
#डंडई #अंधविश्वास_खिलाफ : झाड़-फूंक के नाम पर गरीब ग्रामीणों से मुर्गा, बकरी और नकद की अवैध वसूली।
गढ़वा जिले के डंडई प्रखंड अंतर्गत भुइयां टोला में अंधविश्वास का एक गंभीर मामला सामने आया है, जहां एक महिला द्वारा टेंट लगाकर झाड़-फूंक और ओझाई-मताई का खेल खुलेआम चलाया जा रहा है। आस्था और भय का सहारा लेकर ग्रामीणों से मुर्गा, बकरी और नकद की वसूली की जा रही है। यह गतिविधि न केवल आर्थिक शोषण को बढ़ावा दे रही है, बल्कि समाज में खतरनाक कुरीतियों को भी मजबूत कर रही है। स्थानीय प्रशासन की चुप्पी इस पूरे मामले को और गंभीर बना रही है।
- डंडई प्रखंड के भुइयां टोला में अंधविश्वास का खुला खेल।
- एक महिला द्वारा टेंट लगाकर झाड़-फूंक और ओझाई-मताई का दावा।
- भूत-प्रेत और ऊपरी साया का डर दिखाकर वसूली के आरोप।
- ग्रामीणों से मुर्गा, बकरी, सूअर और नकद राशि की मांग।
- प्रशासनिक कार्रवाई नहीं होने से डायन प्रथा जैसी घटनाओं का खतरा।
गढ़वा जिले के डंडई प्रखंड का भुइयां टोला इन दिनों अंधविश्वास के अंधेरे में डूबता नजर आ रहा है। जहां एक ओर देश और दुनिया विज्ञान, तकनीक और आधुनिक चिकित्सा में लगातार आगे बढ़ रही है, वहीं इस ग्रामीण क्षेत्र में आज भी लोग झाड़-फूंक, ओझाई-मताई और भूत-प्रेत के डर में जीने को मजबूर हैं।
टेंट लगाकर चल रहा अंधविश्वास का केंद्र
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, भुइयां टोला में एक महिला ने अस्थायी टेंट गाड़कर खुद को किसी अलौकिक शक्ति से संपन्न बताना शुरू कर दिया है। इस टेंट में रोज़ाना दर्जनों ग्रामीण अपनी बीमारी, पारिवारिक कलह, आर्थिक संकट और अन्य समस्याओं के समाधान की उम्मीद लेकर पहुंच रहे हैं। महिला द्वारा खुद को ओझा या साधिका बताकर लोगों को यह विश्वास दिलाया जा रहा है कि उनकी समस्याओं के पीछे भूत-प्रेत या ऊपरी साया का प्रभाव है।
आस्था के नाम पर आर्थिक शोषण
ग्रामीणों का आरोप है कि इस तथाकथित झाड़-फूंक के बदले महिला मुर्गा, बकरी, सूअर जैसी बलि की मांग करती है। इसके साथ ही पूजा-पाठ, खायकी और विशेष अनुष्ठान के नाम पर नकद राशि भी ली जा रही है। कई मामलों में यह राशि ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति से कहीं अधिक बताई जा रही है, जिससे परिवारों पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है।
ग्रामीणों का कहना है कि डर और अज्ञानता के कारण वे विरोध नहीं कर पाते और अपनी जमा-पूंजी या पशुधन देने को मजबूर हो जाते हैं।
गरीब और मासूम ग्रामीण सबसे अधिक शिकार
इस अंधविश्वास के जाल में सबसे अधिक वे लोग फंस रहे हैं जो गरीब, अशिक्षित या स्वास्थ्य सुविधाओं से दूर हैं। बीमारियों के वैज्ञानिक इलाज के बजाय झाड़-फूंक पर भरोसा करने से न केवल उनकी हालत बिगड़ रही है, बल्कि समय पर इलाज न मिलने से जान का खतरा भी बना रहता है।
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि कई परिवारों ने इलाज के बजाय इस अंधविश्वासी प्रक्रिया पर भरोसा किया, जिससे बीमारी और गंभीर हो गई।
प्रशासनिक चुप्पी पर सवाल
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि यह पूरा खेल सरेआम चल रहा है, लेकिन अब तक प्रशासन या पुलिस की ओर से कोई ठोस कार्रवाई सामने नहीं आई है। न तो टेंट हटाया गया है और न ही संबंधित महिला से पूछताछ की गई है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो भविष्य में डायन-बिसाही, सामाजिक बहिष्कार और हिंसा जैसी घटनाओं की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
कानून की अनदेखी
झारखंड में डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम पहले से लागू है, जिसके तहत झाड़-फूंक, ओझाई-मताई और अंधविश्वास फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी सजा का प्रावधान है। इसके बावजूद इस तरह की गतिविधियों का खुलेआम चलना प्रशासनिक उदासीनता पर सवाल खड़े करता है।
जागरूक नागरिकों की मांग
भुइयां टोला और आसपास के क्षेत्रों के जागरूक युवाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जिला प्रशासन और डंडई थाना प्रभारी से मांग की है कि:
- इस अवैध टेंट और अंधविश्वास के केंद्र को तत्काल बंद कराया जाए।
- संबंधित महिला के खिलाफ झारखंड डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाए।
- ग्रामीणों को वैज्ञानिक सोच, स्वास्थ्य सेवाओं और कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाए।
समाज के लिए गंभीर चेतावनी
यह मामला केवल एक गांव तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे समाज के लिए चेतावनी है कि यदि अंधविश्वास के खिलाफ समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो इसका दुष्परिणाम बेहद खतरनाक हो सकता है।
न्यूज़ देखो: अंधविश्वास पर प्रशासन की चुप्पी चिंता का विषय
डंडई के भुइयां टोला की यह घटना बताती है कि आज भी अंधविश्वास किस तरह गरीब और कमजोर वर्ग को अपना शिकार बना रहा है। कानून मौजूद होने के बावजूद कार्रवाई न होना प्रशासन की गंभीर विफलता को दर्शाता है। अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन समय रहते हस्तक्षेप करेगा या किसी अनहोनी के बाद जागेगा। हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
जागरूकता ही सबसे बड़ा हथियार
अंधविश्वास से लड़ाई केवल प्रशासन की नहीं, समाज की भी जिम्मेदारी है। वैज्ञानिक सोच अपनाएं, झाड़-फूंक के बजाय इलाज को प्राथमिकता दें।
अगर आपके क्षेत्र में भी ऐसी गतिविधियां चल रही हैं, तो आवाज उठाएं। अपनी राय कमेंट करें, खबर साझा करें और अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता फैलाने में भूमिका निभाएं।





