तेलंगाना टनल हादसा: शव नहीं मिलने पर पुतला का अंतिम संस्कार, बेटे ने दी मुखाग्नि

#गुमला #टनलहादसा — 80 दिन बाद टूटी उम्मीदें, तिर्रा गांव में संतोष साहू के पुतले का हुआ अंतिम संस्कार

80 दिन बाद भी नहीं मिला शव, टूटी हर उम्मीद

गुमला। तेलंगाना राज्य के नागरकुलम टनल हादसे में लापता गुमला प्रखंड के तिर्रा गांव निवासी मजदूर संतोष साहू के शव का 80 दिनों बाद भी कोई सुराग नहीं मिल सका। हादसे की भयावहता और लाश न मिलने की पीड़ा ने परिजनों को ऐसा तोड़ दिया कि अंततः शनिवार को प्रतीकात्मक रूप से पुतला बनाकर हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार अंतिम संस्कार किया गया।

बेटे ने दी मुखाग्नि, गांव में छाया मातम

शनिवार सुबह से ही गांव में शोक का माहौल था। परिजन सुबह 6 बजे संतोष का पुतला बनाकर तैयार कर चुके थे, जिसमें उनकी तस्वीर भी लगाई गई थी। श्मशान घाट तक शव यात्रा निकाली गई, जिसमें बड़ी संख्या में ग्रामीण और रिश्तेदार शामिल हुए।

मुखाग्नि सात वर्षीय छोटे बेटे ऋषभ ने दी। इस दौरान पत्नी संतोषी देवी का रो-रोकर बुरा हाल था। बेटियों रीमा (12) और राधिका (10) के साथ ऋषभ भी बिलखता रहा। तीनों बच्चों की चीख-पुकार से गांव में मातम पसर गया। जो दृश्य सबसे ज्यादा विचलित कर देने वाला था, वह तब का था जब तीनों बच्चे अपने पिता की तस्वीर पर गंगाजल डालते हुए रो रहे थे।

शव की तलाश बंद, तेलंगाना सरकार ने दिया मुआवजा

टनल हादसे के 80 दिन बाद भी जब शव नहीं मिला, तो तेलंगाना सरकार ने क्षेत्र को रेड ज़ोन घोषित कर खोज अभियान रोक दिया। इसके बाद परिवार को मृत्यु प्रमाण पत्र सौंपा गया और ₹25 लाख की सहायता राशि का चेक उपायुक्त गुमला के माध्यम से सौंपा गया।

झारखंड सरकार से नहीं मिला कोई सहयोग

मृतक की पत्नी संतोषी देवी ने बताया कि झारखंड सरकार से अब तक किसी प्रकार का सहयोग नहीं मिला है। उन्होंने सरकार से नौकरी और बच्चों की बेहतर शिक्षा की व्यवस्था की मांग की है। उन्होंने कहा कि तेलंगाना सरकार की ओर से सिर्फ मौखिक आश्वासन मिला था, लेकिन अब तक शिक्षा को लेकर कोई ठोस पहल नहीं की गई।

हादसे के बाद का संघर्ष

मृतक के बहनोई श्रवण साहू ने बताया कि हादसे के बाद गुमला उपायुक्त के निर्देश पर पंकज साहू तेलंगाना में एक माह तक सब इंस्पेक्टर निखिल और अविनाश पाठक के साथ रुके। वे रोज़ हादसे की जगह जाते और शाम को लौटते, लेकिन शव की तलाश असफल रहने पर लौटना पड़ा।

न्यूज़ देखो : संवेदनाओं के साथ व्यवस्था पर भी सवाल

न्यूज़ देखो‘ इस गहरी पीड़ा को केवल खबर नहीं, एक सामाजिक और मानवीय प्रश्न के रूप में देखता है। एक मजदूर की लाश तक न मिलना, उसका बच्चों द्वारा पुतले का अंतिम संस्कार करना — यह न केवल वेदना है, बल्कि व्यवस्था की एक कटु सच्चाई भी। झारखंड सरकार को चाहिए कि दुखी परिवार को आर्थिक और सामाजिक संबल प्रदान करे, ताकि संतोष साहू के मासूम बच्चों का भविष्य अंधकारमय न हो।

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