मिलीभगत
एक दुकानदार ने दावा किया कि यूरिया का बिल 247 रुपये में तैयार होता है, लेकिन उसे 330 रुपये वसूले जाते हैं। डीएपी का बिल 1270 रुपये का है, जबकि वसूली 1600 रुपये में। चंद्रवंशी ने कहा कि यह सब अधिकारियों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है।
उन्होंने यह भी बताया कि 6 अगस्त को जिले में खाद का जो रैक आया, उसमें करोड़ों रुपये का घोटाला हुआ। खाद किसानों तक पहुंचने के बजाय कालाबाज़ारी में चली गई। उच्चस्तरीय जाँच उपभोक्ता नंबर और बैंक अकाउंट के आधार पर की जाए तो कई अधिकारियों और एजेंसियों की भूमिका उजागर हो सकती है।
किसान और अर्थव्यवस्था पर असर
सुधीर चंद्रवंशी ने चेतावनी दी कि समय पर खाद न मिलने से न केवल कृषि बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है। उन्होंने कहा,
“अन्नदाता का शोषण रोकना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है। अगर किसान कमजोर होंगे तो देश खाद्यान्न संकट से जूझेगा।”
उन्होंने अपने समर्थकों और जनता से अपील की कि किसानों को ऐसे विकट परिस्थिति में समर्थन दें और भ्रष्टाचार एवं कालाबाज़ारी के खिलाफ कदम मिलाकर खड़े हों।
न्यूज़ देखो: किसानों की आवाज को मंच मिला
सुधीर चंद्रवंशी ने खाद की कालाबाज़ारी और किसानों की पीड़ा को उजागर कर प्रशासन और सरकार के समक्ष दबाव बनाया। यह मामला दिखाता है कि अगर समय पर कार्रवाई न की गई तो अन्नदाता की सुरक्षा पर खतरा बढ़ सकता है।
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