#गढ़वा #आत्महत्या_मामला : बरडीहा थाना क्षेत्र के सलगा गांव में घरेलू विवाद के बाद 45 वर्षीय व्यक्ति ने कीटनाशक खाकर दी जान — अस्पताल ले जाने के दौरान तोड़ा दम
- ईश्वरी यादव (45) ने कीटनाशक खाकर आत्महत्या की
- घरेलू विवाद के बाद उठाया था यह चरम कदम
- सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां से हायर सेंटर रेफर
- रास्ते में ही मरीज की मौत, पुलिस ने शव भेजा पोस्टमार्टम
- घटना के बाद परिजनों में मचा कोहराम, गांव में मातम
पारिवारिक तनाव ने ली जान
गढ़वा जिले के बरडीहा थाना क्षेत्र अंतर्गत सलगा गांव में ईश्वरी यादव, उम्र लगभग 45 वर्ष, ने किसी पारिवारिक विवाद के चलते कीटनाशक दवा खाकर आत्महत्या कर ली। ईश्वरी, गांव के ही स्व. धमरी यादव के पुत्र थे। घटना ने गांव और परिवार में शोक की लहर दौड़ा दी है।
बताया गया कि घर में किसी बात को लेकर विवाद हो गया था। विवाद के बाद ईश्वरी ने अचानक ही कीटनाशक पी लिया।
सदर अस्पताल में इलाज के दौरान बिगड़ी हालत
परिजनों को जब यह जानकारी हुई तो वे तत्काल ईश्वरी को लेकर गढ़वा सदर अस्पताल पहुंचे। वहां चिकित्सकों ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए हायर सेंटर रेफर कर दिया।
चिकित्सकों का कहना था: “जहर का असर काफी गहरा था, स्थिति बेहद गंभीर हो चुकी थी।”
लेकिन दुर्भाग्यवश, हायर सेंटर ले जाने के रास्ते में ही ईश्वरी की मौत हो गई।
पुलिस कार्रवाई और शव पोस्टमार्टम के बाद सौंपा गया
घटना की सूचना मिलते ही बरडीहा थाना पुलिस मौके पर पहुंची और शव को अपने कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा। पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया।
इधर, गांव और परिवार में विषाद का माहौल है। परिजन सदमे में हैं और रो-रोकर बुरा हाल है।
न्यूज़ देखो: आत्महत्या से जुड़े मामलों में संवाद और सहानुभूति की जरूरत
ईश्वरी यादव की आत्महत्या सिर्फ एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं, बल्कि एक सामाजिक चेतावनी है कि मानसिक तनाव और घरेलू विवाद किस हद तक ले जा सकते हैं। ऐसी घटनाएं हमें मानसिक स्वास्थ्य और पारिवारिक संवाद की जरूरत का एहसास कराती हैं।
‘न्यूज़ देखो’ प्रशासन और समाज से अपील करता है कि ऐसे मामलों को गंभीरता से लें, समय रहते हस्तक्षेप करें और परिवारों को टूटने से बचाएं।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
जीवन की हर समस्या का समाधान है, आत्महत्या नहीं
मानसिक तनाव और पारिवारिक विवाद हर किसी के जीवन में आते हैं, लेकिन समाधान संवाद में है, आत्मघाती कदम में नहीं। समाज को चाहिए कि वह ऐसे संकटग्रस्त व्यक्तियों की समय रहते पहचान करे और सहारा बने।
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