#पलामू #ददईदुबेश्रद्धांजलि : झारखंड की सियासत के साहसी और जनप्रिय चेहरे को अलविदा — पलामू कांग्रेस कार्यालय में श्रद्धांजलि सभा, हजारों की भीड़ ने दी अंतिम विदाई, अब वाराणसी में होगा अंतिम संस्कार
- ददई दुबे का पार्थिव शरीर पलामू पहुंचने पर कांग्रेस कार्यालय में रखा गया
- सैकड़ों कार्यकर्ता, नेता व आम नागरिकों ने श्रद्धांजलि दी
- कांडी के चौका गांव में दर्शन के बाद वाराणसी के मणिकर्णिका घाट ले जाया गया पार्थिव शरीर
- कांग्रेस नेता सुधीर चंद्रवंशी, केएन त्रिपाठी समेत कई वरिष्ठ नेता रहे उपस्थित
- राष्ट्रीय परशुराम युवा वाहिनी सहित कई संगठनों ने भी अर्पित की श्रद्धांजलि
पलामू में भावुक विदाई, कांग्रेस कार्यालय बना शोक स्थल
झारखंड की राजनीति के प्रखर नेता और पूर्व मंत्री ददई दुबे को आज पलामू में अंतिम विदाई दी गई। उनके पार्थिव शरीर के आगमन पर पलामू कांग्रेस कार्यालय में हजारों की भीड़ उमड़ पड़ी। कार्यकर्ता, शुभचिंतक, और जनप्रतिनिधियों ने नम आंखों से उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि दी।
रेडमा स्थित चंद्रशेखर आज़ाद चौक पर जब पार्थिव शरीर पहुंचा, राष्ट्रीय परशुराम युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं ने फूल अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। संगठन के अध्यक्ष देवेंद्र तिवारी ने कहा कि “ददई दुबे का जाना सामाजिक और राजनीतिक दोनों स्तरों पर अपूरणीय क्षति है।”
वरिष्ठ नेताओं ने साझा की स्मृतियां, व्यक्त किया दुख
श्रद्धांजलि सभा में पूर्व मंत्री केएन त्रिपाठी, जिलाध्यक्ष जैशरंजन पाठक (बिट्टू पाठक), रुद्र शुक्ला और विश्रामपुर के पूर्व कांग्रेस प्रत्याशी सुधीर कुमार चंद्रवंशी समेत अनेक कांग्रेसी नेता मौजूद थे। सभा में ददई दुबे के साहसी राजनीतिक जीवन, जनप्रिय छवि और जमीनी जुड़ाव को याद किया गया।
सुधीर चंद्रवंशी ने कहा: “ददई बाबा सिर्फ विश्रामपुर ही नहीं, पूरे देश के नेता थे। उनका बेबाक स्वभाव और जनहित के प्रति निष्ठा हमारे लिए प्रेरणा है।”
कांडी के चौका गांव में दर्शन, वाराणसी में अंतिम संस्कार
श्रद्धांजलि सभा के बाद पार्थिव शरीर को गढ़वा होते हुए कांडी प्रखंड के चौका गांव, जो ददई दुबे का पैतृक निवास है, लाया गया। वहां भी जनदर्शन के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। इसके बाद शव को अंतिम संस्कार के लिए वाराणसी के मणिकर्णिका घाट ले जाया गया। यहां पूरे सम्मान के साथ अंत्येष्टि की जाएगी।
जनता के दिलों में बसने वाला नेता
2 जनवरी 1946 को जन्मे ददई दुबे ने राजनीति में एक लंबा और जनसंघर्ष से भरा सफर तय किया। वे 1985, 1990, 2000 और 2009 में विश्रामपुर विधानसभा से विधायक बने। वर्ष 2000 में बिहार सरकार में श्रम एवं रोजगार मंत्री और 2014 में धनबाद से सांसद के रूप में संसद पहुंचे।
उनकी राजनीति की सबसे बड़ी ताकत थी जनता से सीधा संवाद और निडर स्वभाव। उन्होंने हमेशा जनहित की राजनीति को प्राथमिकता दी। यही वजह रही कि आखिरी समय तक भी आम जनता के बीच उनकी लोकप्रियता बरकरार रही।
युवा समाजसेवी विवेक शुक्ला ने कहा: “ददई दुबे जी की सामाजिक प्रतिबद्धता आने वाली पीढ़ियों के लिए उदाहरण है। उनका जीवन संघर्षशील राजनीति की मिसाल है।”
न्यूज़ देखो: जमीनी नेता को अंतिम सलाम
ददई दुबे जैसे नेता राजनीति को सिर्फ सत्ता का माध्यम नहीं, बल्कि जनसेवा का जरिया मानते थे। उनकी राजनीतिक यात्रा में न छल था, न दिखावा। न्यूज़ देखो ऐसे संघर्षशील नेताओं को नमन करता है, जिन्होंने सच्चे लोकतंत्र की मिसाल पेश की।
हर खबर पर रहेगी हमारी नजर।
स्मृति को संजोए, आदर्शों को आगे बढ़ाएं
ददई दुबे जैसे नेता विरले होते हैं। हमें उनकी सोच, संघर्ष और सेवा को याद रखकर समाज को बेहतर बनाने की दिशा में कार्य करना होगा। इस खबर को जरूर अपने मित्रों, राजनीतिक सहयोगियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ साझा करें। नीचे कमेंट कर बताएं, आपको ददई दुबे से जुड़ी कौन सी बात सबसे ज्यादा प्रेरित करती है।